Bharatiya Saundarya (भारतीय सौंदर्य)
₹400.00
Author | Pro. Sonu Divedi Shivani |
Publisher | Bharati Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2018 |
ISBN | 978-93-88019-23-1 |
Pages | 331 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BP0033 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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भारतीय सौंदर्य (Bharatiya Saundarya) भारतीय दर्शन में सौन्दर्य सर्वथा एक नवीन शब्द है। इस नाम से किसी भी शास्त्र का उल्लेख भारतीय वाङ्मय में प्राप्त नहीं होता है। क्योंकि एक स्वतंत्र विषय के रूप में सौन्दर्यशास्त्र का इतिहास अधिक पुराना नहीं है। पाश्चात्य दर्शन में भी लगभग दो सौ वर्ष से ही सौन्दर्य शास्त्र की स्वंतत्र रूप से एक विषय के रूप में विवेचना प्राप्त होती है।
भारतीय सौन्दर्य की उत्पत्ति के बारे में अनेकानेक अवधारणायें है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि, कुछ और है जो अभी तक इस सन्दर्भ में कहा नहीं गया है। चिन्तन और विषय के योग से कला का नित नवीन सृजन होता है। चिन्तन की गहनता के गर्भ से ही विचार, सौन्दर्य व कला की उत्पत्ति होती है। मात्र भारतीय सौन्दर्य की चर्चा पर आज भी कोई ग्रन्थ स्वतंत्र रूप से उपलब्ध नहीं है। जिससे भारतीय सौन्दर्य के विकास क्रम के विविध पक्षों का अध्ययन किया जा सके। सार-तत्व में भारतीय वांड्मय एवं कला तत्व की सुन्दर सम्बन्धी व्याख्या से सौन्दर्य के प्रति भारतीय दृष्टिकोण को कुछ विद्वानों ने अपने-अपने ढ़ग से काव्य एवं अन्य कलाओं के सन्दर्भ में विवेचित किया है।
भारतीय सौन्दर्य की विवेचना कला रूपों की चर्चा के बिना अधूरी है। इसीलिये प्रस्तुत पुस्तक में मैनें कला, कला की आवश्यकता, कला का औचित्य, कला प्रियता, कला द्वैधभाव, कला के पारस्परिक सम्बंधों का चिन्तन, कल्पना, अभिव्यक्ति, सौन्दर्य आदि पक्षों पर गहन चिन्तन के साथ सौन्दर्य के सूक्ष्म भावों को विवेचित करने का प्रयास किया है। क्योंकि कला सौन्दर्य को स्थूल स्वरूप प्रदान करती है और उसके भावपरक संवेदनाओं को आकार देती है इसलिये बिना उसके सौन्दर्य की चर्चा अधूरी ही रह जाती है।
अतः इस पुस्तक में भारतीय परिप्रेक्ष्य में कला के विविध रूपों का अध्ययन विद्वानों द्वारा समय-समय पर प्रस्तुत तथ्यगत् विचारों के आलोक में करने का एक सार्थक प्रयास किया गया है। साथ ही वर्तमान में मेरी कर्म भादेवभूमि उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल की कला के कलात्मक व सौन्दर्यात्मक पक्ष को भी भारतीय सौन्दर्य के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन कर विवेचित करने का एक साहस पूर्ण प्रयास इस पुस्तक में एक अध्याय-‘कुमाऊँ की दृश्यकला में सौन्दर्य’ के रूप में प्रस्तुत कर किया गया है। जिसकी मुझे एक कलाकार, शिक्षक और शोधार्थी आदि विभिन्न रूपों में दीर्घावधि से आवश्यकता महसूस हो रही थी। क्योंकि सम्पूर्ण कुमाऊँ मण्डल में प्राचीन काल से ही कला के विविध कालजयी रूपों का निर्माण हुआ है जो दुर्गम भौगोलिक परिवेश में विभिन्न अकथनीय प्राकृतिक आपाद और सार्थक संरक्षण न प्राप्त कर पाने की उपेक्षा को सहन करते हुये आज भी अपने कलात्मक सौन्दर्य की गाथा स्वयं में समेटे हुये है, इनके पुरातात्विक, ऐतिहासिक और कलात्मक पक्ष पर तो यदा-कदा लेखन सामग्री मिलती है, परन्तु इनके सौन्दर्यात्मक पक्ष पर कार्य नहीं के बराबर है।
पुस्तक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पाठ्क्रम पर आधारित स्नात्तक, स्नात्तकोत्तर के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के लिये सहयोगी होगा। पुस्तक नौ अध्यायों में विभक्त है, प्रथम अध्याय में -कला की उत्पत्ति, अर्थ, परिभाशा, प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में कला व सौन्दर्य, कला का वर्गीकरण, प्रयोजन आदि, द्वितीय अध्याय में- सौन्दर्य शब्द का अर्थ, विवेचना, विद्वानों के सौन्दर्य संबंधी विचार, तृतीय अध्याय में – भारतीय सौन्दर्य चिन्तन के मुख्यवाद, चतुर्थ अध्याय में प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में सौन्दर्य चर्चा, पंचम ऊयाय में- भारतीय दर्शन में सौन्दर्य, शश्ठ्म अध्याय में शडंग, चित्रकला के तत्व, सप्तम अध्याय में भारतीय सौन्दर्य व कला के सिद्धांत, रस, अलंकार, रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति, औचित्य, उत्पत्ति, मुक्तिवाद, अभिव्यक्तिवाद, साधरणीकरण आदि, अश्ट्म अध्याय में- आधुनिक भारतीय सौन्दर्य चिन्तक, एवं नवम् अध्याय में- कुमाऊँ मण्डल की दृश्यकला में सौन्दर्य सहित प्रत्येक अध्याय के अन्त में अभ्यास प्रश्न एवं पुस्तक के गुन्त में प्राचीन भारतीय सौन्दर्य के ग्रन्थों के एवं उनके लेखकों के नाम, कठिन हिन्दी व अंग्रेजी की शब्दावली, नामावली आदि की क्रमबद्ध चर्चा की गई है जिससे विद्यार्थियों को विशय समझने में पूरी सहायता मिल सके।
इस पुस्तक में भारतीय कला-सौन्दर्य तथा कुमाऊँ मण्डल की दृश्यकला के सौन्दर्य सबंधी विविध रूपों का अध्ययन विद्वानों द्वारा समय-समय पर प्रस्तुत तथ्यगत् विचारों के आलोक में प्रश्नावली व कठिन शब्दावली के साथ करने का एक सार्थक प्रयास किया गया है जिससे विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के इस विशय से संबंधित पाठ्क्रम हेतु सार्थक समाधान मिल सकें।
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