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Bharat Ki Mahan Sadhikayen (भारत की महान साधिकाएँ)

51.00

Author Vishwanath Mukharjee
Publisher Vishwavidyalay Prakashan
Language Hindi
Edition 3rd edition, 2015
ISBN 978-81-89498-31-3
Pages 123
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code VVP0141
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Description

भारत की महान साधिकाएँ (Bharat Ki Mahan Sadhikayen) भारतीय वाड्मय में नारी को शक्तिरूपा देवी कहा गया है। सभी देवताओं ने देवी की पूजा की है- आद्याशक्ति के रूप में। स्वयं शंकर ने नारी की महिमा की वृद्धि के लिए अर्द्धनारीश्वर रूप ग्रहण किया था। सती-महिमा से हमारे धार्मिक ग्रंथ समृद्ध हैं। पुरुष साधकों के साथ-साथ साधना के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान कम नहीं है। प्रस्तुत संग्रह की सभी साधिकाएँ अपने-आपमें अद्भुत हैं। चाहे वह माँ शारदा हों या गोपाल की माँ, सिद्धिमाता हों या गौरी माँ। प्रत्येक की साधना अलग-अलग ढंग की है।

माँ शारदा परमहंस रामकृष्णजी की पत्नी थी। बचपन में ही उन्हें ज्ञात हो गया था कि उनका विवाह परमहंसजी के साथ होगा। उधर परमहंसजी भी इस सत्य को जानते थे। अपने गुरु तोतापुरी के निर्देशानुसार दोनों पति-पत्नी एक ही बिस्तर पर नौ मास शयन करते रहे, पर किसी के मन में काम-भावना उत्पन्न नहीं हुई। स्वयं परमहंसजी ने अपने इष्ट काली माता से निवेदन किया था- “माँ, उसकी कामभावना नष्ट कर दो।” आगे चलकर उन्होंने माता शारदा की चरण-पूजा अपने इष्ट देवता के रूप में की। यहाँ तक कि अपने निधन के बाद सूक्ष्म रूप में प्रकट हो निरन्तर माँ शारदा की सहायता करते रहे। कभी भी वैधव्यसूचक वस्त्र धारण करने नहीं दिया।

माँ शारदा की माँ ने एक बार परमहंस से कहा था कि मेरी बेटी को संतान नहीं हो रही है। परमहंसजी ने कहा- “माँ, घबराती क्यों हो? उसे इतनी संतानें होंगी कि दिन-रात ‘माँ-माँ’ स्वर सुनते-सुनते वह पागल हो जायगी।” आगे चलकर रामकृष्णजी के सभी शिष्य माँ शारदा को ‘माँ’ के रूप में , सम्बोधन करते रहे। अगर माँ शारदा कृपा-आशीर्वाद न देतीं तो विवेकानन्दजी विदेशों में सफलता प्राप्त न करते। गौरी माँ भी एक कर्मठ महिला थीं। परमहंसजी ने योगबल से अपने पास बुलाकर उन्हें अपना शिष्य बनाया था। स्वभाव से वे जितनी तेजस्वी थीं, उतनी ही कर्मठ थीं। बंगाल की अनाथ महिलाओं की मसीहा थीं।

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