Manusmriti Set of 3 Vols. (मनुस्मृतिः 1-3 भागो में)
₹1,625.00
Author | Pt. Shree Jagannath Shastri Tailang |
Publisher | The Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2011 |
ISBN | 978-81-217-0245-4 |
Pages | 1651 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0413 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मनुस्मृतिः 1-3 भागो में (Manusmriti Set of 3 Vols.) ‘मनुस्मृति’ का यह संस्करण श्रीकुल्लूकभट्ट द्वारा प्रणीत प्राचीन संस्कृत व्याख्या ‘मन्वर्थमुक्तावली’ और इस जीव द्वारा समुद्भावित हिन्दी व्याख्या ‘तात्पर्यदीपिका’ के साथ आपकी सेवा में समर्पित है। संस्कृत व्याख्या के कोष्ठक में ‘मनुस्मृति’ के कारिकास्थित वे मूल शब्द दिये गये हैं, जो वहाँ नहीं है। हिन्दी व्याख्या ‘तात्पर्यदीपिका’ ‘मन्वर्थमुक्तावली’ और मेधातिथिकृत ‘मनुभाष्य’ पर आधारित है।
‘मनुस्मृति’ के प्रसिद्ध टीकाकार इस प्रकार हैं- मेधातिथि, कुल्लूकभट्ट, सर्वज्ञ नारायण, राघवानन्द, नन्दन, रामचन्द्र, गोविन्दराज, माधवाचार्य, धरणीधर, श्रीधरस्वामी, रुचिदत्त, विश्वरूप, भोजदेव, भारुचि आदि। इनमें ‘मन्वर्थमुक्तावली’ और ‘मनुभाष्य’ का विशेष स्थान है।
‘मन्वर्थमुक्तावली’ कार श्रीकुल्लूकभट्ट वारेन्द्रि अथवा वरेन्द्री नन्दनवासि नामक कुल में उत्पन्न गौड-ब्राह्मण श्रीभट्ट दिवाकर के सर्वशास्त्रपारङ्गत सुयोग्य पुत्र थे, जिन्होंने काशी की उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर इस टीका का प्रणयन किया। (द्रष्टव्य-टीका का मंगल पद्य और अन्तिम पुष्पिका)
‘मनुभाष्य’ कार मेधातिथि का पूर्ण नाम भट्ट मेधातिथि स्वामी था। आप भट्ट श्री वीरस्वामी के पुत्र थे। आपके द्वारा प्रणीत मनुभाष्य लुप्त हो गया था, जिसका जीर्णोद्धार इतस्ततः प्राप्त हस्तलेखों के आधार पर सहारण के पुत्र राजा मदन ने कराया (द्रष्टव्य- द्वितीयाध्याय टीका का अन्तिम पद्य और पञ्श्चम अध्याय की पुष्पिका)। ‘धर्मशास्त्र ग्रन्थमाला के नवम पुष्प के रूप में विद्वद्वरेण्य श्री जगन्नाथ रघुनाथ धारपुरे द्वारा सम्पादन कर मुम्बई से १९२० ई० में इसका प्रथम संस्करण प्रकाशित किया गया था। उसकी प्रति अपने व्यक्तिगत पुस्तकसंग्रह से पण्डितराज राजेश्वर शास्त्री द्राविडजी के सुयोग्य पुत्र, व०शा०
साङ्गवेद विद्यालय, रामघाट वाराणसी के अध्यक्ष विद्वद्वरेण्य मित्रबन्धु पं० श्रीविश्वेश्वर शास्त्री द्राविड ने उपलब्ध करायी; जिसका उपयोग’तात्पर्यदीपिका’ में किया गया है। एतदर्थ आप साधुवाद के पात्र हैं’
भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी के सञ्चालन-व्यवस्थापक श्री राकेश जैन की प्रेरणा से यह संस्करण आपकी सेवा में समर्पित है। एतदर्थ वे साधुवाद और शुभाशीर्वाद के भाजन है। माता अन्नपूर्णा और बाबा विश्वनाथ प्रकाशन क्षेत्र में आपका उत्तरोत्तर उत्कर्ष करें यही मंगल कामना है।
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