Samkalin Pashchatya Darshan (समकालीन पाश्चात्य दर्शन)
₹130.00
Author | Dr. Laxmi Saxena |
Publisher | Uttar Pradesh Hindi Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 4th edition, 2009 |
ISBN | 978-81-89989-31-6 |
Pages | 568 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 3 x 21 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPHS0036 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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समकालीन पाश्चात्य दर्शन (Samkalin Pashchatya Darshan) ‘दर्शन’ का स्थूल अर्थ भले ही मात्र देखने तक सीमित हो, जब वह अंग्रेजी शब्द फिलासफी’ के अर्थ में प्रयुक्त होता है तो ज्ञान के प्रति प्रेम के अनेक अर्थ-संकेतों सहित चिंतन की अनन्त ऊँचाइयों का पर्याय बन जाता है। वस्तुतः दर्शनशास्त्र जीवन का कहीं अधिक व्यापक, रहस्यमय तथा प्रखर क्षेत्र है एवं यह मानव अस्तित्व के कारणों से लेकर अनन्त की खोज और उसके स्वरूप की व्याख्या-जैसे अनेकानेक प्रश्नों से निरंतर जूझ रहा है। भारतीय दर्शन-परम्परा में इसे ‘सत्य की खोज कहा गया है जो आज भी जारी है। भारतीय उपनिषदों और शास्त्रों में इसका विशद् विवरण मिलता है। इसी दर्शन-परम्परा की पृष्ठभूमि में हमारे देश में विचार-वैषम्य को हमेशा सम्मान मिलता रहा है। कौन जाने कि विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों और संस्कृतियों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वर्तमान अवधारणा के मूल में यहीं महान भारतीय दार्शनिक परम्परा प्रमुख उत्प्रेरक की भूमिका निभा रही हो।
फिर भी, यह महान चिंतन परम्परा, जिसे हम ‘दर्शन’ शब्द से अभिहित करते हैं, समग्र मानव जाति की धरोहर है। निरंतर नये-से-नये प्रश्नों से जूझना इसकी प्रकृति में है। काल के प्रवाह में पश्चिमी देशों में भी समय-समय पर अनेक दार्शनिक हुए हैं और उन्होंने भी जीव, जगत और प्रकृति के अस्तित्व से जुड़े प्रश्नों के अतिरिक्त अन्य अनेकानेक सुसंगत प्रश्नों के अपने-अपने ढंग से उत्तर दिये हैं। इन विचारों से गुजरना हमें न केवल मानवीय चिंतन को नये धरातलों से जोड़ता है, अपितु मानवीय मेधा की असाधारण बौद्धिक और तार्किक क्षमताओं से भी परिचित कराता है। पश्चिमी परम्परा में सर्वप्रथम दार्शनिक चिंतन का प्रारम्भ थेलेज से माना जाता है जो शाक्यमुनि गौतम बुद्ध के परवर्ती काल में हुए थे। इनके बाद तो पश्चिमी देशों विशेषकर यूनान आदि में दार्शनिकों की लम्बी और गौरवपूर्ण परम्परा चल निकली। हेराक्लेटस, लियूसिफस, पाइथागोरस, सुकरात, प्लेटो और अरस्तू जैसे महान पश्चिमी दार्शनिकों की यह प्राचीन परम्परा वर्तमान युग तक आते-आते आज हीगल, कार्लमार्क्स, बर्टेड रसेल, कामू और ज्याँपाल सात्र आदि से गौरवान्वित होती है।
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