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महाभारत की कथा – 1

महाभारत की कथा – 1
बात उन दिनों की है जब भगवान कृष्ण द्वारा द्वारकापुरी बसाई जा रही थी। एक दिन यदुवंशी बालक पानी की इच्छा से इधर-उधर घूम रहे थे। इतने ही में उन्हें एक महान् कूप दिखायी पड़ा, जिसका ऊपरी भाग घास और लताओं से ढका हुआ था। उन बालको ने परिश्रम करके जब कुए के ऊपर का घास-फूस हटाया तो उसके भीतर बैठा हुआ एक बहुत बड़ा गिरगिट दिखायी दिया। बालक हजारो की संख्या में थे, सब मिलकर उस गिरगिट को वहा से निकलने के यत्न में लग गए। किन्तु गिरगिट का शरीर चट्टान के सामान था, लड़के उसे किसी तरह भी निकाल नहीं पाए। हारकर सभी ने भगवान् श्रीकृष्ण से यह वृतांत सुनाया।
यह सुनकर भगवान् श्रीकृष्ण ने उस गिरगिट को कुए से बहार निकला। भगवान् के पावन हाथो का स्पर्श पाकर उस गिरगिट की देह से एक दिव्यपुरुष निकल कर भगवान् को प्रणाम करने लगा। बच्चे आश्चर्यचकित होकर प्राणशून्य गिरगिट तथा उस पुरुष को देखने लगे। भगवान् कृष्ण के पूछने पर उस पुरुष ने अपने पूर्व जन्म का वृतांत इस प्रकार सुनाया –
पूर्वजन्ममें मैं राजा नृग था। एक अग्रिहोत्री बाह्मण के परदेश चले जाने पर उसकी एक गाय भागकर मेरी गौओं के झुण्ड में आ मिली। मेरे ग्वालोंने दान के लिये मैगायी हुई एक हजार गौओं में उसकी भी गिनती करा दी और मैंने उसे एक ब्राह्मण को दान कर दिया। परदेश से वापस आकर जब उस ब्राह्मण को अपनी गाय ढूँढ़ते ढूँढ़ते उस ब्राह्मण के घर मिली, जिसे मैंने दान किया था। तब उस गाय को लेकर उन दोनोंमें झगड़ा होने लगा और दोनों ही क्रोधमें भरकर मेरे पास आये। मैं धर्मसंकट में था, इस कारण मैंने दान लेनेवाले बाह्मण से कहा-‘भगवन्! में इस गाय के बदले आपको दस हजार गौएँ देता हूँ, आप इनकी गाय इन्हें वापस दे दीजिये।’ उसने जवाब दिया- महाराज! यह गाय सीधी-सादी, मीठा दूध देनेवाली है। धन्यभाग, जो यह मेरे घर आयी। यह अपने दूधसे प्रतिदिन मेरे मातृहीन दुर्बल बच्चेका पालन करती है; में इसे कदापि नहीं दे सकता।’ यह कहकर वह वहाँसे चल दिया। तब मैंने दूसरे ब्राह्मणसे प्रार्थना की ‘भगवन्! आप उसके बदलेमें एक लाख गाय और ले लीजिये।’ वह बोला- ‘मैं राजाओंका दान नहीं लेता, में अपने लिये धनका उपार्जन करनेमें समर्थ हूँ। मुझे तो शीघ्र मेरी वहीं गाय ला दीजिये।’ मैंने उसे बहुत प्रलोभन दिया; परन्तु वह उत्तम ब्राह्मण कुछ न लेकर तत्काल चुपचाप चला गया।

इसी बीच में काल की प्रेरणासे मुझे शरीर त्यागना पड़ा और पितृलोक में पहुँचकर में यमराज से मिला। उन्होंने मेरा बहुत आदर-सत्कार करके दो पापकर्मों का फल पहले या पीछे भोगने-हेतु पूछा। जब मैंने दो पापकर्म सुनकर आश्चर्य किया, तब धर्मराज ने कहा- ‘आपने प्रजाके धन- जन की रक्षा के लिये प्रतिज्ञा की थी; किंतु उस ब्राह्मणकी गाय खो जानेके कारण वह प्रतिज्ञा झूठी हो गई दूसरी बात यह है कि आपने ब्राह्मण के धनका भूलसे अपहरण भी कर लिया था, इस तरह आपके द्वारा एक नहीं, दो अपराध हुए हैं। पापकर्मोंके फलस्वरूप मुझे गिरगिट की योनि मिली। गिरगिटका जन्म पाकर भी मेरी स्मरणशक्ति ने साथ नहीं छोड़ा था। भगवन् ! आपने मेरा उद्धार कर दिया, अब मुझे स्वर्गलोक जानेकी आज्ञा दीजिये।’

भगवान् श्रीकृष्णने राजा को आज्ञा देकर कहा- ‘समझदार मनुष्य को ब्राह्मण के धन का अपरहण नहीं करना चाहिये; क्योंकि चुराया हुआ ब्राह्मण का धन चोर का ही नाश कर देता है।’

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