Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-15%

Vratark (व्रतार्क:)

297.00

Author Pt. Mahesh Datt Tripathi
Publisher Chaukhambha Vidya Bhavan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2014
ISBN -
Pages 608
Cover Hard Cover
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP000001
Other Dispatched in 3 days

 

9 in stock (can be backordered)

Compare

Description

व्रतार्क: (Vratark) प्राचीन काल में ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि उत्तम वर्णों के मनुष्य अपने वर्ण के धर्मानुसार वेद, पुराण, स्मृति और धर्मशास्त्र आदि विद्याओं को बड़े ही परिश्रम से पढ़कर अन्य विद्याभिलाषियों को पढ़ाते थे और उसी उत्तम विद्या के प्रभाव से निज कर्मों को करके अभिलषित फलों को प्राप्त होते थे एवं उसी विद्या के द्वारा दुःखी जनों का दुःख भी निवृत्त करते थे; किन्तु वर्त्तमान समय के मनुष्यों की स्थिति यह है कि ये अपने प्राचीनतम शास्त्रीय अतीव सरल धर्म को, जो शुभ और स्वच्छ मनोवृत्ति द्वारा मोक्षादि चतुर्वर्ग फल का साधक है, अपनी सदसद्विवेकिनी बुद्धि द्वारा समझने का उद्योग नहीं करते और निज कपोलकल्पित धर्मों को मानते हैं। ऐसे मनुष्यों से यदि कोई यह प्रश्न करे कि तुम्हारे इस नवीन धर्म का मूल क्या है? तो ऐसा कल्पित उत्तर देंगे, जिसका कहीं भी कोई प्रमाण नहीं मिलेगा। यदि वे लोग सदाचरित धर्म को मन लगाकर ढूँढ़ें तो संसार में प्रतिष्ठा और परलोक में उत्तम गति को प्राप्त कर सकते हैं; लेकिन वे ऐसा नहीं करते और उनके इस प्रमाद का कारण यह प्रतीत होता है कि उत्तम वर्ण के वे मनुष्य बाल्यावस्था में अपने धर्म से सम्बन्धित विद्या का अभ्यास नहीं करते। यदि वे निज धर्म का थोड़ा-सा भी अभ्यास करते तो अपनी इस विद्या से परिचित होते और युवावस्था को प्राप्त होने पर धर्मसम्बन्धी गूढ़ बातों को भी बड़ी ही सुगमता से समझ जाते।

आजकल के पण्डितों की भी यह स्थिति है कि ये लोग न तो धार्मिक विषयों को परिश्रम करके पढ़ते हैं और न ही किसी अच्छे पण्डित से पूछते हैं; इसी कारण अर्थ का अनर्थ करते रहते हैं। उनके लिये उचित यही है कि वे पहले धार्मिक विषयों का मनन करें और उसके बाद ही धर्म-निरूपण में प्रवृत्त हों। केवल पञ्चाङ्ग में तिथियों की दण्ड-घटी समझकर ही सन्तुष्ट न हो जायें, बल्कि उस धर्म के मूल कारण को भी जानने का प्रयास करें, जिससे कि अन्य लोगों के समक्ष प्रतिष्ठा और जीविकोपार्जन हेतु धन प्राप्त कर सकें। कभी यदि उन्हीं को किसी कर्म को करने-कराने की आवश्यकता पड़ जाय तो उसको विधिपूर्वक सम्पन्न कर सकें, क्योंकि विधिपूर्वक कर्म करने से ही उसका फल प्राप्त होता है। अब देखिये कि हिन्दुओं के धर्म में व्रत भी एक मुख्य धर्म है, जिसके वर्णन में प्राचीन ऋषियों ने सैकड़ों ग्रन्थों का प्रणयन किया है और उन्हीं ग्रन्थों के अनुसार इस समय के मनुष्य अपने सम्पूर्ण कर्मों को करते हैं। मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य आदि स्मृतियों में व्रतों के उल्लेख मिलते हैं। पुराणों में भी व्रतों का उत्तम माहात्म्य वर्णित है, जैसा कि श्रीमद्भागवत में लिखा है कि दैत्यों की माता दिति ने अपने पति कश्यप जी से बली पुत्र उत्पन्न होने के लिए व्रत पूछा था। उन्होंने कश्यप जी के कहने के अनुसार व्रत करके हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष – दो पराक्रमी पुत्र उत्पन्न किये, जिनका वध करने के लिये स्वयं भगवान् विष्णु को नृसिंहावतार धारण करना पड़ा। एक और प्रसिद्ध कथा यह है कि अयोध्या के राजा दिलीप को कोई पुत्र नहीं था। उन्होंने अपने कुलगुरु वशिष्ठ ऋषि के आश्रम पर जाकर उनसे कहा कि महाराज ! पुत्र के विना समुद्रपर्यन्त पृथ्वी का यह राज्य हमारे लिये कथमपि सुखदायक नहीं है। राजा दिलीप के ये वचन सुनकर वशिष्ठ जी ने उनको गोत्रिरात्र व्रत का उपदेश दिया, जिसे विधिपूर्वक सम्पन्न करने से दिलीपपुत्र रघु का जन्म हुआ। उसी रघु ने संग्राम में इन्द्र को परास्त किया और उन्हीं के कारण सूर्यवंश ‘रघुवंश’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।

वर्तमान में भी श्रद्धा के साथ व्रत का अनुष्ठान करने पर वैसा ही फल प्राप्त हो सकता है। प्रायः पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में धार्मिक श्रद्धा अधिक होती है, किन्तु मूल ग्रन्थ संस्कृत भाषा में निबद्ध होने के कारण संस्कृत भाषानभिज्ञ वे स्त्रियाँ व्रतों का विधान ठीक-ठीक नहीं समझ पातीं; इसलिये भाषा टीका के साथ सम्पादित व्रतार्क का प्रस्तुत संस्करण उनके पढ़ने-पढ़ाने के सर्वथा योग्य है। इसे पढ़कर वे स्वयं ही व्रत करने की विधि को समझ सकती हैं और अन्य स्त्रियों को भी उसकी शिक्षा दे सकती हैं।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Vratark (व्रतार्क:)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×