Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 13 (संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-तेरह पुराण खण्ड)
₹425.00
Author | Acharya Baldev Upadhyaya |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 1st edition, 2006 |
ISBN | - |
Pages | 943 |
Cover | Hard Cover |
Size | 23 x 4 x 15 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0013 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-तेरह पुराण खण्ड (Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 13) ‘पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्राह्मण स्मृतम्’ ब्रह्माजी ने वेदों का ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त सबसे पहले पुराणों का स्मरण किया। भारतीय संस्कृति तथा भारत के मूल स्वरूप की जानकारी पुराणों के अध्ययन के बिना सर्वथा अधूरी होती है। धार्मिक दृष्टि से पुराणों में वैदिक तत्त्वों को ही सरल संस्कृत श्लोकों के माध्यम से जन सामान्य को बताया गया है। वैदिक संहिताओं में विशेषकर ऋग्वेद में पुराण शब्द एक दर्जन से अधिक बार प्रयुक्त हुआ है। निरुक्तकार यास्क के अनुसार ‘पुराण’ की व्युत्पत्ति है- ‘पुरा नवं भवति’ (अर्थात् जो प्राचीन होकर भी नवीन होता है)। प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण पुराणों ने ‘पुराण’ शब्द की व्युत्पत्ति पर चर्चा की है। पुराणों का प्राचीन इतिहास से धनिष्ठ सम्बन्ध रहा है, इसीलिए अनेक स्थानों पर ‘इतिहास-पुराण’ नाम का भी उल्लेख मिलता है। कुछ आलोचक इसी परिप्रेक्ष्य में ‘महाभारत’ को भी इतिहास कहते हैं।
वैदिक संहिताओं के साथ ही ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यक, उपनिषद् तथा सूत्रग्रन्थों में पुराणों के अस्तित्व का, उनके अध्ययन का तथा उससे उत्पन्न होने वाले पुण्य का संकेत प्राप्त होता है। पुराण के लक्षण विषयक अपोलिखित श्लोक प्रायः सभी पुराणों में उपलब्ध है :-
‘सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च।
वंशानुचरितं चेति पुराणं पञ्चलक्षणम्।
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