Gauri Kanchalika Tantram (गौरिकांचलिकातन्त्रम)
₹30.00
Author | Ajay Kumar Uttam |
Publisher | Bharatiya Vidya Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2004 |
ISBN | 81-87415-51-7 |
Pages | 84 |
Cover | Paper Back |
Size | 12 x 2 x 19 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | BVS0093 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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गौरिकांचलिकातन्त्रम (Gauri Kanchalika Tantram) तान्त्रिक वाङ्मय अत्यन्त ही विशाल एवं समृद्ध है। यह जितना वैदिक काल में प्रचलित था उससे भी अधिक आज प्रचलित है। यद्यपि वर्तमान समय में अनेक तान्त्रिक ग्रन्थों का प्रकाशन हो रहा है, किन्तु इसका बहुत बड़ा भाग हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के रूप में देश के तथा विदेशों के पुस्तकालयों में अमुद्रित रूप में सुरक्षित हैं। अनेक ग्रन्थों का तो केवल नाम ही लिखा हुआ मिलता है उनकी पाण्डुलिपियाँ आज हमें प्राप्त नहीं होती है। इस सम्पूर्ण तान्त्रिक साहित्य को सुविधा की दृष्टि से हम चार प्रधान भागों में इस प्रकार विभाजित कर सकते हैं-
(१) सैद्धान्तिक तान्त्रिक ग्रन्थ। (२) मन्त्रप्रयोगात्मक तान्त्रिक ग्रन्थ।
(३) यन्त्रप्रयोगात्मक तान्त्रिक ग्रन्थ। (४) मन्त्रौषधिप्रयोगात्मक तान्त्रिक ग्रन्थ।
१. सैद्धान्तिक तान्त्रिक ग्रन्थ-इन ग्रन्थों में तान्त्रिक रहस्य, सिद्धान्त, मन्त्रों एवं यन्त्रों का उद्धार, देवी देवताओं की पूजा विधि एवं उनके मन्त्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन उपलब्ध होता है। यह साहित्य शैव, शाक्त, वैष्णव सौर एवं गाणपत्य आदि में प्राप्त होता है। इसके प्रमुख ग्रन्थ है अभिनव गुप्त का तन्त्रालोक एवं तन्त्रसार, सात्वत संहिता, ज्ञानार्णव तंत्र, त्रिपुरार्णव तन्त्र, श्रीविद्यावर्णतन्त्र, त्रिपुरारहस्य, परमानन्द तन्त्र, स्वच्छन्दतन्त्र, शक्तिसंगमतन्त्र आदि।
२. मन्त्रप्रयोगात्मक तान्त्रिक ग्रन्थ-इन ग्रन्थों में मन्त्रों के प्रयोग से देवी, देवता, यक्षिणी, अप्सरा, किन्नरी, योगिनी, मधुमती आदि की सिद्धि, काम्य प्रयोग, षष्टकर्मों का वर्णन पाया जाता है। इस प्रकार के ग्रन्थ मन्त्र महोदधि, मन्त्रमहार्णव, सांख्यायन, तन्त्र, दिव्याङ्गगना तन्त्र, भैरवपद्मावती कल्प, कृष्णानन्द आगमवागीश कृत वृहत्, तन्त्रसार आदि।
३. यन्त्र प्रयोगात्मक तान्त्रिक ग्रन्थ-इन ग्रन्थों में यन्त्रों का उद्धार तथा पूजन, मारण, मोहन, उच्चाटन वशीकरण, शान्ति, पुष्टि, स्त्रीसुख, बन्ध्यापुत्र प्राप्ति, विभिन्न प्रकार के रोगों के निवारण आदि के यन्त्रों का वर्णन पाया जाता है। इन यन्त्रोंको विधिपूर्वक धारण करने से समस्त सम्बन्धित कमों में सिद्धि प्राप्त होती है। इस प्रकार के ग्रन्थों में प्रधान ग्रन्थ है-यन्त्र चिन्तामणि, यन्त्रराज, यन्त्रराजागम यन्त्रराजागमशास्त्र, यन्त्रसार, यन्त्रकल्प, यन्त्रचूड़ामणि, यन्त्रराजागम, यन्त्रराजागमशास्त्र, यन्त्रसार, यन्त्रदर्पण।
४. मन्त्रीषधिप्रयोगात्मक तान्त्रिक ग्रन्थ-इस प्रकार के राज्यों में मन्त्रों में प्रयोग होता है बिना मन्त्र के अथवा मन्त्र के सहित यह औषधियाँ वशीकरण, मरण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण एंव विद्वेषण कर्म में सिद्धि दिलाती हैं। इन औषधियों को शुभ, दिन एवं नक्षत्र में प्रयोग करने पर अवश्य ही अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। जब औषधि का प्रयोग मन्त्र के किया जाता है तो वह ग्राम्य भाषा में टोटके के रूप में जाना जाता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ गौरीकाञ्चलिकातन्त्र मन्त्रौषधि प्रयोगात्मक साहित्य के अन्तर्गत आता है। यह ग्रन्थ हरगौरीसंवाद के रूप में है। इस तन्त्रमें रोगजन्मनक्षत्रफल, औषधोत्पाटन, ऋतुभेद, चित्रककल्प, मण्डूकपर्णीकल्प, पुनर्नवाकल्प, निर्गुण्डीकल्प, हस्तिकर्णकल्प, श्वेतार्ककल्प, भृगराजकल्प, काछलाकल्प, अम्लालोनीकल्प, शाल्म नीकल्प, अभयाकल्प, औषधि के भक्षण में नक्षत्रनियम, ज्वरचिकित्सा, ज्वरनाशनमन्त्र, छेदनमन्त्र, बहुमूत्रचिकित्सा, मूत्रकृच्छ्रचिकित्सा, विन्दुक्षयचिकित्सा, कुरण्डचिकित्सा, भगन्दरचिकित्सा, कामलाचिकित्सा, वैवर्ण्यचिकित्सा, कासचिकित्सा, क्षयकासचिकित्सा, कर्णशूलचिकित्सा, चक्षुरोगचिकित्सा, शिरोरोगचिकित्सा, पद्मगन्धाचिकित्सा, दन्तरोग चिकित्सा, कुष्ठरोग चिकित्सा, अर्बुदरोगचिकित्सा, निद्रामोक्षोपाय, अदृश्योपाय, अदृश्यनिधिदर्शनोपाय, देहदुर्गन्धहरण, देहसौगन्ध्यजनन, मुखसौगन्धय जनन, लोमपातन, स्तनगुणाधान, सौभाग्यजनन, वरागलेप, स्त्रीवशीकरण, दम्पतिप्रीतिजनन, जगदृशीकरण, तिलककरण, मोहन, वीर्य्यजनन, बलवर्द्धना, श्रुतिधारण, अस्त्रस्तम्मन तथा मात्रस्पन्दन का वर्णन किया गया है।
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