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Sunam Sarit (सुनाम-सरित)

590.00

Author Nityanand Mishra
Publisher Chowkhambha Clasical
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2023
ISBN 978-93-91730-65-9
Pages 384
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CVB0005
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Description

सुनाम-सरित (Sunam Sarit) संस्कृत में एक सूक्ति है, ज्ञायते पितृपाण्डित्यं नामधारणकारणात्, अर्थात् पिता (अथवा माता और पिता) का पाण्डित्य बालक के नाम रखने के कारण से जाना जाता है। भारत में नामों का परम महत्त्व सर्वविदित है। संस्कृत नामों का कल्पवृक्ष भी संसार में अद्वितीय है। लगभग २,००० धातुओं से अनेक कृदन्त शब्द, इन कृदन्त शब्दों से अनेक तद्धितान्त शब्द और सात भेदों एवं पचपन उपभेदों सहित समासों की अतिशय उर्वरा शक्ति के कारण संस्कृत में नामों की निधि बहुत सम्भवतः विश्व की सभी भाषाओं से आढ्यतर है। अत एव संस्कृत साहित्य में सैकड़ों सहस्त्रनामों का होना कोई आश्चर्य नहीं है। प्रायः सभी सहस्रनामों में अनेक ऐसे नाम मिलते हैं जो किसी अन्य सहस्रनाम में नहीं हैं। कुछ सहस्रनामों में तो सभी सहस्त्र अथवा सहस्राधिक नाम एक ही अक्षर से प्रारम्भ होते हैं। और तो और, एक भगवान् शिव का अयुतनाम भी है जिसमें दस सहस्र नाम हैं। सच में, संस्कृत नामों का समुद्र अथाह है।

मैंने संवत् २०७५ (सन् २०१८) में सामाजिक संचार माध्यमों पर संस्कृत नामों पर लिखना प्रारम्भ किया था। पिछले पाँच बरसों में मैंने १५० से अधिक संस्कृत ग्रन्थों से दो लाख से अधिक संस्कृत नाम इकट्ठे किए हैं। अब भी मेरा संग्रह पूर्णता से बहुत दूर है। यदि अनुमान लगाना हो तो मैं कहूँगा संस्कृत ग्रन्थों में पाँच लाख से अधिक नाम उल्लिखित हैं। यद्यपि यह संख्या मोनियर-विलियम्ज्ञ के सन् १८९९ के संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश में संकलित तीन लाख व्याख्याओं और दो लाख शब्दों से कहीं अधिक है, तथापि यह पुणे स्थित डेक्कन कॉलेज द्वारा संकल्यमान Encyclopaedic Sanskrit Dictionary की अनुमानित शब्दसंख्या बीस लाख से बहुत अल्प है। यदि हम संस्कृत ग्रन्थों में उल्लिखित नामों के सभी समानार्थी शब्द और उनके विपरीत लिङ्ग वाले शब्द मिला लें, तो संस्कृत नामों की संख्या दस लाख से भी कहीं अधिक होगी।

संस्कृत साहित्य में न केवल मनुष्यों और मनुष्याकार योनियों-यथा देवों, देवियों, गणदेवों (आदित्यों, विश्वदेवों, वसुओं, तुषितों, आभास्वरों, अनिलों अथवा मरुतों, महाराजिकों, साध्यों और रुद्रों) और उपदेवों (विद्याधरों, अप्सराओं, यक्षों, राक्षसों, गन्धवों, किन्नरों, पिशाचों, गुह्यकों, सिद्धों, भूतों, आदि) के सुन्दर नामों का भंडार है अपितु विविध मनुष्येतर एवं मनुष्येतराकार तत्त्वों यथा नागों, वनों, पर्वतों, कूपों, सरोवरों, नदियों, समुद्रों, देशों, अस्त्र-शस्त्रों, वाद्यों आदि के भी नामों का विशाल संग्रह है। भगवद् गीता में कृष्ण और पाँच पाण्डव भाइयों द्वारा प्रयुक्त शङ्खों के कर्णप्रिय नामों का उल्लेख है-पाञ्चजन्य (कृष्ण), देवदत्त (अर्जुन), अनन्तविजय (युधिष्ठिर), पौण्ड्र (भीम), सुघोष (नकुल) और मणिपुष्यक (सहदेव)। संस्कृत में संख्याओं के भी नाम हैं। अग्नि और बाण शब्दों के दसियों पर्यायवाची शब्द क्रमशः तीन और पाँच संख्याओं के नाम हैं। एक बड़ी संख्या को अनेक नामों से अभिहित किया जा सकता है। उदाहरणतः वर्तमान संवत् २०८० को नभ-वसु-ख-नेत्र कहा जा सकता है (अङ्कानां वामतो गतिः, नभ०, वसु ८, ख=०, नेत्र-२)। कुछ संख्या-नामों को काव्य के विशिष्ट छन्दों में भी ढाला जा सकता है।

अधिकांश संस्कृत नाम और विशेषण अत्यन्त गम्भीर और विचारपूर्ण होते हैं। उदाहरण के लिए पथिकृत् विशेषण को लें, जिसका अर्थ है “पथ बनाने वाला”, अर्थात् प्रवर्तक अथवा अन्वेषक। वैदिक वाङ्मय में बृहस्पति, इन्द्र, सोम, अग्नि, वैश्वानर, पृषन् और ऋषियों को पथिकृत् कहा गया है। आज भी यह नाम बंगाली परिवारों में रखा जाता है। ऋग्वेद की शाकल-संहिता (सूक्त १.१२५ और १.१२६) में दो बार राजा स्वनय का उल्लेख है। स्वनय का अर्थ है “जिसका नय (नेतृत्व) स्वयं हो”, अर्थात् स्वयं-प्रेरित अथवा स्वयं-नीत, जो आप अपना नेता हो। पिछले कुछ बरसों में यह नाम मेरे सुझाव पर अनेक माता-पिताओं ने अपने पुत्रों को दिया है। बहुधा संस्कृत साहित्य में प्रतिनायक अथवा खलनायक पात्रों के भी सार्थक और सकारात्मक नाम होते हैं। यथा दुर्योधन नाम को लें, जिसका अर्थ है “वह जिससे युद्ध करना दुःखपूर्ण (कठिन) है”। यद्यपि यह नाम माता- पिता अपने बालक को नहीं देते (कर्णाटक के विधायक दुर्योधन महालिङ्गप्पा ऐहोळे जैसे कुछ अपवाद अवश्य है), तथापि इसका अर्थ सकारात्मक है जैसा विराट-पर्व में अर्जुन द्वारा दुर्योधन को दिए हुए उलाहने से (गीता प्रेस संस्करण का श्लोक ४.६५.१७) और मनुस्मृति (श्लोक २.३१) पर मेधातिथि के मनुभाष्य से स्पष्ट है। पूर्वोल्लिखित सैकड़ों सहस्त्रनामों में सहस्त्रों मधुर और गम्भीरार्थ नाम हैं। यथा कूर्म-पुराण में प्राप्त पार्वती-सहस्रनाम में एक नाम है सन्मयी (श्लोक १.११.१३८)। इस नाम का अर्थ है “सत् (सत्य, बल, चेतना, आदि) से भरी हुई”। मैं ऐसे नामों को सुनाम कहता हूँ। संस्कृत में ‘सुनाम’ यह शब्द ‘सुनामन्’ इस नपुंसक प्रातिपदिक की प्रथमा विभक्ति का एकवचन रूप है। ‘सुनाम’ का अर्थ है अच्छा नाम।

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