Vritta Ratnakaram (वृत्तरत्नाकरम)
₹81.00
Author | Acharya Madhusudan Shastri |
Publisher | Chaukhambha Krishnadas Academy |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2020 |
ISBN | 978-218-0451-6 |
Pages | 196 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0625 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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Vritta Ratnakaram (वृत्तरत्नाकरम) वृत्तरत्नाकर और श्रुतबोध ये दो प्रकृत ग्रन्थ हैं। इनके विषय में हमारी एक माने मुख्य चर्चा माने अध्ययन है। एके मुख्यान्यकेवलाः इस अमर कोष के अनुसार एक शब्द का अर्थ मुख्य हैं। चर्चनं चर्चा। चर्च अध्ययने धातु से “षिद्भिदादिभ्योऽङ्” इस सूत्र से अङ् हुआ। फिर स्त्रीत्वाट् टाप् प्रत्यय होने से चर्चा बना इसका अर्थ है अध्ययन। नारायण भट्ट ने वृत्तों पर रत्नों का आरोप करके वृत्त रत्न ही है, ऐसा अर्थ माना है। उनका आकर खजाना यह प्रकृत ग्रन्थ है। अतः इस खजाने का विवरण करने के लिए भट्टजी ने विवृति लिखी है। भास्कर भट्ट ने वृत्तों का रत्नाकर समुद्र यह ग्रन्थ है, ऐसा अर्थ मानकर उसके पार जाने के लिए सेतु टीका लिखी है। हमने इस पर बालक्रीड़ा हिन्दी टीका लिखी है। बालकृष्ण गुरुजी के नाम का स्मरण बना रहे है। इसलिए अपने सभी ग्रन्थों पर बालक्रीड़ा टीका लिखी है। व्यक्तिविवेक पर नहीं लिख सके। उस समय में हिन्दी टीका करने का ध्यान नहीं हुआ था। अस्तु।
यहां प्रकृत ग्रन्थ के नाम ‘वृत्तरत्नाकर’ में उल्लिखित वृत्त शब्द के अर्थ का विचार करते हैं। महाकवि कालिदास ने-
किमत्र चित्रं यदि कामसूर्भूवृत्ते स्थितस्याधिपतेः प्रजानाम्।
अचिन्तनीयस्तु तव प्रभावो मनीषितं द्यौरपि येन दुग्धा ५ ॥३३॥
वृत्त में स्थित साधारण राजा की भी भूमि यदि मन चाहे पदार्थों का प्रसव करती है तो उसमें क्या आश्चर्य है। हे रघुराज ! तुम्हारे विषय में क्या कहें। तुम्हारा तो प्रभाव अचिन्तनीय ही है; क्योंकि तुमने तो स्वर्ग को भी कामसू मन चाहे पदार्थों का प्रसव करने वाला बना दिया। इस पद्य में राजा का विशेषण वृत्त में स्थित दिया है। टीकाकारों ने वृत्त का अर्थ नियम मयार्दा लिखा है। भगवान् रामचन्द्र अपने वृत्त के नियम के बदौलत ही मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये।
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