Ashtamangal Kala Pratik (अष्टमंगल कला प्रतीक)
₹255.00
Author | Dr. Nilkantha Purushottam Joshi |
Publisher | Pilgrims Publishing |
Language | Hindi |
Edition | 2016 |
ISBN | 978-9350760864 |
Pages | 154 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | PGP0125 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
अष्टमंगल कला प्रतीक (Ashtamangal Kala Pratik) भारतीय कला के वर्ण्य विषय सामाजिक जीवन दर्शन एवं विचारों के संवाहक हैं। भारतीय समाज के ‘महाजन’ और ‘सामान्यजन’ दोनों की धार्मिक मान्यताओं का समादर भारतीय कलाओं में हुआ है। ऋग्वेद में प्रतिपादित है- ‘रूपं रूपं प्रतिरूपोबभूव’ अर्थात् विश्व में जितने विविध रूप हैं वे सभी किसी मूल रूप के अनुसार उत्पन्न हुए हैं। एक रूप से ही सर्वरूप बना है। जो प्रतिरूप है उसकी सबसे अधिक अभिव्यक्ति प्रतीक द्वारा ही की जा सकती है। प्रतीक ही अमूर्त की सच्ची मूर्ति है। प्रतीकों के माध्यम से कला में आभ्यान्तर अर्थ और बाह्य रूप का जहां एक समान रमणीय विधान हुआ है वही श्रेष्ठ कला की अभिव्यक्ति है। वस्तुतः लोक और लोकोत्तर विषयों में घनिष्ठ सम्बन्ध प्रतीकों से रहा है जो मानवीय अर्थों से ऊपर दिव्य अर्थों की ओर संकेत करते हैं। वास्तविकता यह है कि एक रूप निंदित हो सकता है परन्तु अध्यात्म या अर्थ के साथ वह पूज्यनीय बन जाता है। कला के रूपों के मूल में छिपे सूक्ष्म अर्थ का परिचय प्राप्त करने से कला की सौन्दर्यानुभूति पूर्ण और गंभीर बनती है। प्रतीक- पूर्णता के निर्माण, उसे पहचानने में, समझने में विशिष्ट भूमिका का निर्वहन करते हैं। यही भारतीय मत है।
अष्टमंगल समग्रता में जहां एक विचारधारा है वही एकाकी रूप से ऐसा सर्वोत्तम मांगलिक चिह्न है जो अपने भाव (प्रतिरूप) का अधिकतम परिचय देता है जिससे उसका सर्वोत्तम दर्शन समाज को प्राप्त होता है। प्रस्तुत कार्य गत वर्षों के अपेक्षाकृत गम्भीर प्रयासों का परिणाम है जिसे व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर अनुनय-विनय कर पुस्तकाकार स्वरूप प्रदान किया जा सका है। यह कार्य इस दृष्टि से और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि डॉ. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने प्रथम दृष्ट्या मांगलिक चिह्नों के शोध एवं प्रकाशन में अपनी विशेष सहृदयता का परिचय दिया। इस कार्य में वरिष्ठ विद्वान् सम्पादकों के साथ कार्य करने का अविस्मरणीय अनुभव रहा है। संकलित लेखों के विद्वानों का प्रकाशनार्थ संयम अत्यंत प्रेरणादायक रहा है।
Reviews
There are no reviews yet.