Sankshipt Yog Vasishtha (संक्षिप्त योगवासिष्ठ)
₹210.00
Author | - |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Hindi |
Edition | 36th edition |
ISBN | - |
Pages | 608 |
Cover | Hard Cover |
Size | 19 x 3 x 27 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0078 |
Other | Code - 574 |
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CompareDescription
संक्षिप्त योगवासिष्ठ (Sankshipt Yog Vasishtha) भारतीय तत्त्वज्ञानके अनुसंधानकर्ता जिज्ञासुओं एवं साधकोंके लिये योगवासिष्ठ अनुपम ग्रन्थरत्न है। यह ग्रन्थ विश्वसाहित्यमें ज्ञानात्मक सूक्ष्मविचार तथा तत्त्वनिरूपक ग्रन्थोंमें सर्वश्रेष्ठ है। इसमें आत्मा-परमात्मा, जीव-जगत्, बन्धन-मोक्ष आदि दुरूह विषयोंका विभिन्न कथानकों तथा दृष्टान्तोंके द्वारा बड़ा ही सुन्दर विवेचन किया गया है। भगवान् श्रीरामको ज्ञानस्वरूप महर्षि वसिष्ठके द्वारा सुनायी गयी तत्त्वज्ञानकी यह सर्वोत्कृष्ट रचना है। यह ग्रन्थ महारामायण, वसिष्ठ-रामायण आदि नामोंसे भी विख्यात है। इस ग्रन्थके विषयमें महर्षि वसिष्ठने स्वयं कहा है कि ‘संसार-सर्पके विषसे विकल तथा विषय-विषूचिकासे पीड़ित प्राणियोंके लिये योगवासिष्ठ परम पवित्र अमोघ मन्त्र है।
योगवासिष्ठ अजातवाद या केवल ब्रह्मवादका ग्रन्थ है। इसके सिद्धान्तानुसार एकमात्र चेतनतत्त्व परब्रह्मके अतिरिक्त कोई सत्ता नहीं है। जैसे समुद्रमें असंख्य तरङ्गे उठती और मिटती रहती हैं, वे समुद्रसे भिन्न नहीं हैं, उसी प्रकार नित्य सच्चिदानन्द परमात्मतत्त्व समुद्रमें नाना प्रकारके अनन्त ब्रह्माण्डोंकी उत्पत्ति, स्थिति और विनाशकी लीला-तरङ्गे दीखती रहती हैं। अहंकारका नाश होते ही केवल एक ब्रह्म चैतन्य ही रह जाता है। इसी एक तत्त्वका विभिन्न आख्यानों, इतिहासों और कथाओंके द्वारा इस ग्रन्थमें प्रतिपादन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें योगसिद्धियों, योगके साधनों एवं योग-भूमिकाओंका भी अत्यन्त ललित वर्णन किया गया है। ज्ञानपरक ग्रन्थ होनेके बाद भी इसमें भक्ति और कर्मकी आवश्यकतापर बल दिया गया है। सदाचार और सत्संगकी महत्ताका भी स्थान-स्थानपर प्रतिपादन है। योगवासिष्ठका शिखिध्वज- चूडाला-संवाद नारीको ज्ञानकी सवर्वोत्तम महिमासे मण्डित करता है।
कल्याणके पैंतीसवें वर्षके विशेषाङ्कके रूपमें पूर्व प्रकाशित इस ग्रन्थका अब पाठकोंकी माँगको दृष्टिगत रखते हुए आफसेटकी सुन्दर छपाई, आकर्षक चित्रावरण और बहुरंगे चित्रों तथा आकर्षक साज-सज्जामें अलगसे ग्रन्थरूपमें प्रकाशन किया गया है। आशा है पाठक हमारे अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकाशनोंकी भाँति योगवासिष्ठको भी अपनाकर इसकी उपयोगिताका लाभ उठायेंगे।
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