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Dahar Vidya (दहरविद्या)

50.00

Author Swami Maheshanad Giri
Publisher Dakshinamurty Math Prakashan
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2011
ISBN -
Pages 273
Cover Paper Back
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Item Code dmm0014
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Description

दहरविद्या (Dahar Vidya) आत्मसाक्षात्कार वह अलौकिक अनुभव है जो मानव के अस्तित्व का, उसे मिले वैदिक प्रबोधन का, किं वा जगत्-सृजन का वास्तविक उद्देश्य है। स्वयं की सचाई जाने बिना संसार में, इह-पर किसी धरातल पर चाहे जो प्राप्त हो जाये, तृप्ति संभव नहीं, पूर्णता संभव नहीं, अशान्ति व मर-मिटना संभव नहीं। भगवान् भाष्यकार आचार्य शंकर द्वारा व्याख्यात वेदान्त दर्शन इसी उद्देश्य की पूर्ति से गतार्थ होता है। आत्मबोध के लिये उपनिषदों ने जो विविध साधनों का विधान किया उनमें अनेक उपासनायें भी हैं। आत्मा के निरावरण में साक्षात् सक्षम न होने पर भी इन उपासनाओं का मोक्षलाभ में योगदान शास्त्र-न्याय-अनुभव सम्मत है। श्रवणादि ही साधन हैं, उनके योग्य अधिकारी के लिये ही वे कारगर हो पाते हैं, बाकी मुमुक्षु उनमें सर्वथा तत्पर हो नहीं पाते अतः यथाशक्ति श्रवणादि करने पर भी उन्हें लाभान्वित होने का स्पष्ट अनुभव नहीं होता। इसलिये मोक्षेच्छुकों को चाहिये कि उपनिषदों में बतायी परमात्म-उपासना का नियमतः अभ्यास करें। आचार्य महामण्डलेश्वर श्री १०८ स्वामी महेशानन्दगिरिजी महाराज ने अनेक प्रवचन श्रृंखलाएँ इन उपासना-प्रसंगों पर व्यक्त की, अनेक प्रकाशित भी हैं। ईस्वी सन् १९७६ में दिल्ली संन्यास आश्रम की दैनिक कथा के क्रम में मार्च २५ से अप्रैल ११ तक चली उनकी कथा छान्दोग्य उपनिषत् के अन्तिम भाग में आयी दहरविद्या के विषय पर थी।

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