Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-20%

Saravali (सारावली)

480.00

Author Someshwar Nath Jha
Publisher Bharatiya Book Corporation
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2008
ISBN 81-85122-43-1
Pages 448
Cover Hard Cover
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code TBVP0445
Other Dispatched in 1-3 days

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

सारावली (Saravali)

वेदा हि यज्ञार्थमभिप्रवृताः कालाभिपूर्वा विहिताश्च यज्ञाः।
तस्मादिदं कालविधानशास्त्रं यो ज्योतिषं वेद स वेद यज्ञम्।।

वेद में ज्योतिषशास्त्र को अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। वेद यज्ञ अर्थात् कार्य सम्पादन के लिए है और यज्ञ का विधान विशिष्ट समय की अपेक्षा रखता है। ज्योतिष को ईसवी पूर्व पाँचवीं शती में ही वेदाङ्गों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त हो गया था।

यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।
तद्वदेदाङ्गशास्त्राणां ज्योतिषं मूर्ध्नि संस्थितम्।।

ज्योतिष को ज्ञानरूपी शरीर का नेत्र कहा गया है। ज्योतिषशास्त्र के आधार पर प्राणी का शुभाशुभ फल ज्ञात किया जा सकता है। मुख्यतः इस शास्त्र को सिद्धान्त, होरा और संहिता में बाँटकर अध्ययन किया जाता है। होरा के अन्तर्गत इस ग्रन्थ का अध्ययन किया जाता है। होरार्थशास्त्रं होरा तामहोरात्र-विकल्पमेके वाञ्छति। अहश्च रात्रिश्च अहोरात्रो होराशब्देनोच्यते” अहोरात्र शब्द के पूर्ववर्ण ‘अ’ तथा परवर्ण ‘त्र’ का लोप करने से होरा शब्द निष्पन्न होता है।

लग्न के आधार पर प्राणियों के जीवन में आने वाले शुभ या अशुभ समय का ज्ञान जिस शास्त्र के द्वारा किया जाय, उसे होराशास्त्र कहते हैं। बृहज्जातक में- ‘होरोयहोरात्र-विकल्प’ एवं बृहत्संहिता में- ‘होरा ऽन्योऽङ्गविनिश्चयश्च कथितः स्कन्धस्तृतीयोऽपरः’ इस प्रकार उल्लेख मिलता है।

जीवमात्र के जीवन में आने वाले सुख-दुःख जो ब्रह्मा जी ललाट पर लिख देते हैं, उसे पढ़ने में वही दैवज्ञ समर्थ होते हैं, जो होराशास्त्रज्ञान से निर्मल दृष्टि रखते हैं; न कि नक्षत्र जानने वाले। अतः द्वितीय अध्याय के प्रथम श्लोक में ग्रन्थकार ने भी कहा है-

विधात्रा लिखिता याऽसौ ललाटेऽक्षरमालिका।
दैवज्ञस्तां पठेद्व्यक्तं होरानिर्मलचक्षुषा।।

तीनों स्कन्धों के ज्ञाता को दैवज्ञ रूप में प्रतिष्ठा मिलती है। अन्य सभी स्कन्धों में महान् होराशास्त्र को माना गया है। ज्योतिष शास्त्र में फलित को विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। फलित शास्त्र के दैवज्ञप्रणीत ग्रन्थों में बृहत्जातक के प्रणेता वराहमिहिर का नाम सर्वविदित है। वराहमिहिर ने संक्षेप में होरातन्त्र का निर्माण किया; परन्तु इस ग्रन्थ से दशवर्ग राजयोग आयुर्दाय आदि का स्पष्ट विभाग नहीं हो पाता है। अतः विस्तृत ग्रन्थों से सारहीन वस्तुओं का त्यागकर मात्र तत्त्वभूत विषयों का ग्रहण कर ग्रन्थकार ने इस ग्रन्थ का निर्माण किया है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Saravali (सारावली)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×