Tajika Neel Kanthi (ताजिकनीलकण्ठी)
₹361.00
Author | Kedardatt Joshi |
Publisher | Motilal Banarasi Das |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2008 |
ISBN | 978-81-208-2113-2 |
Pages | 444 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | MLBD0054 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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ताजिकनीलकण्ठी (Tajika Neel Kanthi) ज्योतिष शास्त्र के होरा स्कन्धा में ताजिक ज्योतिष का समावेश होता है। मानव की पूर्ण आयु में प्रत्येक नवीन वर्ष के प्रवेश-समय को जानकर कुण्डली द्वारा वर्षपर्यन्त प्रत्येक मास का, प्रत्येक दिन व दिनार्थ से भी सूक्ष्म समय का शुभाशुभ-भविष्य-ज्ञान-प्रतिपादक फलित ज्योतिष का नाम ताजिक ज्योतिष है। आचार्य नीलकण्ठ ने सन् १५८७ में ताजिक नीलकण्ठी की रचना तीन तन्वें-प्रथम संज्ञातन्त्र, द्वितीय वर्धतन्त्र तृतीय प्रध्नतन्त्र में की थी।
१. संज्ञातन्त्र में : राशियों का दिग्देश स्वरूपादि वर्णन, किसी भी नवीन वर्ष-प्रवेश का सूक्ष्म-समय ज्ञान द्वारा वर्ष-कुण्डली ज्ञान, ग्रहों के अनेक प्रकार के बलों का अथवा परस्पर की दृष्टियों का विचार किया गया है। इसी तन्द्र में वर्षभर में प्राप्त होनेवाले इग्यशाल इक्कवाल-इन्दुवारादि सोलह योगों का विवेचन, मुंबहा ग्रह पर विशेष विचार तथा पुण्य-यश-गुरुज्ञान-माहात्य आदिक 38 सहमों का ज्ञान एवं तदनुसार फलादेश का विवेचन हुआ है।
२. वर्धतन्त्र में : वर्ष-मास दिनेशादि ग्रह-निरूपण, प्रथमादि द्वादश भावों का फल-विचार, दशाक्रम व विचार के साथ राजाओं के आखेट-भोजन-स्वप्न आदि अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
३. प्रश्नतन्त्र में : ग्रहों की अवस्था, स्वरूप, जय, पराजय, शरीर, रोग, घान, पुत्र, स्त्री, आयु तीर्थागमन, विवेशागमन, पद-प्राप्ति, नष्ट-तव्यज्ञान, राजभय, वन्धान, मोक्ष, क्रय-विक्रय प्रभृति अनेक प्रश्नों का प्रश्न लग्नानुसार विचार किया गया है। राष्ट्रभाषा ‘हिन्दी’ में हरिनेत्रवल्लभा व्याख्या सरल, सुगम और स्पष्ट है। पाठकों के लिए अतीव उपयोग होगी।
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