Mricchakatikam (मृच्छकटिकम्)
₹276.00
Author | Dr. Jaya Sankar Lal Tripathi |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2021 |
ISBN | 81-218-0188-5 |
Pages | 374 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0710 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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मृच्छकटिकम् (Mricchakatikam) महाकवि शूद्रक का मृच्छकटिक संस्कृत नाट्यसाहित्य में अपनी विलक्षणता के लिए विश्वविख्यात है। इस विलक्षणता का प्रधान आधार है इस नाट्यकृति के कथानक का वस्तुवादी स्वरूप। भास, कालिदास, भवभूति, हर्ष-जैसे सुप्रसिद्ध नाट्यकारों से अलग हटकर शूद्रक ने जीवन का जो चित्र इसमें प्रस्तुत किया वह सर्वथा नवीन है। नाट्यकार इसमें समकालिक जीवन का एक वास्तविक चित्र प्रस्तुत करना चाहते थे, अतः उन्होंने नाट्य की ‘प्रकरण’ विधा को चुना, जिसमें कथानक प्रख्यात इतिहास की सीमा में बंधा नहीं होता और कवि की कल्पना को पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है। इस स्वतन्त्र कवि-कल्पना के कारण मृच्छकटिक अद्वितीय महत्त्व का अधिकारी है। नेपथ्य में एक राष्ट्रविप्लव को पृष्ठभूमि के रूप में रख कर इस प्रकरण में उदार व्यापारी चारुदत्त की कथा प्रस्तुत की गई है।
चारुदत्त व्यापारी तो अवश्य है, पर अत्यन्त हृदयवान् और दानशील है। दारिद्र्य उसको इसीलिए पीड़ाकर है कि वह किसी की धन से सहायता नहीं कर सकता। दरिद्र चारुदत्त को नायक बनाकर शूद्रक ने गतानुगतिक राजा या देवता के जीवन का इसमें बहिष्कार किया है। उनकी कल्पना क्रान्तिकारी थी। एक गणिका यदि वास्तविक प्रेमवती गृहिणी बनना चाहे तो समाज की क्या प्रतिक्रिया होती है, इसका सुन्दर चित्रण इस प्रकरण में हुआ है। गणिका की माँ से लेकर उसे बलपूर्वक भोगने की इच्छा रखने वाले ‘राजश्याल’ शकार तक के मनोभाव और कार्यकलाप इस प्रकरण में नाटकीय स्थितियों को उत्पन्न करते हैं और मध्यमवर्ती जनसमाज के साथ राजानुगृहीत लोगों के दुराचरण का एक पूर्णाङ्ग चित्र उभर कर सामने आता है। मूलभूत इस कथानक के समान्तराल राजद्रोह की कथा प्रवाहित है। भ्रष्ट राजा पालक सामने नहीं आता है, पर जुआड़ी, वेश्यागामी, ढोंगी, संन्यासी और चोरों का प्राबल्य – उस भ्रष्ट राजा के कुशासन को उजागर करते हैं। कानून पर भी किस प्रकार दबाव पड़ सकता है इसका भी एक स्वाभाविक चित्रण इस प्रकरण की विशेषता है। वस्तुवादिता स्पष्ट होती है। वस्तु, नेता तथा रस की दृष्टि से उत्तम कोटि का यह ‘प्रकरण’ समाज के वास्तविक दर्पण का भी कार्य करता है, अतः शूद्रक को सर्वश्रेष्ठ वस्तुवादी सामाजिक नाट्यकार का सम्मान अवश्य प्राप्य है।
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