Rigved Set of 4 Vols. (ऋग्वेद 4 भागो में)
₹1,120.00
Author | Aachary Vedant Tirth |
Publisher | Manoj Publication |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2022 |
ISBN | 978-81-310-0454-8 |
Pages | 2067 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 12 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | MP0056 |
Other | Dispatched in 3 days |
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ऋग्वेद 4 भागो में (Rigved Set of 4 Vols.) ऋग्वेद’ ऋचाओं का वेद है। इसमें ऋषि-मुनियों द्वारा समय-समय पर रचित मन्त्रों का संकलन है। इन मन्त्रों को ही ऋचा कहा जाता है। छन्द और पदों में रचित मन्त्रों को ऋचा नाम दिया गया है। कहीं-कहीं ऋग्वेद संहिता नाम भी प्रचलित है। संहिताओं का अर्थ ऋचाओं के संग्रह से है। इस प्रकार ऋचाओं का संगृहीत स्वरूप ‘ऋग्वेद संहिता’ कहा जाता है।
रचना-प्रक्रिया
‘ऋग्वेद’ में दस हजार पांच सौ इक्कीस (10,521) ऋचाएं अथवा मन्त्र हैं, जिन्हें एक हजार अट्ठाईस (1,028) सूक्तों में बांधा गया है। ‘ऋग्वेद’ में प्रायः अग्नि, इन्द्र, वायु, सविता, वरुण, विष्णु और रुद्र आदि देवताओं का वर्णन मिलता है। प्रत्येक देवता के लिए अलग-अलग सूक्तों में, थोड़ी-थोड़ी ऋचाएं निश्चित की गयी हैं। ‘ऋग्वेद’ में इन सूक्तों को मिलाकर ‘मण्डल’ बनाये गये हैं। सभी सूक्त दस मण्डलों में विभक्त हैं। इन मण्डलों को पिचासी (85) अनुवाकों (अध्यायों) में विभक्त किया गया है। ये अनुवाक ही सूक्तों में विभाजित हैं। ‘ऋग्वेद’ का एक अन्य विभाजन भी प्राप्त होता है। इस विभाजन के अनुसार ऋग्वेद को आठ अष्टकों में बांटा गया है। ये अष्टक कुछ ऋचाओं के समूह में विभाजित हैं। उन्हें ‘वर्ग’ नाम दिया गया है। ये वर्ग संख्या में दो हज़ार चौबीस (2,024) हैं, किन्तु यह विभाजन प्रचलन में नहीं है। प्रचलन में अनुवाक सूक्त वाला विभाजन ही सर्वमान्य है।
‘ऋग्वेद’ के प्रत्येक सूक्त के प्रारम्भ में, उसके रचयिता ऋषि, उसमें उपासित देवता का नाम और उस छन्द का नाम लिखा होता है, जिसमें उसे रचा गया है। महर्षि कात्यायन ने अपने ग्रन्थ ‘ऋग्वेद सर्वानुक्रमणी’ में इन नामों का उल्लेख करके ऋषियों के रचनाक्रम की महत्ता को प्रकट किया है। कुछ विद्वानों का कहना है कि महर्षि कात्यायन से पूर्व ऋषियों के नामों का उल्लेख ऋचाओं के सूक्तों पर नहीं था। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। महर्षि कात्यायन के पास इन नामों के उल्लेख का कोई-न-कोई आधार अवश्य रहा होगा, अन्यथा ऋचाओं के रचयिता ऋषियों का नाम खोजना बिना किसी संकेत के सम्भव नहीं हो सकता। यह भी कहा जाता है कि ब्राह्मण ग्रन्थों और अन्य परम्पराओं का अन्वेषण करके सम्भवतः महर्षि कात्यायन ने ऋषियों की सूची बनायी होगी, परन्तु ब्राह्मण ग्रन्थ वेदों के रचनाकाल से बहुत बाद के हैं। उनमें ऋषियों का जो क्रम आया होगा, वह भी किसी-न-किसी आधार पर निश्चित किया गया होगा।
विषयवस्तु
ऋग्वेद में जीवन के प्रत्येक पक्ष का विवेचन है। इसमें सिद्धांत और व्यवहार दोनों की व्याख्या की गई है। कर्म, उपासना और ज्ञान की प्रत्येक विधा का इसमें समावेश किया गया है।
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