Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 12 (संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-बारह जैन बौद्ध चार्वाक दर्शन खण्ड)
₹580.00
Author | Acharya Baldev Upadhyaya |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2nd edition, 2018 |
ISBN | - |
Pages | 656 |
Cover | Hard Cover |
Size | 23 x 3 x 15 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0012 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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संस्कृत वाङ्गमय का बृहद इतिहास भाग-बारह जैन बौद्ध चार्वाक दर्शन खण्ड (Sanskrit Vangmay Ka Brihad Itihas Khand 12) ‘संस्कृत वाङ्मय का बृहत् इतिहास’ के अन्तर्गत संकल्पिक ‘जैन-बौद्ध-चार्वाक दर्शन’ का प्रस्तुत खण्ड ग्रन्थ योजना में बारहवाँ खण्ड है। इस योजना की भूमिका में सम्मिलित सभी मनस्वी विद्वज्जनों से विस्तृत विचार विमर्श के उपरान्त पुण्यश्लोक आचार्य बलदेव उपाध्याय जी ने इस उपक्रम को अठारह खण्डों में विभक्त किया था। इस खण्ड के लिये जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन तथा चार्वाक दर्शन को सूचीबद्ध किया था। दार्शनिक धरातल पर ये तीनों प्रस्थान सृष्टि के लिये किसी के कर्तृत्व को स्वीकार नहीं करते। वे ‘मोक्ष’ को अपनी-अपनी दृष्टि से परिभाषित करते हैं।
जैन दार्शनिक चिन्तन व्यावहारिक पृष्ठभूमि में आधार प्रधान है। रागद्वेष पर विजय प्राप्त करना भव-बन्धन से मुक्त होने का साधन है। भवबन्धन की ग्रन्थियों का खुल जाना ‘निगण्ठ’ की वह स्थिति है जो ‘अर्हत्’ की पदवी में निहित है। इस पदवी पर सर्वज्ञ तीर्थङ्करों की प्रतिष्ठा मानी जाती है। जैन मत के अनुयायी आद्य तीर्थङ्कर ऋषभदेव से वर्धमान महावीर तक चौबीस तीर्थड्ङ्करों की गणना करते हैं। यह गणना निश्चित ही स्मृति परम्परा में ऐतिहासिक ही हो सकती है, परन्तु इतिहास-दृष्टि में अधुनातन ऐतिहासिक-काल की सीमा में पार्श्वनाथ तथा वर्धमान महावीर ऐतिहासिक महापुरुष हैं जो अपने तपोबल से तीर्थकर पदवी पर प्रतिष्ठित माने जाते हैं। भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म काशी में हुआ था। हमने ‘बलदेवचरितम्’ में काशी और पार्श्वनाथ को प्रणामाञ्जलि अर्पित की है।
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