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Mahakavi Banbhatt Pranit Harshcharita ka Sahityik Adhyayan (महाकवि बाणभट्ट प्रणीत हर्षचरितम का साहित्यिक अध्ययन)

560.00

Author Dr. Rampher
Publisher Bharat Bharati
Language Hindi
Edition 2023
ISBN 978-81-952702-5-5
Pages -
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code BBH0005
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Description

महाकवि बाणभट्ट प्रणीत हर्षचरित का साहित्यिक अध्ययन (Mahakavi Banbhatt Pranit Harshcharita ka Sahityik Adhyayan) साहित्य जगत् का नियन्ता तथा सञ्चालयिता सष्वदय कवि ही होता है। अपने साहित्य के माध्यम से वह अन्त काल तक अपने यशः शरीर से विद्यमान रहता है। निसर्ग ने ही मुझे प्रेय से विरत श्रेय से संशक्त कर दिया था। फलस्वरूप में सफलता अर्जित करने के पश्चात् इतस्ततः जीवनक्रम में न आकर शोध कार्य में व्याप्त हुआ। पूज्यचरणारविन्द पिताजी की गरिमामयी शुभाकांक्षाओं का इस कार्य में अल्प सहयोग रहा। तीन वर्ष तक इतस्ततः भ्रमणं करने के बाद प्रथम वर्ष शोध का विषय मात्र नियत हो पाया। कवि की स्वीकृति-“क ईश्वरः कर्मसु कर्कशविधौ” का इस कार्य पर लगभग दो वर्ष व्यापक प्रभाव रहा।

तदनन्तर शीघ्र ही प्रज्ज्वलित यश एवं प्रताप बाले सम्राट् के गुणों को प्रतिपादित करने वाले जगुहितुभ्यस्तवाङ्मयैः ससारिकैः पञ्जरवर्तिभिः शुकैः। निगृह्यमाणा बटवः पदे- पदे यजूंषि सामानि च यस्य शंकिताः। ऐसे विद्वान् वंश में प्रादुर्भूत कवियों में पञ्चानन महाकवि बाण द्वारा विरचित हर्षचरित पर अध्ययन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध सम्पादन में जहाँ पहाड़ जैसे अन्यों की उपलब्धि के अभाव ने दुरूहता उपस्थित थी, वहीं नियति की कुदृष्टि ने भी अपना कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। मेरे तात स्व. श्री शम्भू की मृत्यु ने मेरे हृदय को दिनाङ्क 25 फरवरी, दिन मंगलवार, 1986 को उद्वेलित कर दिया। फिर भी गुरुजनों के आशीर्वाद तथा अभिन्न मित्रों के उत्साह ने मेरे बिखरे हृदय को किसी प्रकार संजोया और मैं इतने विलम्ब के बाद किसी प्रकार शोध- प्रबन्ध प्रस्तुत कर पाया।

डॉ. करुणेश शुक्ल, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय का जीवनपर्यन्त आभारी हूँ, जिन्होंने समय-समय पर मुझे यथाशक्ति सहयोग प्रदान किया। उन मान्यवर के प्रति सावनत कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के निर्देशक डॉ. रामव्यास पाण्डेय, रीडर, संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर के बरण-कमल में सप्रणति सावनत कृतज्ञता प्रकट करता हूँ, जिनके सहज वात्सल्य तथा वैकूष्यपूर्ण सफल निर्देशन से यह शोध कार्य सम्पत्र हो पाया।

निश्चय ही आपके निर्देशन एवं आशीर्वाद का हमको सर्वप्रकारेण लाभ मिला है, अन्यथा शोध-प्रबन्ध का यह विस्तृत आयाम कदापि नहीं हो पाता। जब शोध-रूपी दुर्गम वन में भ्रमण करते हुए मेरा मन खिन्न हो गया तथा शोध- कार्य के प्रति निष्ठा जाती रही, ऐसी स्थिति में डॉ. दशरथ द्विवेदी, रीडर एवं डॉ. रविनाय मित्र (रीडर) संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर ने अपने अमूल्य क्षणों में से कतिपय क्षण प्रदान कर मेरे साहस को पुष्ट किया। इन श्रीमन्तों के चरणों में श्रद्धा-सुमन समर्पित करते हुए मुझे अत्यन्त प्रसत्रता का अनुभव हो रहा है।

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