Baal Bodha Jyotisham (बालबोध ज्योतिषम)
₹170.00
Author | Shree Harihardatta Dixhit |
Publisher | Rajya Shree Prakashan Mandir |
Language | Sanskrit Text With Hindi Translation |
Edition | 1st edition, 2021 |
ISBN | - |
Pages | 216 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | RTP0091 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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बालबोध ज्योतिषम (Baal Bodha Jyotisham)
वेदस्य निर्मलं चक्षु ज्योतिः शास्त्रमकल्मषम् ।
विनैतदखिलं श्रौत स्मार्त कर्म न सिद्धयति ।।
श्रौत स्मार्त कर्मों और नैमित्यक व्यवहारिक कार्यों की सिद्धि इसी ज्योतिःशास्त्र पर निर्भर है। वेदो, शास्त्रों, पुराणों पर अटल श्रद्धा रखने वाले सनातन धर्मावलम्बी सज्जनों के नैत्यिक कार्यों का निर्वाह बिना इस शास्त्र के एक दिन भी नहीं चल सकता। धार्मिक जनता इसी शास्त्र के आदेशानुसार तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, लग्नशुद्धि और अनेक योगों के सम्बन्ध से निश्चित मुहूतों में ही दर्श-पौर्णमास इष्टि वैदिक कर्मो को एकादशी, प्रदोष, शिवरात्रि, रामनवमी, कृष्णाष्टमी इत्यादि स्मार्त-वैष्णव पौराणिक व्रतो, गर्भाधानादि, विवाहान्त संस्कारो, यात्रा, कृषिकर्म, लेन-देन, वस्त्राभूषणधारण, जलाशयनिर्माण, जलोत्सर्ग, गृहनिर्माण इत्यादि सम्पूर्ण कार्यों को करती है। जैसे हमारे जीवन और स्वास्थ्य पर जल स्थल वन-उपवन पर्वत आदि तथा सामयिक जलवायु एवं परस्थितियों का प्रभाव प्रत्यह पड़ता रहता है उसी भांति आकाशस्थ चन्द्र-सूर्य आदि अनेकों पिण्डों के सात्रिध्य, दूरत्व, भाग-परिवर्तन आदि का भी प्रभाव पूर्णरूप से पड़ता रहता है। उसी को हमारे पूर्वजों ने नक्षत्र-योग आदि एवं स्पष्टग्रह के उच्च, नीच, उदय, अस्त, वक्री मार्गी इत्यादि रूप से सरल कर बताया है। अतएव वैज्ञानिक सिद्धांतो के रहस्यों से परिपूर्ण ज्यौतिष शास्त्र पर सनातन धर्मावलम्बी जनता पूर्ण विश्वास रखती है। अपनी अनभिज्ञता का परिचय न देकर इस विषय पर गंभीर अन्वेषण की आवश्यकता है। अतः किस मुहूर्ती में किन-किन कार्यों का करना उचित या अनुचित होगा इसका ज्ञान प्रत्येक भारतीयों का प्रधान कर्त्तव्य है। परन्तु आज तक किसी ने ऐसी उपयोगी पुस्तक नहीं तैयार किया कि केवल एक ही पुस्तक से साधारणतः समस्त व्यावहारिक विषयों का परिचय भलीभाँति हो जाय। कुछ दिन पूर्व मुझे एक जीर्ण शीर्ण पुस्तक प्राप्त हुई जो कि अंशतः मेरे विचारानुकूल थी परन्तु उसमें विशेष अशुद्धियां थीं, अतः उस पुस्तक का कुछ सहयोग प्राप्त कर वर्तमान स्वरूप में उपर्युक्त उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये मैने इस लघुकाय ‘बालबोध ज्यौतिषम् एवं वर-कन्या नक्षत्र मेलापक एवं व्यवस्था‘ नामक छोटी पुस्तक का संग्रह किया है। इसमे मैने ६ प्रकरण रखे है। जो इस प्रकार है-
१. संज्ञाप्रकरणम् में काल-परिभाषा, तिथि-वार-नक्षत्र-योग-करणादिकों के नाम तथा उनकी विशेष संज्ञाये एवं तिथिवारनक्षत्रों के संबंध से उत्पन्न नाना प्रकार के योग-कुयोग-संयोग का वर्णन…. इत्यादि। २. मुहूर्तप्रकरणम् में – कृषि (हलजोजना, बीजबोना, सस्य रोपना, काटना, धान्यमर्दन, धान्यस्थिति इत्यादि) कर्म के मुहूर्त, लेन-देन, क्रय-विक्रय, जलाशय-गेहारम्भ और देव कार्य प्रतिष्ठा इत्यादि अनेकों नित्य व्यवहारों के मुहूर्त। ३. संक्रान्ति-गोचनप्रकरणम् में संक्रान्तियों के पुण्यकालादिकों का निर्णयादि, जन्मराश्यादिगत ग्रहों के फल, ग्रहण फल और उसके अरिष्टशान्त्यर्च उपाय। ४. संस्कारप्रकरणम् में – रजस्वलास्नान, गर्भाधानादि…. उपनयनसंस्कारों के मुहूर्त। ५. विवाहप्रकरणम् में – वर-कन्या विवाहकाल और उनके लक्षण, राशि मेलापक, अहमेलापक, सांगविवाहमुहूर्त, वधूप्रवेश-द्विरागमन-द्वयंगयात्रा के मुहूर्त तथा इनके विषय में आधुनिकों द्वारा किये गये मतभेद पर विशद विचार और आधुनिक निराकरण पूर्वक शास्त्रानुसार निर्णय इत्यादि पुस्तक के परिशिष्ट में वर-कन्या नक्षत्र मेलापक का भी समावेश पुस्तक के अन्त में किया है। ६. यात्राप्रकरणम् में – यात्रा मुहूर्त, युद्धयात्रा के राजयोग, सर्वधात तिथिचक्र, यात्रा करने की विधि, यात्रा में शुभाशुभ शकुनादि। ७. जातकप्रकरणम् में ग्रहस्पष्ट, लग्नस्पष्ट, द्वादशभावानयन, नैसर्गिक तात्कालिक ग्रहमैत्री, विंशोत्तरीय योगिनीदशान्तर्दशाओं के बनाने के प्रकार, जैमिनिमुनिमतानुसार संक्षेप से आयुर्दायानयन विंशोत्तरीमहादशा-अन्तर्दशा-प्रत्यन्तर्दशा चक्र इत्यादि । ८. ताजिकप्रकरणम् में – वर्षेष्ट, द्वादशवर्गी, पञ्चवर्गीबल, वर्षेश निर्णय, मुन्धानयन, मुद्दानयन, मुद्दादशा, त्रिपताकिचक्र का विचार इत्यादि । ९. प्रकीर्णप्रकरणम् में – केरलीय प्रश्न, प्रश्नलग्नवशात् पित्रादिदोषविचार, अंगस्फुरण, नेत्रस्फुरण, पल्लीपतन, सरटारोहण इत्यादि अनेक फुटकर विषयों का सन्निवेश किया गया है।
आवश्यकतानुसार तत्तत्स्थलों पर उदाहरण भी दे दिया है। व्यावहारिक विषयों में जहाँ कहीं पण्डितों के मतभेद पाये जाते हैं या किसी विषय में किसी ने अपना अपूर्व पाण्डित्यप्रकाशन करने के लिए दुराग्रह से मतभेद खड़ा कर दिया वहाँ पण्डितों का चित्त उस ओर आकर्षित करने के अभिप्राय से टीका या टिप्पणी में ऊहापोह पूर्वक आर्षसिद्धांत भी दिया गया है, ताकि विज्ञवृन्द पक्षपातरहित होकर अपनी सारासारपरिशीलनी बुद्धि से विचार करें।
इस संग्रह में मैंने जहाँ से जो वचन मिले हैं शीर्षक के सामने उस ग्रन्थ का नाम लिख देने का प्रयत्न किया है। और इसमें संगृहीत विषयों में से जहाँ किसी विषय की पुनरावृत्ति की आवश्यकता पड़ी है वहाँ उसका संकेत भी कर दिया है। विशेष सौकर्य के लिए कोष्टक में वहीं पर उस विषय का सन्निवेश कर दिया है। वर-कन्या नक्षत्र मेलापक में श्री चांदरतन लढ़ा ने पूर्ण सहयोग किया है, अतः विशेष धन्यवाद के पात्र है।
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