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Mool Ramayan (मूलरामायण)

10.00

Author Panday Ramnarayan Datt Shastri
Publisher Gita Press, Gorakhapur
Language Hindi & Sanskrit
Edition -
ISBN -
Pages 32
Cover Paper Back
Size 14 x 4 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code GP0157
Other Code - 223

 

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Description

मूलरामायण (Mool Ramayan) आजकल रामायण और भागवत – ये ही दो ग्रन्थ ऐसे हैं जो मोहमहासागरकी भँवरमें पड़े हुए प्राणियोंको पार लगानेके लिये जहाज कहे जा सकते हैं। इन्हीं दो ग्रन्थरत्नोंने राम-कृष्णके नामोंकी महिमा बताकर अनन्त भगवद्भक्तोंका महान् उपकार किया है और आज भी कर रहे हैं। वास्तवमें रामायण और भागवतके रूपमें भगवान् राम तथा कृष्ण ही अपने दर्शन एवं अमृतमय उपदेशसे हमें कृतार्थ कर रहे हैं।

इन दोनों ग्रन्थरत्नोंको हमारे लिये सुलभ करनेका अधिक श्रेय प्रेमावतार देवर्षि नारदजीको है, इन्होंने ही महर्षि व्यासको सरस्वतीके तटपर भागवतसंहिता बनानेके लिये उत्साहित किया था और इन्होंने ही तमसानदीके [ जिसे आजकल टोंस कहते हैं] तटपर महर्षि वाल्मीकिको मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् रामके जीवनका संक्षिप्त परिचय दिया था; जिसके आधारपर महर्षिने रामायणकी रचना की। उस समयतक लौकिक संस्कृतमें गद्यके सिवा पद्यमय रचनाका सूत्रपात ही नहीं हुआ था; अतः यह नूतन पद्यमय ग्रन्थ आदि- काव्यके नामसे विख्यात हुआ और इसके प्रणेताको आदिकविकी उपाधि मिली। इस आदिकाव्यका प्रथम सर्ग ही मूलरामायणके नामसे प्रसिद्ध है, इसमें नारदजीके वचनोंका ही संकलन है; यही सम्पूर्ण रामायणका बीज-सर्ग है। देवर्षि नारद और महर्षि वाल्मीकिका यह संवाद उस समय हुआ था जब कि भगवान् राम वनसे लौटकर अवधके राज्यसिंहासनपर आसीन हो चुके थे; इसका समर्थन मूलरामायणके ही ८९ से ११ तकके श्लोकोंके देखनेसे होता है।

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