Brihat Stotra Ratnakar (सचित्रः बृहतस्तोत्ररत्नाकरः)
₹210.00
Author | Acharya Devnarayan Sharma |
Publisher | Shri Kashi Vishwanath Sansthan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2023 |
ISBN | 978-93-92989-09-4 |
Pages | 574 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 5 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0263 |
Other | सचित्रः बृहतस्तोत्ररत्नाकरः स्तोत्र संख्या 344 |
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सचित्रः बृहतस्तोत्ररत्नाकरः (Brihat Stotra Ratnakar) प्रायः सभी धर्मों में ईश्वर की स्तुति या उसके महिमा-गान को उपासना का एक महत्त्वपूर्ण अङ्ग माना गया है। अतीतकाल से ही अनगिनत भक्त-साधक ईश्वर प्रेम में तल्लीन होकर अपनी उत्कट अन्तः प्रेरणा से प्रेरित होकर विविध प्रकार के स्तोत्रों के माध्यम से उन्हें प्रसन्न करने के लिए तत्पर रहे हैं। वे ईश्वर के भावपूर्ण गुणगान के साथ ही अपने आर्त्त एवं व्याकुल हृदय की प्रार्थना, अपनी व्यथा और वेदना का निवेदन करते आये हैं। उनके द्वारा रचित स्तोत्र समकालीन तथा परवर्ती काल के असंख्य मानवों के हृदय में भक्तिभाव का उद्रेक करने, चित्तशान्ति, विमल आनन्दानुभूति तथा आध्यात्मिक उन्नति के साधन बने हुए हैं। ये स्तोत्र मानव मन के समस्त कालुष्य, अन्तःकरण की समस्त वासनाओं का क्षय करके उनके हृदय में दिव्य भावों की सृष्टि कर जीवन को सार्थक एवं सफल बनाने में समर्थ हैं। इस प्रकार के स्तोत्र न केवल संस्कृत अपितु सभी भाषाओं में पाये जाते हैं। संस्कृत साहित्य के स्तोत्रों की अपनी पृथक् विशिष्टता है। इनमें भाव और अर्थगाम्भीर्य के साथ प्रसाद, श्रुतिमाधुर्य, शब्दलालित्य, गेयता आदि के सौन्दर्य का जो अपूर्व संगम हुआ है, वह अद्भुत और अतुलनीय है।
वैदिक काल से ही स्तुति या स्तोत्र की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है। वेदों में बहुविध विषयों के स्तोत्रों का विशाल भण्डार उपलब्ध है। वैदिक स्तुतियाँ ‘सूक्त’ के नाम से प्रसिद्ध है, यथा- इन्द्र सूक्त, पृथिवी सूक्त, वरुण सूक्त, पुरुष सूक्त, अग्नि सूक्त आदि। सूक्त और स्तोत्र लगभग समानार्थी हैं। ऋग्वेद के कुछ सूक्त पूर्णरूपेण आध्यात्मिक भावपूर्ण है तो कुछ में विभिन्न देवताओं से आयु, आरोग्य, धन-धान्य, बल-विद्या, सुख-समृद्धि, आदि ऐहिक वस्तुओं की कामना की गई है। कुछ में उन देवताओं की प्रसन्नता के साथ ही स्वयं के पाप-ताप, संकट आदि से मुक्ति तथा रक्षा की प्रार्थना की गई है। इस प्रकार वैदिक सूक्त श्रेय और प्रेय, इहलौकिक अभ्युदय और निःश्रेयस् दोनों कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ है।
वैदिककाल के पश्चात् पौराणिक स्तोत्रों में विषयों की विविधता के साथ छन्दों की विविधता, गेयता आदि का विकास दिखाई देता है। अधिकांश पौराणिक स्तोत्रों में भौतिक समृद्धि की अपेक्षा आत्मकल्याण को अधिक महत्त्व दिया गया है। पुराणों में विशिष्ट देवता से सम्बन्धित स्तोत्रों में प्रधानतः तत्तद् देवताओं के स्वरूप, स्वभाव, महिमा, लीलाओं आदि के वर्णन के साथ ही उनकी कृपा या प्रसन्नता के लिए अभ्यर्थना के भाव पाये जाते हैं। गणेशपुराण, शिवपुराण, पद्मपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, स्कन्दपुराण, भागवतमहापुराण आदि में ऐसे असंख्य स्तोत्र विद्यमान हैं। कुछ पौराणिक स्तोत्रों में दार्शनिक सिद्धान्तों के प्राचुर्य के साथ आध्यात्मिक साधनोपयोगी उपदेशों या निर्देशों का वर्णन मिलता है। किसी स्तोत्र में मुमुक्षु साधक अपने संकुचित बन्धनमय जीवन की व्यर्थता, संसार के क्षणिक सुखों की असारता तथा अपनी क्षुद्रता और असमर्थता के कारण निरवलम्ब, निरुपाय एवं व्याकुल होकर कातरभाव से प्रभु से मुक्ति और उद्धार की कामना करता है। कहीं भक्त-साधक भगवद् दर्शन की एक झलक पाकर मुग्ध और मोहित हुआ भगवान् की अहैतुकी कृपा, असीम अनुकम्पा, भक्तवत्सलता आदि को स्मरण कर तन्मय हो जाता है, तो कहीं शान्तसाधक ज्ञान, भक्ति, वैराग्य आदि आध्यात्मिक सम्पदाओं से अपने जीवन को समृद्ध बनाने की लालसा करता है।
भगवान् को ‘स्तवप्रियः’ कहा गया है अर्थात् वे अपने भक्तों द्वारा शुद्ध हृदय से की गई स्तुति से सद्यः प्रसन्न होते हैं। अहर्निश किये गये ज्ञाताज्ञात अपराधजन्य पापों से मुक्ति का प्रमुख, सरल व सहज साधन प्रार्थना या स्तुति ही है। हमारे जीवन को आलोकित करने का सरलतम उपाय सच्चे हृदय से किया गया ईशस्तवन है। इससे समस्त सांसारिक संतापों का शमन तो होता ही है साथ ही ईश्वर के साथ तादात्म्य की अनुभूति भी होती है।
आकार की दृष्टि से भी स्तोत्रों के कई प्रकार हैं, यथा-एक श्लोकात्मक, चतुःश्लोकी, स्तुतिपंचकम्, षट्कम्, अष्टकम्, दशकम आदि। साधक महापुरुषों द्वारा रचित स्तोत्रों में रचयिता के आध्यात्मिक व्यक्तित्व, उनकी साधना तथा अनुभूति की शक्ति अन्तर्निहित होने के कारण वे स्तोत्र पाठक या श्रोता के हृदय में अनुकूल भावों का संचार कर उसे उच्च भावभूमि में आरूढ़ कराने की अपूर्व क्षमता रखते हैं। ऐसे स्तोत्रों का पाठ चित्त को शुद्ध, शान्त कर उसे पावन बनाने का अमोघ उपाय है। चित्तशुद्धि का इससे बड़ा कोई साधन नहीं है। स्तोत्ररूपी वाड्मयीपूजा को सफल बनाने के लिए साधक को अन्तर्बाह्य शुचितासम्पन्न होकर शान्त, एकाग्र और श्रद्धायुक्त चित्त से स्पष्ट स्वर में शुद्ध उच्चारण के साथ अर्थबोध और भावग्रहण पूर्वक अपने इष्टदेव की प्रसन्नता हेतु स्तोत्रपाठ का विधान है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में भगवान गणेश, शिव, देवी लक्ष्मी, राम, कृष्ण, मारूति के विविध स्तोत्रों के साथ सूर्यादि नवग्रह, विभिन्न अवतारों, गंगादि नदी, वेदान्त आदि से सम्बद्ध विविध स्तोत्रों का संकलन अनेक पुराणों, ब्रह्मयामल, नारद पंचरात्र आदि ग्रन्थों से किया गया है। इसके अतिरिक्त प्रकीर्ण स्तोत्रों के अन्तर्गत संकलित अनेक स्तव, स्तोत्र, स्तुतियाँ मनुष्यों की विविध कामनाओं की पूर्ति करने वाली है। अनेक प्रकार के कवच, ध्यान, प्रणाम् मंत्रादि को मिलाकर कई सिद्धस्तोत्रों का प्रयोग सांसारिक विघ्न बाधाओं से निवृत्ति, ग्रहों की अनुकूलता, देवता की प्रसन्नता के लिए हैं। अनेक ऐसे कामना-पूरक सिद्ध स्तोत्र हैं जिसके विधिपूर्वक अनुष्ठान या पाठ से सांसारिक ऐश्वर्य की प्राप्ति तो होती है साथ ही, भूत, प्रेत आदि की विघ्न बाधा, असाध्य रोगों से मुक्ति, संकट, क्लेश आदि से पूर्णतः रक्षा सम्भव है। ऐसे स्तोत्रों का चयन ग्रन्थ की लोकप्रियता में वृद्धि करने वाला है।
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