Swarna Tantram (स्वर्ण तन्त्रम)
₹340.00
Author | Shyam Sundar Shukla |
Publisher | Chaukhambha Surbharati Prakashan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2022 |
ISBN | 978-93-81484-05-0 |
Pages | 228 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0607 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
स्वर्ण तन्त्रम (Swarna Tantram) स्वर्णतन्त्र रसशास्त्र का धातुवाद-आधारित अद्भुत एवं सरल प्रयोगों का एक संग्रहग्रन्थ है। इसके अनेक उद्धरण रसार्णव, रसहृदयतन्त्र से लिये गये हैं। ग्रन्थ की विषयसामग्री देहलौहवादात्मक दोनों प्रकार की है। पारद स्थिरीकरण, मारण वेध-जैसी प्रक्रियाओं का इसमें बहुत ही विशाल संग्रह है। स्वर्ण-रजत् आदि का भेद बताकर अनेक प्रकार के वानस्पतिक कल्पों, जो धातुवेध में सहायक हैं, उन्हें तैयार करने यथा-तैलकन्द कल्प, कटुकूष्माण्ड कल्प, कटुरक्तविम्बी आदि अनेक कल्पों की विधि फलनिर्देश-पूर्वक बतलाई गई है। इनमे से बहुशः धातुवेध के साथ-साथ रसायन गुणसम्पन्न बतलाये गयें है। अन्त में भस्मोपयोगी पुट एवं पारद कर्मोपयोगी यन्त्रों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। बहुतः प्रयोग अत्यन्त सरल प्रकार के है तथा परीक्षणीय है एवं जिस प्रकार के है तथा परीक्षणीय है एवं जिस प्रकार के फलादेश किये गये हैं, यदि ऐसा हो सके तो मानव समुदाय के लिये यह अत्यन्त कल्याणकारी सिद्ध हो सकता है।
ग्रन्थ का रचनाकाल अथवा लेखक के विषय में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। ग्रन्थ के विषय की प्रस्तुति ईश्वर (शिव) एवं परशुराम संवाद के रूप में है। श्री परशुराम अपनी जिज्ञासाशान्ति-हेतु ईश्वर (शिव) से प्रश्न करते हैं और ईश्वर उसका समाधान देते हैं। इस संवाद से ही ज्ञात होता है। कि इसका पूर्वभाग रत्नखण्ड है; जिसमें हीरा, पन्ना, मोती, नीलम, माणिक्य एवं वैदूर्य आदि रत्नों की निर्माणविधि, दो हजार प्रकार की पारद की गुटिका, छः सौ प्रकार की पारदभस्म, आठ की कल्प, सात सौ प्रकार की हरतालभस्म आदि विषय साठ हजार श्लोकों में कहे गये हैं। इन सबके बाद श्री परशुराम जी ने भगवान शंकर से कहा कि इतनी बातें तो आपने बताई, किन्तु स्वर्णनिर्माण की विधि अभी तक आपने नहीं बताई। श्री परशुराम जी द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भगवान शंकर के ‘स्वर्णतन्त्र’ नामक प्रथम कल्प कहकर इसका उपदेश किया।
विद्वान् हिन्दी भाष्यकार श्री श्यामसुन्दर शुक्ल जी ने इस दुर्लभ ग्रन्थ, जिसकी दुर्लभ प्रतिलिपि इन्हें नेपाल से प्राप्त हुई, जिस पर इन्होंने ‘स्वर्णदा’ भाषाभाष्य लिखकर रसशास्त्र को एक अनुपम भेट साहित्यसमद्धि के रूप में दिया है। रसशास्त्र के क्षेत्र में कार्य करने वालों के लिए यह ग्रन्थ परम उपयोगी सिद्ध होगा।
Reviews
There are no reviews yet.