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Sanskrit Ki Natya Kathayen (संस्कृत की नाट्य कथाएँ)

30.00

Author Prof. Kantanath Panday Rajhans
Publisher Chaukhambha Sanskrit Series Office
Language Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 140
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSSO0720
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Description

संस्कृत की नाट्य कथाएँ (Sanskrit Ki Natya Kathayen) संस्कृत का नाट्य-साहित्य बहुत ही समृद्ध है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही यहाँ नाटक लिखे जाते रहे हैं तथा उनका सफलतापूर्वक रंगमञ्चपर अभिनय भी किया जाता रहा है। नाटक को ‘पाँचवाँ वेद’ तक मान कर उसकी उत्कृष्टता इस देश में घोषित की जा चुकी है। नाटक के द्वारा लोकरञ्जन के साथ हो लोक-शिक्षण का सुन्दर आयोजन होता है।
“नाट्ये मिनरुचेर्जनस्य बहुधाप्येकं समाराघनम्”। इसी दृष्टि से नानाविध दृश्यों और परिस्थितियों का चित्रण होने के साथ ही विभिन्न रसों की घारा में मन को निमग्न करने का प्रवास भी नाट्य-रचना में देखा जाता है। यह कार्य साधारण नहीं। इसी से ‘नाटकान्तं कवित्वम्’ कह कर नाटककार को महाकाव्यकारों से भी श्रेष्ठ मानने की परम्परा हमारे यहाँ रही है।

भारत ने विश्व-साहित्य को अनेक उच्चकोटि के प्रतिभा सम्पन्न नाटककार दिये है जिनकी कृतियों का सम्मान विश्व के कोने कोने में हुआ है। कालिदास के शाकुन्तल जैसा महान् ‘नाटक’ आजतक विश्व की किसी भाष में नहीं लिखा गया। यह भारतीयों का ही अभिमत नहीं, विदेशों के भी अनेक पक्षपातविहीन समीक्षकों की यही राय है। चरित्र-चित्रण, रस-परिपाक, घटना-वर्णन सभी दृष्टियों से यहाँ के अनेक नाटक विदेशी नाटकों से उत्कृष्ट सिद्ध हुए हैं। सत्य, शिव और सुन्दर की प्रतिष्ठा हो यहाँ के साहित्यकारों का लक्ष्य रहा है। विश्वजनीन मानव-संस्कृति के पवित्र उच्च आदशों की स्थापना ही हमारी नाट्य-रचना-पद्धति की नींव रही है।

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