Vrihad Shiv Svaroday (वृहद् शिव स्वरोदय)
₹102.00
Author | Dr. Chaman Lal Gautam |
Publisher | Sanskriti Sansthan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2022 |
ISBN | - |
Pages | 194 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SS0012 |
Other | Dispatched in 3 days |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
वृहद् शिव स्वरोदय (Vrihad Shiv Svaroday) भारतीय विद्याओं में स्वर विद्या का अत्यन्त महत्त्व है, पर इस विषय पर अधिक ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं, और जो उपलब्ध हैं भी, उनमें ‘शिव स्वरोदय’ नामक यह ग्रन्थ अपनी विशेषता रखने के कारण लोक में प्रसिद्ध है। इसका कारण श्रद्धालुजनों की श्रद्धा ही नहीं, वरन् ग्रन्थ की अपनी उपयोगिता भी है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में वर्णित विधियों से सर्व कार्यो की सिद्धि होने वाले निर्देश के प्रति पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित शिक्षित पुरुष उपेक्षा और तिरस्कार की भावना प्रकट करते हैं और उन्हें कपोल कल्पित मानकर हँसी उड़ाते हैं। परन्तु इन्हें यह ज्ञात नहीं है कि भारतीय संस्कृति में ऐसे चमत्कार भरे पड़े हैं, जो अनुभव में आने से पूर्व असम्भव ही प्रतीत होते हैं। परन्तु जब उनका प्रत्यक्ष देखना सम्भव होता है, तब उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता। इस प्रकार इस ज्ञान की यथार्थता अनुमान से नहीं, अनुभव से ही सिद्ध हो सकती है।
प्राचीन ऋषियों ने स्वर योग का दिव्य एवं महत्त्वपूर्ण होना प्रमाणित कर दिखाया क्योंकि इसकी खोज दिव्य नेत्रों से ही की गयी थी। इसलिए वर्तमान में इस विद्या का कितना ही हास क्यों न हो गया परन्तु यह स्वीकार करना होगा कि यह विद्या कभी नहीं मिट सकती। अमर रही है और अमर ही रहेगी।
इस विद्या के आदि आविष्कारक भगवान् शिव हैं, इसलिए इसका नाम ‘शिवस्वरोदय‘ हुआ। स्वयं शिवजी ने पार्वती जी से कहा कि इस स्वरोदय में किसी प्रकार के कुयोग की आशंका नहीं रहती और इसकी सहायता से सभी बिगड़ते हुए कार्य बन जाते हैं। उन्होंने इस शास्त्र को सभी शास्त्रों, पुराणों, इतिहासों, स्मृतियों और यहाँ तक कि वेद-वेदांगों से भी श्रेष्ठ तथा गुप्त से गुप्त वस्तुओं का प्रकाशक कहकर इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला था।
इस प्रकार ग्रन्थ के वर्णनानुसार इस शास्त्र का प्रणयन भगवती पार्वती जी की उत्कण्ठा और उसके समाधान स्वरूप शिव पार्वती के सम्वाद रूप में हुआ है और इसमें जो तत्त्वज्ञान भरा पड़ा है, वह लोकोपकारार्थ अत्यन्त उपयोगी एव महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वह ज्ञान भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से कल्याणकारी है।
प्रमुख रूप से इस ग्रन्थ में पंचतत्त्व, स्वर, प्राणवायु, नाड़ी, प्राणायाम, काल, संध्या तथा रोग आदि के ज्ञान के साथ योग की सामान्य विधि के द्वारा मोक्ष प्राप्ति के साधनों पर भी प्रकाश डाला गया है, जिससे कि साधक और ज्ञानाकाँक्षी पुरुष को क्षुद्र और बृहद् सभी प्रकार के कार्यो में सफलता, योग, सिद्धि, स्वर-सिद्धि तत्त्व साक्षात्कार एवं अमरत्व प्राप्ति के उपाय आदि गूढ़ातिगूढ़तम विषयों की जानकारी सुलभ है।
Reviews
There are no reviews yet.