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Shabar Mantra Siddhi (शाबर मन्त्र सिद्धि)

42.00

Author Dr. Chaman Lal Gautam
Publisher Sanskriti Sansthan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2013
ISBN -
Pages 160
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code SS0010
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Description

शाबर मन्त्र सिद्धि (Shabar Mantra Siddhi) गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में इस सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि श्री उमा-महेश्वर ने कलियुग के प्राणियों पर दया करके शाबर मन्त्रों की रचना की, ताकि उनके कष्ट अल्प साधन से ही नष्ट हो जायें। यह ठीक है कि इन मन्त्रों में गणित अक्षरों का आपसी सम्बन्ध नहीं होता, वे अनमेल होते हैं। इसका कोई अभिप्राय और लक्ष्य भी इनसे प्रकट नहीं होता। फिर भी देवों के देव महादेव की परम कृपा से यह मन्त्र तुरन्त अपना चमत्कारिक प्रभाव दिखाते हैं।

कलि विलोकि जगहित हर गिरिजा।
साबर मन्त्रजाल जिन्ह सिरिजा ।।
अनमिल आखर अरथ न जापू।
प्रगट प्रताप महेश प्रतापू ।।

इसका एक कारण यह बताया गया है कि अन्य सभी मन्त्रों को कीलित किया गया है, वे उत्कीलन से ही अपना प्रभाव दिखाते हैं परन्तु शाबर मन्त्रों को कीलित नहीं किया गया है। इसलिए अन्य मन्त्रों की अपेक्षा कम समय और साधना से ही वे सिद्ध हो जाते हैं। वैदिक, पौराणिक और तन्त्रोक्त अनेकों ऐसे मन्त्र हैं जिनकी साधना और सिद्धि में अत्यन्त सावधान रहना पड़ता है। असावधानी से अनुष्ठान में किया गया सारा श्रम व्यर्थ हो सकता है।

त्रुटियों का परिमार्जन न किया जाता रहे तो सफलता ‘सन्दिग्ध रहती है। जिस देवता की उपासना की जा रही है, उनके स्वभाव में यदि उग्रता है, तो आशा के विपरीत प्रभाव भी देखना पड़ सकता है। परन्तु शाबर मन्त्रों की साधना में ऐसी कोई आशंका नहीं है। कुछ शाबर मन्त्र तो ऐसे हैं, जिनकी सिद्धि करने की भी आवश्यकता नहीं होती। उनके उच्चारण मात्र से ही चमत्कारिक लाभ होते हैं। जिन्हें सिद्ध करना आवश्यक होता है वे अल्प साधना से उज्जीवित हो उठते हैं अथवा सिद्ध हो जाते हैं और प्रयोग करने पर अभीष्ट फल देते हैं। जिस शाबर मन्त्र की सिद्धि करना अभीष्ट हो, उसकी विधिवत् दीक्षा सिद्ध गुरु से लेनी चाहिए। इसके बाद ही ग्रहण काल, होली या दिवाली की रात्रि को उस विशिष्ट मन्त्र के लिए आवश्यक मन्त्र जप करना भी आवश्यक है ताकि उसकी शक्ति निरन्तर बढ़ती रहे और प्रयोग करने पर असफल न हो।

सिद्धि के लिए कितने मन्त्र जप की अपेक्षा है, यह प्रायः मन्त्रों के साथ उपलब्ध होता है। जहाँ ऐसा उल्लेख न हो, वहाँ जप संख्या १०८ या १००८ समझनी चाहिए। शाबर मन्त्रों के विधान प्रायः पुस्तकों में अपूर्ण ही मिलते हैं। इसलिए उचित यही है कि इनकी पूर्ण जानकारी गुरु मुख से ही करें। यदि सिद्धि अथवा सफलता अनिश्चित और अशक्त दिखाई दे रही हो तो विधान की अपूर्णता समझनी चाहिए। इस स्थिति में यही उचित रहेगा कि किसी शाबर मन्त्र विशेषज्ञ से परामर्श करें।

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