Vishwa ki Prachin Sabhyatayen (विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ)
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Author | Sriram Goyal |
Publisher | Vishwavidyalay Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 14th edition, 2018 |
ISBN | 978-93-5146-156-2 |
Pages | 472 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0109 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ (Vishwa ki Prachin Sabhyatayen) भारत में विश्व की प्राचीन सभ्यताओं का सांगोपांग अध्ययन अभी हाल ही में प्रारम्भ हुआ है। इस विषय की अब तक जितनी उपेक्षा होती रही है, उससे हमारी इतिहास दृष्टि में भारी दोष उत्पन्न हो गया है और हम स्वयं अपने देश के इतिहास और संस्कृति के महत्त्व को समझने में असमर्थ होते जा रहे हैं। आजकल हमारे देशवासियों के मन में या तो यह धारणा मिलती है कि भारत प्राचीन काल में विश्व का गुरु था अथवा वे कुछ पाश्चात्य आलोचकों के साथ यह विश्वास करते पाये जाते हैं कि हमारी प्राचीन संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति की तुलना में सर्वथा उपेक्षणीय थी। इसलिए इस बात की परमावश्यकता है कि हम अपने देश के इतिहास और सांस्कृतिक विकास का विश्व इतिहास और सांस्कृतिक विकास की पृष्ठभूमि में अध्ययन करें। तब हम पायेंगे कि प्राचीन काल में न तो अन्य देशों के निवासी पूर्णतः बर्बर थे और न हमारी संस्कृति उतनी विकृत थी जितनी कुछ पाश्चात्य आलोचक बताते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक लेखक की ‘प्रागैतिहासिक मानव और संस्कृतियाँ’ पुस्तक के बाद की कड़ी है। इसमें उक्त पुस्तक की विषयसामग्री के सार को पहले अध्याय में पृष्ठभूमि के रूप में दिया गया है। और भी, जहाँ तक सम्भव हो सका है, नवीनतम गवेषणाओं से प्रकाश में आये तथ्यों को समाविष्ट किया गया है।
पुस्तक में उल्लिखित कुछ ऐसी बातों की ओर लेखक सुधी पाठकों का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित करना चाहता है जो उसके अपने अध्ययन और मनन के परिणाम है। उदाहरणार्थ, उसने सुझाव रखा है कि सैन्धर्व-धर्म में ‘शिव’ को मातृशक्ति का भाई और पति दोनों माना जाता है। इतना ही नहीं, उसने यह सम्भावना भी मानी है कि सैन्धव-समाज में भाई-बहन के विवाह की प्रथा प्रचलित थी। लेखक का विश्वास है कि उसके ये सझाव सुपुष्ट प्रमाणों पर आधृत हैं। इनके स्वीकार से भारत के धार्मिक और सामाजिक इतिहास पर नया प्रकाश मिलेगा और भारतीय सामाजिक संगठन के अनेक पक्षों की मीमांसा सरलतर हो जायेगी। इनके अतिरिक्त, लेखक ने इस पुस्तक में अपने कुछ ऐसे सुझावों का उल्लेख भी किया है जिनका विस्तरशः विवेचन वह अन्यत्र कर चुका है। उदाहरणार्थ, उसने सम्भावना व्यक्त की है कि भारतीय जल-प्लावन-आख्यान मूलतः भारतीय था और ऋग्वेद के रुद्र ‘झंझावात के साथ आने वाले विद्युत्धारी घने काले मेघों’ का दैवीकरण थे। क्योंक इन समस्याओं का विस्तरशः विवेचन इस प्रकार की पुस्तक में उचित नहीं था, इसलिए लेखक इन समस्याओं में रुचि रखने वाले पाठकों से इन पर अपने अन्यत्र प्रकाशित निबन्धों को (देखिए, पठनीय सामग्री) एक बार देख जाने का अनुरोध करता है।
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