Bharatiya Dharma Shastra Vihitasya (भारतीय धर्मशास्त्र विहितस्य)
₹480.00
Author | Dr. Sadashiva Prahraj |
Publisher | Bharatiya Vidya Prakashan |
Language | Sanskrit & English |
Edition | 1993 |
ISBN | 81-217-0100-7 |
Pages | 416 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | TBVP0442 |
Other | Old & Rare Book |
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भारतीय धर्मशास्त्र विहितस्य (Bharatiya Dharma Shastra Vihitasya) हमारे प्रायः सभी धर्मशास्त्रकारों ने चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावास्या, प्रतिपद् आदि तिथियों को अध्ययन नहीं करने का निर्देश दिया है और इसके लिए उन्होंने दिखाया है कि इन तिथियों को अध्ययन करने से गुरु, शिष्य आदि की मृत्यु हो जाती है। प्रश्न उठता है कि आज तो प्रायः सभी भारतीय रविवार को हो मुख्य अवकाश रखते हैं और चतुर्दशी आदि उपर्युक्त तिथियों को अध्ययन करते हैं, किन्तु उनकी मृत्यु तो नहीं देखी जाती है? तो क्या हमारे प्राचीन ऋषियों ने इन तिथियों को अध्ययन करने पर जिन आशङ्काओं अथवा पापों का वर्णन किया है, वह मिथ्या है ? क्या हमारे महर्षि झूठ-मूठ की बातें ही धर्मशास्त्रों में लिखा करते थे ? बज के वैज्ञानिक युग में हम इन धारणाओं को निश्चित रूप से असत्य घोषित कर देंगे, परन्तु यदि इन विवेचित विषयों की गम्भीरतापूर्वक हम जाँच-पड़ताल करें तो पाएंगें कि हमारे ऋषियों-महर्षियों ने कोई बात अनायास ही नहीं कर दी है।
हाँ, यह बात सही है कि उन्होंने मानवों को उस विषय की ओर प्रेरित करने के लिए कुछ अतिरञ्जना का सहारा लिया है अथवा कहा जा सकता है कि उन्होंने अर्थवादों का प्रयोग किया है। जिस तरह वैदिक विधि-वाक्यों के साथ हम अर्यबाद-वाक्यों का प्रयोग पाते हैं उसी तरह हमारे धर्मशास्त्रकारों ने भी किसी तथ्य का निषेध करने के लिए अर्थवाद-वाक्यों का प्रयोग किया है। यह बात सही है कि चतुर्दशी आदि को अध्ययन करने से हम शिष्य आदि की मृत्यु नहीं देखते हैं, किन्तु निश्चित रूप से चतुर्दशी आदि का अध्ययन विशेष लाभप्रद नहीं हो पाता है।
यद्यपि धर्मशास्त्रकारों के द्वारा जिन तथ्यों का उल्लेख किया गया है, वै आर्प-वाक्य हैं और आर्ष-वाक्यों पर किसी भी प्रकार का प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता है, फिर भी आज हम उन ऋषियों के वाक्यों को भी तब तक ग्राह्य नहीं मानते हैं जब तक हमें उनका स्पष्टीकरण प्राप्त न हो जाए। इसी को ध्यान में रखते हुए डॉ० प्रहराज ने अपने प्रस्तुत ग्रन्थ के माध्यम से कुछ ऐसे अकाट्य तर्क प्रस्तुत किये हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि चतुर्दशी आदि तिथियों को अध्ययन करना लाभप्रद नहीं हो सकता है।
मनुष्य एक विवेकशील प्राणी होने के कारण ही अन्य पशुओं से भिन्न है और उसका मन उसके सभी कार्यों को नियन्त्रित करने वाला होता है। यदि मन स्वयं नियन्त्रित नहीं रहता है तो उसके कार्य भी नियन्त्रित नहीं रहेंगे। हमारे धर्मशास्त्रकार यह जानते थे कि पूर्णिमा, अमावास्या आदि तिथियों को मानव मन पूरी तरह से नियन्त्रण में नहीं रहता है, अतः उस दिन का किया हुआ कार्य कभी भी पूर्ण फलप्रद नहीं हो सकता है।
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