Bharatiya Jari Booti Vigyan (भारतीय जड़ी-बूटी विज्ञान)
₹127.00
Author | Pt. Rajeshwar Bajpeyi |
Publisher | Shri Durga Pustak Bhandar Pvt. Ltd. |
Language | Hindi |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 188 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SDPB0049 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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भारतीय जड़ी-बूटी विज्ञान (Bharatiya Jari Booti Vigyan) इस संसार में परमात्मा ने सब ही पदार्थ प्राणियों के उपचार के निमित्त उत्पन्न किये हैं, उनमें से वृक्षों के द्वारा प्राणियों के जीवन में बहुत कुछ सहायता प्राप्त होती है। यदि वृक्ष न हों तो प्राणियों का जीवन दुर्लभ हो जाय, क्योंकि वृक्षमात्र सब औषधि है, औषधियों में अनेक बूटियाँ ऐसी हैं जो कि तत्काल अपना गुण दिखाती हैं। उन बूटियों से प्रायः सब ही प्राणियों की रक्षा होती है। जहाँ गाँवों में वैद्य नहीं पहुँच सकते, वहाँ जड़ी- बूटियों से ही रोगी का रोग शान्त होता है।
प्राचीन समय में पुरुष अनेक जड़ी-बूटियों को पहचानते और उनके गुणों को जानते थे, इस कारण उन्हीं बूटियों के द्वारा रोगी को भला चंगा कर देते थे। सुवर्ण आदि धातुओं के शोधने और फूंकने में बूटियों से ही काम लिया जाता है, बूटियों के बिना रसायन क्रिया की सिद्धि नहीं होती। जड़ी और बूटी ही चिकित्सा का पूर्ण अंग है।वैद्यक शास्त्र में चिकित्सा तीन प्रकार की कही गई है। 1 दैवी, 2 मानवी और 3 आसुरी। इनमें पहिली चिकित्सा दैवी है। सुवर्ण आदि धातुओं को जड़ी-बूटियों के द्वारा भली भाँति फूंक कर जो रस बनाये जाते हैं, उन रसों से प्राणियों की चिकित्सा करने को दैवी (देवताओं की) चिकित्सा कहते हैं। दूसरी मानवी (मनुष्यों की) चिकित्सा है। उसमें रोगी के रोग को देखकर जड़ी-बूटी रूप औषधियों से चूर्ण, काढ़ा, चटनी, गोली, तेल आदि बनाकर अनुपान के साथ देकर वैद्यजन रोगी को अच्छा करते हैं। तीसरी आसुरी चिकित्सा है जो क्षार और शस्त्र क्रिया (चीर-फाड़) द्वारा की जाती है। इसी को जर्राही कहते हैं। रुधिर निकलने अर्थात् फस्द खोलने से भी अनेक रोग नष्ट होते हैं। जड़ी-बूटियों से घाव शीघ्र भर जाते हैं और हड्डियाँ जुड़ जाती हैं, मांस अस्थि आदि से भी चिकित्सा की जाती है, परन्तु यह आसुरी चिकित्सा है पहली दैवी (देवताओं की) चिकित्सा उत्तम और दूसरी मानवी (मनुष्यों की) चिकित्सा मध्यम तथा तीसरी आसुरी (असुरों की) चिकित्सा अधम कहलाती है। तीनों प्रकार की चिकित्सायें अपने-अपने स्थान पर उपयोगी है।
यहाँ एक और बात जान लेना आवश्यक है। वह यह कि जो मनुष्य जिस देश में उत्पन्न होता है उसको उसी देश की उत्पन्न हुई औषधि अधिक गुणकारी होती है। यथा ‘यस्य देशस्य यो जन्तुर्जन्तो स्तस्यौषधं हितम्। जड़ी और बूटियों के द्वारा रोगी की चिकित्सा करना बहुत कठिन नहीं है, परन्तु जड़ी-बूटियों का पहिचानना और उनके गुणावगुण जो जानना कठिन है। यद्यपि अनेक ग्रन्थों में जड़ी-बूटियों के पहिचानने और उनके गुणावगुण जानने के निमित्त उपदेश लिखे हैं, तथापि “बिना गुड़ के पुआ नहीं होते” इस कहावत के अनुसार बूटियों को पहिचानने और जानने के निमित्त गुरु की परम आवश्यकता है।
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