Loading...
Get FREE Surprise gift on the purchase of Rs. 2000/- and above.
-15%

Sangeet Parijat (सङ्गीतपारिजात:)

191.00

Author Dr. Shree Krishna 'Jugnu'
Publisher Chaukhambha Krishnadas Academy
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2018
ISBN 978-81-218-0420-2
Pages 137
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0721
Other Dispatched in 1-3 days

10 in stock (can be backordered)

Compare

Description

सङ्गीतपारिजात: (Sangeet Parijat) संगीत मूलतः प्रकृति का स्पन्दन है। चराचर में स्पन्दन के फलस्वरूप जो सुनियोजित स्वरावली निष्पन्न होती है, वह सुरमय संगीतशास्त्र की जननी है। वेदों के मन्त्रों और ऋचाओं के गायन के रूप में संगीत की प्रस्तुति की सुदीर्घ परम्परा प्रमाणित होती है। उद्गम के साथ ही इसका विकासक्रम निरन्तर रहा और इस क्रम में लोकजनों से लेकर अभिजनों तक ने अपनी अहम् भूमिका का निर्वहन किया है। इस विद्या को उपवेद के रूप में जाना गया है तथा इसका महत्व महाकाव्यों से लेकर पुराणों तक भी द्रष्टव्य है। इनमें छन्दों का उपयोग हुआ है और वे गेय हैं। इनमें अनेक स्तोत्रों, स्तवनों एवं स्तुत्तियों के पाठ भी मिलते हैं और वे सभी अनेक तालों, रागों में गेय हैं। यज्ञादि प्रारम्भिक अनुष्ठानों, पूजा-विधानों, पारिवारिक रोति-रिवाजों, यात्रा, युद्ध तक संगीत का महत्व समझ में आता है- बिना गीत, कैसी रीत! वाराहोपनिषद् में नादानुसन्धान को योगी के लिए परम साधन स्वीकारा गया है। संगीत पर हमारे यहाँ शताधिक शास्त्रों सहित अनेक ग्रन्थों में संगीत विषयक अध्यायों की प्राप्ति सिद्ध करता है कि यह विद्या लोकप्रिय रही है, जनसामान्य तक इस विद्या का रसिक था। सोलहवीं सत्रहवीं सदी में जबकि गुणीजनखानों महत्व दरबारों तक बना हुआ था, अनेक क्षेत्रों में संगीत विषयक ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। सोमनाथ, व्यङ्कटमुखी, दामोदर पण्डित, हृदयनारायणदेव, श्रीनिवास सहित पण्डित अहोबल ने संगीत विषयक ग्रन्थों की रचनाकर इस विद्या को नवीन ऊँचाइयाँ दी। इनमें भी पण्डित अहोबल का स्थान इस दृष्टि से वरेण्य है कि वह अपने काल के प्रतिनिधि स्वीकारे गए हैं। उनका संगीत पारिजात 500 श्लोकों में निबद्ध ग्रन्थ है। इसमें संगीत की परिभाषा, मार्गी व देशी संगीत, हृदयस्थ 22 नाड़ियों से नाद की उत्पत्ति, श्रुति की विवेचना, स्वरों की जाति, स्वरों के रंग, देवता, नवरस और ग्राम मूच्र्छनाएँ आदि विवेचित हैं। इसके साथ ही वर्ण लक्षणम् व जाति निरूपण अध्यायों में चारों ही वणों को स्पष्ट करते हुए 68 अलंकारों का उल्लेख है। जातियों के लक्षण और गमकों के भेद तथा वोणा के तार पर शुद्ध एवं विकृत स्वरों के स्थान भी प्रतिपादित किए गए हैं। यद्यपि उन्होंने शुद्ध व विकृत 24 स्वरों के नाम दिए हैं लेकिन वास्तव में ये 7 शुद्ध तथा 5 विकृत स्वरों को ही प्रकट करते हैं।

पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर ने माना है कि अहोबल ने वीणा पर अपने स्वर स्थान को निदर्शित करने के लिए एक अभिनव पद्धति अपनाई और उनके पूर्ववर्ती ग्रन्थकारों की तुलना में उनकी यह उल्लेखनीय विशेषता है क्योंकि उन्होंने ‘स्वरज्ञानविहीनेभ्योमार्गोऽयं बोधितो मया’ (श्लोक 326) कहते हुए वीणा के मेरुदण्ड पर बंधे हुए तार के नीचे स्वरस्थानों वा पदों के स्थान नियत करने का मार्ग बताया है। यह विधि नवीन है और इसके वे आविष्कारक कहे जाते हैं। वीणा पर षड्ज के विषय में अहोबान के स महत्वपूर्ण आलेख मिलते हैं, पहला उल्लेख मूच्र्छना प्रकरण में है और दूसरा तन्वी पर स्था स्थापना की विधि के प्रतिपादन के दौरान। मूच्र्छनाओं का विवरण देते समय वह स्पह करते हैं कि मध्यषड्ज से मूच्छेना के क्रम की शुरुआत की जानी चाहिए- मध्यषड्वं समारभ्य तदूर्ध्वस्वरमाव्रजेत्। अहोबल ने रुद्रवीणा की मुख्य चार तन्त्रियाँ क्रम से मध्य स, मध्य प. मन्द्र स एवं मन्द्र प की बताई है और स्वर मण्डल की प्रथम तन्त्री को पढ्‌य में मिलाने का सन्दर्भ है। वीणा पर स्वरों के स्थान प्राप्त करने की विधि में भी मुक्ततार को ध्वनि को षड्ज मानकर ही स्वर स्थान बताए गए हैं। (प्रणव भारती पृष्ठ 155-156)पण्डित ठाकुर ने अहोबल के संगीत पारिजात के प्रतिपाद्य की समीक्षा की है और दक्षिणात्य और उत्तरीय संगीत पद्धतियों के परिप्रेक्ष्य में अनेक पक्षों का प्रतिपादन किया है। इसी आधार पर अनेक विद्वानों ने इस विषय पर जो विमर्श किया, वह अहोबल के ग्रन्ध के महत्व का परिचायक है। उन्होंने श्रुति, स्वर, स्वरों के रूप में बाईस श्रुतियों का उपयोग, वीणा पर निदर्शित गुणोत्तर प्रमाण भी दिए। संगीत में स्वरों की विकृति के लिए जो कोमल, तीव्रादि संज्ञाएँ मिलती हैं, उनका उचित उल्लेख अहोबल ने किया है। कोमल रि-ध का कदाचित पहला उल्लेख अहोबल की देन है और इसी से इस परम्परा को ऐतिहासिक पुष्टि मिलती है। ठाकुर ने माना है कि स्वरों के गुणोत्तर प्रमाण निकालने का मार्ग अहोबल ने हो पहली बार प्रवर्तित किया है।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Sangeet Parijat (सङ्गीतपारिजात:)”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Quick Navigation
×