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Satya Jatak (सत्य जातक)

25.00

Author Radhika Raman Tripathi
Publisher Bharatiya Vidya Sansthan
Language Hindi
Edition 1st edition, 1996
ISBN -
Pages 152
Cover Paper Back
Size 12 x 1 x 18 (l x w x h)
Weight
Item Code BVS0165
Other Old and Rare Book

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Description

सत्य जातक (Satya Jatak) “यद् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे” जो पिण्ड में है वह सब ब्रह्माण्ड में है। प्राचीन ऋषि एवं मुनियों ने पिण्ड का समुचित अध्ययन किया था एवं बहुत कुछ जानकारी हासिल की थी। ज्ञान नेत्रों द्वारा पिण्ड में क्रिया एवं ज्ञान का बोघ कर सूत्र स्थापित किया। इसी आधार पर ब्रह्माण्ड का भी अध्ययन कर सूत्र स्थापित किया ये ही ज्योतिषशास्त्र के रूप में उ‌द्भाषित हुये। वेद- वेदाङ्ग-स्मृतियाँ-पुराण-महाभारत-रामायण आदि सभी शास्त्र पिण्ड एवं उसमें स्थित मन एवं आत्मा के विषय में ही किसी न किसी रूप में देते हैं। पिण्ड एवं ब्रह्माण्ड के अतिरिक्त जानने योग्य कोई पदार्थ या तत्व नहीं है। इन्हें जानने के पश्वात् और जानने के लिये कुछ रह नहीं जाता। संसार में अभी तक इनके विषय में पूर्ण रूप से जानकारी नहीं हो पाई है। वास्तविक पूर्ण- ज्ञान होने पर मनुष्य कालमयी हो जायेगा एवं इच्छा मृत्यु की प्राप्ति होगी एवं अमरत्व स्थापित होगा परन्तु यह अभी तक नहीं हो पाया है। मनुष्य इसके लिये क्रियाशील है चेतन प्रकृति भी उसी ओर मानव को ले जा रही है।

प्रस्तुत पुस्तक सदाचार्य (जो वाराहमिहिर से पूर्ववर्ती हैं) द्वारा रवि ‘सत्य-जातक’ नामक पुस्तक को आधार मानकर लिखी गयी है। प्रथम अध्याय में वर्णित भाबेश फल है जिसके द्वारा ग्रहों की महादशा एव अन्तंदशा का फल कथन है। दूसरे अध्याय में ग्रह का फल है तीसरे अध्याय में महादशा निकालने की नवीन पद्धति प्रकाशित की गई है इस पद्धति को भूनुविशोत री कहा गया है। इससे फल बहुत सही आता है। सभी फल विस्तृत एवं तर्क संगत है इतना विस्तार में फल कथन लेखक की दृष्टि में अन्यत्र किसी पुस्तक में दृष्टिगोचर नहीं हुआ। प्रस्तुत पुस्तक ज्योतिष के फलित क्षेत्र में एक सुन्दर उपहार स्वरूप है।

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