Sankshipt Skand Puran (संक्षिप्त स्कन्दपुराण)
₹530.00
Author | - |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Hindi |
Edition | 37th edition |
ISBN | - |
Pages | 1372 |
Cover | Hard Cover |
Size | 19 x 6 x 27 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0093 |
Other | Code - 279 |
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CompareDescription
संक्षिप्त स्कन्दपुराण (Sankshipt Skand Puran) भारतीय संस्कृतिके मूलाधारके रूपमें वेदोंके बाद पुराणोंका ही स्थान है। वेदोंमें वर्णित अगम रहस्योंतक जन-सामान्यकी पहुँच नहीं हो पाती, परन्तु पुराणोंकी मंगलमयी, ज्ञानप्रदायिनी दिव्य कथाओंका अवण-मनन और पठन-पाठन करके जन-साधारण भी भक्तितत्त्वके अनुपम रहस्यसे सहज ही परिचित हो सकते हैं। महाभारतमें कहा गया है-‘ पुराणसंहिताः पुण्याः कथा धर्मार्थसंत्रिताः।’ (महाभारत, आदि० १।१६) ‘अर्थात् पुराणोंकी पवित्र कथाएँ धर्म और अर्थको प्रदान करनेवाली हैं।’ अध्यात्मकी दिशामें अग्रसर होनेवाले साधकोंको पौराणिक कथाओंके अनुशीलनसे तत्त्वज्ञानकी प्राप्ति होती है। इसलिये भगवान्के दर्शनके लिये अधवा शारीरिक और मानसिक रोगकी निवृत्तिके लिये पुराणोंका पारायण करना चाहिये। पंचम वेदके रूपमें पौराणिक ज्ञान सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के द्वारा अभिव्यक्त हुआ-
इतिहासपुराणानि पञ्चमं वेदमीश्वरः।
सर्वेभ्य एव वक्त्रेभ्यः ससृजे सर्वदर्शनः ॥ (श्रीमद्भा० ३।१२।३९)
‘इतिहास और पुराणरूप पाँचवें वेदको समर्थ, सर्वज्ञ ब्रह्माजीने अपने सभी मुखोंसे प्रकट किया।’ इसी दृष्टिसे कहा गया है-‘ पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणां स्मृतम्।’ इनका विस्तार सौ करोड़ श्लोकोंका माना गया है। समयके परिवर्तनसे जब मनुष्यकी आयु कम हो जाती है और इतने बड़े पुराणका श्रवण- मनन मनुष्योंके लिये असम्भव हो जाता है, तब उनका संक्षेप करनेके लिये भगवान् स्वयं व्यासरूपमें अवतीर्ण होकर उन्हें अठारह भागोंमें बाँटकर चार लाख श्लोकोंमें सीमित कर देते हैं। पुराणोंका यह संक्षिप्त संस्करण ही यहाँ उपलब्ध है। कहते हैं स्वर्गादि लोकोंमें आज भी एक अरब श्लोकोंका विस्तृत पुराण विद्यमान हैं। इस प्रकार भगवान् व्यास भी पुराणोंके रचयिता नहीं, अपितु संक्षेपक या संग्राहक ही सिद्ध होते हैं। इसीलिये वेदोंकी भाँति पुराण भी अनादि माने जाते हैं।
विभिन्न विषयोंके विस्तृत विवेचनकी दृष्टिसे पुराणोंमें स्कन्दपुराण सबसे बड़ा है। भगवान् स्कन्दके द्वारा कचित होनेके कारण इसका नाम स्कन्दपुराण है। यह खण्डात्मक और संहितात्मक दो स्वरूपोंमें उपलब्ध है। दोनों खण्डोंमें ८१-८१ हजार श्लोक हैं। खण्डात्मक स्कन्दपुराणमें क्रमशः माहेश्वर, वैष्णव, ब्राह्म, काशी, अवन्ती (ताप्ती और रेवाखण्ड) नागर तथा प्रभास- ये सात खण्ड हैं। संहितात्मक स्कन्दपुराणमें सनत्कुमार, शंकर, बाह्य, सौर, वैष्णव और सूत-छः संहिताएँ हैं। इसमें बदरिकाश्रम, अयोध्या, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, कन्याकुमारी, प्रभास, द्वारका, काशी, कांची आदि तीर्थोंकी महिमा; गंगा, नर्मदा, यमुना, सरस्वती आदि नदियोंके उद्गमकी मनोरम कथाएँ; रामायण, भागवतादि ग्रन्थोंका माहात्म्य, विभिन्न महीनोंके व्रत-पर्वका माहात्य तथा शिवरात्रि, सत्यनारायण आदि व्रत कथाएँ अत्यन्त ही रोचक शैलीमें प्रस्तुत की गयी हैं। विचित्र कचाओंके माध्यमसे भौगोलिक ज्ञान तथा प्राचीन इतिहासकी ललित प्रस्तुति इस पुराणकी अपनी अलग विशेषता है। आज भी इसमें वर्णित विभिन्न व्रत-त्योहारोंके दर्शन भारतके घर-घरमें किये जा सकते हैं।
इस पुराणकी विशेषताओंको देखकर ‘कल्याण-वर्ष २५, सन् १९५१’ के विशेषाङ्कके रूपमें संक्षिप्त स्कन्दपुराणाङ्कका प्रकाशन किया गया था जिसके स्वाध्यायसे जिज्ञासु साधक अपने आत्मकल्याणका पथ प्रशस्त करते रहे हैं। अब इस संक्षिप्त स्कन्दपुराणको गीताप्रेसद्वारा पुस्तकरूपमें पाठकोंकी सेवामें प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है, धर्मप्रेमी सज्जन इसके स्वाध्याय एवं मननके माध्यमसे पारमार्थिक लाभ उठाते रहेंगे।
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