Kautilya Arthashastram (कौटिलीय अर्थशास्त्रम्)
₹1,101.00
Author | Shyamlesh Kumar Tiwari |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2024 |
ISBN | 97-89386554000 |
Pages | 664 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0415 |
Other | Dispatched in 3 days |
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कौटिलीय अर्थशास्त्रम् (Kautilya Arthashastram) ‘निवेशग्रन्थयोः शास्त्रम्’ अर्थात् आज्ञा, व्याकरण, समादेश, नियम, वेदविधि, धार्मिक ग्रन्थ, वेद, धर्मशास्त्र आदि ग्रन्थों को शास्त्र कहा गया है। (अमर 3/179)। किसी विषय- सम्बन्धी कार्यों के क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं; जैसे वेदान्त, सांख्य, न्याय, योग, तर्क, अलंकारादि शास्त्र हैं। मानव के अर्थ-सम्बन्धी प्रयासों का जिसमें विवेचन होता है, उसे अर्थशास्त्र कहते हैं। अर्थशास्त्र का ध्येय विश्व कल्याण है। इसकी दृष्टि अन्तर्राष्ट्रीय है एवं इसमें मनुष्यों के कल्याण एवं अर्थ सम्बन्धी सभी कार्यों का क्रमबद्ध अध्ययन है।
महाभारत के अनुसार प्रारम्भ में धर्म, अर्थ एवं काम इन तीनों शास्त्रों के एकत्र विचार को ‘त्रिवर्ग-शास्त्र’ नाम से जाना जाता था। उसके आद्य निर्माता ब्रह्मा थे। उसका संक्षिप्त रूप सर्वप्रथम शिव ने ‘वैशालाक्षग्रन्थ’ तथा उसका पुनः-संक्षेप इन्द्र ने ‘बाहुदन्तक’ ग्रन्थ में किया। पुनश्च वृहस्पति ने इसका संक्षेपीकरण कर इसमें अर्थ-वर्ग को प्रधानता दी।
कौटिलीय अर्थशास्त्र क्रमबद्ध ग्रन्थ है। इसमें राजनीति, दण्डनीति, समाजशास्त्र, युद्धविद्या, व्यवसाय, नाविक, सैनिक इत्यादि दृष्टियों से ठोस विचार उपस्थित किये गये हैं। यह शास्त्र 15 अधिकरणों, 180 प्रकरणों तथा 150 अध्यायों में विभक्त है तथा इसमें 6000 श्लोक हैं। कौटिल्य ने स्वयं लिखा है-इस शास्त्र का उद्देश्य है पृथिवी के लाभ-पालन के साधनों का उपाय करना है। प्रस्तुत संस्करण में विद्वान् लेखक ने सरल हिन्दी अनुवाद करके पाठकों एवं पुस्तक प्रेमियों के लिए इसको और अधिक रुचिकर बनाने का प्रयास किया है।
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