Narayan Bali Shraddh Paddhati (नारायण बलि श्राद्ध पद्धति)
₹50.00
Author | Shri Dhar Shastri |
Publisher | Shastri Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2022 |
ISBN | - |
Pages | 188 |
Cover | Paper Back |
Size | 17 x 0.5 x 11 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | SP0017 |
Other | Dispach in 1-3 days |
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नारायण बलि श्राद्ध पद्धति (Narayan Bali Shraddh Paddhati) कर्मकाण्ड की पद्धतियों में यह ‘नारायण बलि श्राद्ध पद्धति’ आपके समक्ष है। आज नारायण बलि श्राद्ध की जो पद्धतियां उपलब्ध हैं। उनमें कई स्थानों पर परस्पर विभेद है। उदाहरणार्थ-पण्डित नित्यानन्दपवर्तीय ने अपनी अन्त्यकर्म दीपक में केवल सुवर्णमय विष्णु और यम की ही प्रतिमा बनाने तथा इन्हीं दो के लिए कलश स्थापना की बातें लिखी हैं, जबकि प्रेतवल्लरी में तथा पण्डित वायुनन्दन मिश्र ने (ब्रह्मा-विष्णु-शिव-यम-प्रेत) पांच प्रतिमा (क्रमशः सोना, चाँदी, तांबा, लोहा, सीसा) तथा पांच कलश स्थापना की बात लिखी है। पण्डित वायुनन्दन मिश्र तथा पं० काशीनाथ मिश्र की पद्धतियों में भी बहुत अन्तर है। पण्डित काशीनाथ मिश्र ने अपनी बृहत् प्रेत मंजरी में छाया पात्र आदि भी लिखा है, जो पण्डित वायुनन्दन मिश्र की नारायण बलि प्रयोग में नहीं है। चौखम्बा संस्कृत सीरीज आफिस बाराणसी से प्रकाशित “नारायण बलि प्रयोग” (लेखक पण्डित तेजोभानु शर्मा) पुस्तक में गणेशादि तथा नवग्रह की स्थापना एवं गौतमादि की पूजा भी लिखी है।
पण्डित वायुनन्दन मिश्र ने अपनी पद्धति में एकादशश्राद्ध में (उद्मुख उत्तरोत्तर क्रमेण एकादश चटान् संस्थाप्य प्रथम चटे) श्राद्धकर्ता उत्तरमुख होकर उत्तरोत्तर क्रम से ११ आसनों पर विष्णु आदि को आसन देने की बात लिखी हैं, जबकि पण्डित नित्यानन्द ने अन्त्यकर्म दीपक में मिताक्षरा का वचन उधृत किया है। (दशपिण्डान् घृताभ्यक्तान् दर्भेषुमधुसंयुतान्। तिलमिश्रान् प्रदद्याद्वै संयतौ दक्षिणामुखः) दक्षिणमुख होकर दशपिण्ड देना चाहिए। इस तरह विभिन्न पद्धतियों में इतनी विभिन्नता है कि किसे प्रामाणिक माना जाय-यह मानना कठिन हो जाता है।
नारायण बलि प्रत्येक मृतक के लिए करना चाहिए किन्तु दुर्मरण में अवश्य करना चाहिए। कुछ पद्धतिकारों ने नारायण बलि करने के पूर्व नदी तालाब पर जाकर स्नान विधि से स्नान करने को लिखा है। इन पद्धतिकारों ने नदी स्नान के बाद प्रायश्चित तथा नारायण बलि अधिकार हेतु तीन गोदान करने को लिखा है। कुछ लोग वीर भोजन भी करने को लिखते हैं। मिताक्षरा आदि कुछ धर्म ग्रन्थों में देव पूजन हवन बलि प्रदान नहीं लिखा है, किन्तु कर्मकाण्ड की पुस्तकों में यह प्रक्रिया दी गई है। इधर जो प्रक्रिया प्रचलित है, उसके लिए यह पुस्तक तैयार की गई है।
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