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Ekadashi Vrat ka Mahatmy (एकादशी व्रत का माहात्म्य)

35.00

Author -
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi
Edition -
ISBN -
Pages 175
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0158
Other Code-1162

 

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Description

एकादशी व्रत का माहात्म्य (Ekadashi Vrat ka Mahatmy) यज्ञदानतपः कर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्’, श्रीमद्भगवद्गीतामें भगवान् श्रीकृष्णके ये वचन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। यज्ञ, दान और तपरूप कर्म किसी भी स्थितिमें त्यागनेयोग्य नहीं हैं, अपितु कर्तव्यरूपमें इन्हें अवश्य करना चाहिये। शास्त्रोंमें ‘तप’ के अन्तर्गत व्रतोंकी महिमा बतायी गयी है। सामान्यतः व्रतोंमें सर्वोपरि एकादशी व्रत कहा गया है। जैसे नदियोंमें गंगा, प्रकाशक तत्त्वोंमें सूर्य, देवताओंमें भगवान् विष्णुकी प्रधानता है, वैसे ही व्रतोंमें एकादशी व्रतकी प्रधानता है। एकादशी व्रतके करनेसे सभी रोग-दोष शान्त होकर लम्बी आयु, सुख-शान्ति और समृद्धिकी प्राप्ति तो होती ही है, साथ ही मनुष्य-जीवनका मुख्य उद्देश्य- ‘भगवत्प्राप्ति’ भी होती है।

संसारमें जीवकी स्वाभाविक प्रवृत्ति भोगोंकी ओर रहती है, परंतु भगवत्संनिधिके लिये भोगोंसे वैराग्य होना ही चाहिये। संसारके सब कार्योंको करते हुए भी कम-से- कम पक्षमें एक बार हम अपने सम्पूर्ण भोगोंसे विरत होकर ‘स्व’ में स्थित हो सकें और उन क्षणोंमें हम अपनी सात्त्विक वृत्तियोंसे भगवच्चिन्तनमें संलग्न हो जायँ, इसीके लिये एकादशी व्रतका विधान है। ‘एकादश्यां न भुञ्जीत पक्षयोरुभयोरपि।’ दोनों पश्नों की एकादशी में भोजन न करे। वास्तव में शास्त्रकारोंने व्रतका स्तर स्थापित किया है। अपनी श्रद्धा और भक्तिके अनुसार जो सम्भव हो करना चाहिये- (१) निर्जल-व्रत, (२) उपवास-व्रत, (३) केवल एक बार अन्नरहित दुग्धादि पेय पदार्थका ग्रहण, (४) नक्त-व्रत (दिनभर उपवास रखकर रात्रिमें फलाहार करना), (५) एकभुक्त-व्रत (किसी भी समय एक बार फलाहार करना)। अशक्त, वृद्ध, बालक और रोगीको भी जो व्रत न कर सकें, यथासम्भव अन्न-आहारका परित्याग तो एकादशीके दिन करना ही चाहिये।

एकादशी देवीका प्रादुर्भाव मार्गशीर्षमासके कृष्णपक्षमें हुआ है। एकादशीसे सम्बन्धित बहुत-सी आवश्यक बातें इस मासके कृष्णपक्षकी ‘उत्पन्ना एकादशी’ के प्रसंगमें दी गयी हैं। पुराणोंमें २६ एकादशियोंकी अलग-अलग कथाएँ आती हैं, जिन्हें पढ़नेपर स्वाभाविकरूपसे ‘एकादशी व्रत’ के प्रति श्रद्धा जाग्रत् होती है। अतः यहाँ इन २६ एकादशियोंकी कथाओंको पद्मपुराणके आधारपर प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा है, पाठकगण इसे पढ़कर अवश्य लाभान्वित होंगे तथा जीवनपर्यन्त एकादशी- व्रतका संकल्प लेकर स्वयंको कृतार्थ करेंगे।

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