Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-20%

Mricchakatikam (मृच्छकटिकम्)

300.00

Author Aachary Ramanand Dwivedi
Publisher Bharatiya Book Corporation
Language Sanskrit & Hindi
Edition 1st edition, 2018
ISBN 978-81-85122700
Pages 658
Cover Paper Back
Size 13 x 3 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0078
Other Dispatched In 1 - 3 Days

 

8 in stock (can be backordered)

Compare

Description

मृच्छकटिकम् (Mricchakatikam) मृच्छकटिकम् (अर्थात्, मिट्टी का खिलोना या मिट्टी की गाड़ी) संस्कृत नाट्य साहित्य में सबसे अधिक लोकप्रिय रूपक है। इसमें 10 अंक है। इसके रचनाकार महाराज शूद्रक हैं। नाटक की पृष्टभूमि पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) है। भरत के अनुसार दस रूपों में से यह ‘मिश्र प्रकरण’ का सर्वोत्तम निदर्शन है। ‘मृच्छकटिकम्’ नाटक इसका प्रमाण है कि अंतिम आदमी को साहित्य में जगह देने की परम्परा भारत को विरासत में मिली है जहाँ चोर, गणिका, गरीब ब्राह्मण, दासी, नाई जैसे लोग दुष्ट राजा की सत्ता पलट कर गणराज्य स्थापित कर अंतिम आदमी से नायकत्व को प्राप्त होते हैं।

इसकी कथावस्तु तत्कालीन समाज का पूर्ण रूप से प्रतिनिधित्त्व करती है। यह केवल व्यक्तिगत विषय पर ही नहीं,अपितु इस युग की शासन-व्यवस्था एवं राज्य-स्थिति पर भी प्रचुर प्रकाश डालता है। साथ- ही-साथ वह नागरिक-जीवन का भी यथावत् चित्र अंकित करता है। इसमें नगर की साज-सजावट, वेश्या (वारांगनाओं) का व्यवहार,दास प्रथा,जुआ (द्यूत-क्रीड़ा), विट की धूर्तता,चोरी (चौरकर्म), न्यायालय में न्यायनिर्णय की व्यवस्था ,अवांछित राजा के प्रति प्रजा के द्रोह एवं जनमत के प्रभुत्त्व का सामाजिक स्वरूप भली-भाँति चित्रित किया गया है। साथ ही समाज में दरिद्रजन की स्थिति, गुणियों का सम्मान, सुख-दु:ख में समरूप मैत्री के बिदर्शन, उपकृत वर्ग की कृतज्ञता निरपराध के प्रति दंड पर क्षोभ ,राज वल्लभों के अत्याचार, वारनारी की समृद्धि एवं उदारता, प्रणय की वेदी पर बलिदान, कुलांगनाओं का आदर्श-चरित्र जैसे वैयक्तिक विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है। इसी विशेषता के कारण यह यथार्थवादी रचना संस्कृत साहित्य में अनूठी है। इसी कारण यह पाश्चात्य सहृदयों को अत्यधिक प्रिय लगी। इसका अनुवाद विविध भाषाओं में हो चुका है और भारत तथा सुदूर अमेरिका, रूस, फ्रांस, जर्मनी,इटली, इंग्लैण्ड के अनेक रंगमंचों पर इसका सफल अभिनय भी किया जा चुका है।

मृच्छकटिकम् की कथावस्तु कवि प्रतिभा से प्रसूत है। ‘उज्जयिनी’का निवासी सार्थवाह विप्रवर चारूदत्त इस प्रकरण का नायक है और दाखनिता के कुल में उत्पन्न वसंतसेना नायिका है। चारूदत्त की पत्नी ‘धूता’ पूर्वपरिग्रह के अनुसार ज्येष्ठा है जिससे चारूदत्त को ‘रोहितसेन’ नाम का एक पुत्र है। चारूदत्त किसी समय बहुत समृद्ध था परन्तु वह अपने दया-दाक्षिण्य के कारण निर्धन हो चला था, तथापि प्रामाणिकता, सौजन्य एवं औदार्य के नाते उसकी महती प्रतिष्ठा थी। वसंतसेना नगर की शोभा है- अत्यन्त उदार, मनस्विनी, व्यवहारकुशला, रूप -गुणसंपन्ना एवं साधारण नवयौवना नायिका उत्तम प्रकृति की है और वह आसाधारण गुणों से मुग्ध हो उस पर निर्व्याज प्रेम करती है। नायक की एक साधारण और स्वीया नायिका होने के कारण यह संकीर्ण प्रकरण माना जाता है।

‘मृच्छकटिकम्’ की कथा का केन्द्र है-‘उज्जयिनी’। वह इतना बड़ा नगर है कि ‘पाटलिपुत्र’ का संवाहक उसकी प्रसिद्धि सुनकर बसने को,धन्धा प्राप्त करने को आता है। हमें इसमें चातुर्वर्ण्य का समाज मिलता है– ‘ब्राह्मण’, ‘क्षत्रिय’, ‘वैश्य’ और ‘शूद्र’। ब्राह्मणों का मुख्य काम पुरोहिताई था, पर वे राज-काज में भी दिलचस्पी लेते थे। इस कथा में एक बड़ी गम्भीर बात यह है कि यहाँ ब्राह्मण, व्यापारी और निम्नवर्ण मिलकर मदान्ध क्षत्रिय राज्य को उखाड़ फेंकते हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है और फिर सोचने की बात यह है कि इस कथा का लेखक राजा शूद्रक माना जाता है जो क्षत्रियों में श्रेष्ठ कहा गया है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Mricchakatikam (मृच्छकटिकम्)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×