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Kavyadarsha (काव्यादर्शः)

361.00

Author Dr. Jamuna Pathak
Publisher Chaukhamba Krishnadas Academy
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2019
ISBN 978-81-218-0176-1
Pages 650
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0494
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Description

काव्यादर्शः (Kavyadarsha) यह दण्डी का काव्यशास्त्रीय उत्कृष्ट ग्रन्थ है। काव्यशास्त्रियों में भामह की अपेक्षा दण्डी को कम महत्त्व प्राप्त हो सका है। विद्वानों की दृष्टि में इसका कारण यह है कि दण्डी दक्षिण भारत के निवासी थे और काव्यशास्त्र के लेखन का प्रमुख क्षेत्र कश्मीर था अतः कश्मीरी पण्डित-परम्परा ने उनको नहीं अपनाया।

काव्यादर्श तीन परिच्छेदों में विभक्त है। इस ग्रन्थ के प्रथम परिच्छेद में १०५, द्वितीय में ३६८ तथा तृतीय परिच्छेद में १८७ इस प्रकार कुल ६६० श्लोक हैं। प्रथम परिच्छेद में ग्रन्थ की प्रस्तावना, काव्य का लक्षण, काव्य के भेद, वैदर्भ और गौडीय मार्ग, दश गुणों तथा काव्य के हेतु का निरूपण हुआ है। द्वितीय परिच्छेद में अलङ्कार का लक्षण, अर्थालङ्कार के समुद्देश, स्वभावोक्ति, उपमा, रूपक, दीपक, अर्थान्तरन्यास, व्यतिरेक, विभावना, समासोक्ति, अतिशयोक्ति, उत्प्रेक्षा, यथासंख्य, पर्यायोक्ति, अपहृति, श्लेष, विशेषोक्ति, तुल्योगिता, अप्रस्तुतप्रशंसा, व्याजस्तुति, निदर्शना, सहोक्ति, संसृष्टि अलङ्कार का वर्णन हुआ है। तृतीय परिच्छेद में यमक तथा चित्र अलङ्कारों का विवेचन हुआ है साथ ही दश दोषों का निरूपण किया गया है।

संस्कृत काव्यशास्त्र के क्षेत्र में आचार्य भरत के बाद दण्डी से लेकर जगन्नाथ तक एक सुदीर्घ परम्परा है। आचार्य भरत के बाद दण्डी तक के लगभग एक हजार वर्ष के अन्तराल में हुए काव्यशास्त्र-विषयक कार्यों का कोई इतिहास नहीं मिलता, अतः इस अन्तराल में हुए काव्यशास्त्रीय आचार्यों के विषय में हम अनभिज्ञ हैं। इस विषय में गहन और सूक्ष्म वैज्ञानिक अनुसन्धान की आवश्यकता है।

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