Aahar Jyotish (आहार ज्योतिष)
₹100.00
Author | Satya Prakash Dvivedi |
Publisher | Uttar Pradesh Sanskrit Sansthan |
Language | Hindi |
Edition | 1st edition, 2016 |
ISBN | - |
Pages | 121 |
Cover | Paper Back |
Size | 21 x 0.5 x 13 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | UPSS0032 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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आहार ज्योतिष (Aahar Jyotish)
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेधवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।
“जीदेम शरदः शतम्” उक्ति के माध्यम से आयुर्वेद में सौ वर्ष तक स्वस्थ्य जीवन की कल्पना की गई है, लेकिन वर्तमान समय की जीवन शैली में ऐसा हो पाना एक कल्पना की तरह है। इसका कारण व्यक्ति की जीवन शैली, खान-पान व वातावरण है। वर्तमान समय में वातावरण प्रदूषित है, वायु में हानिकारक तत्व धुल-मिल गए हैं, जल में हानिकारक वैक्टीरिया-वायरस है, खाने वाले अन्न में कीटनाशक जैसे विषैले पदार्थ की मात्रा मिश्रित है। इस तरह हम पृथ्वी से अन्न, जल या वायु के माध्यम से जो भी ग्रहण कर रहे हैं, वह हमारी जीवनी शक्ति को कमजोर कर हमे रोगी बना देता है।
आयुर्वेद जो कि अथर्ववेद का एक उपांग है, में रोग और स्वास्थ्य की सर्वांग पूर्ण व्याख्या एवं परिभाषा प्रस्तुत की गई हैं। इसके अनुसार शरीर को भूल जाना ही स्वास्थ्य है तथा इसके अतिरिक्त सभी परिभाषायें नकारात्मक मानी गयी है। उक्त के अनुसार जब कोई अपने शरीर को भूल जाता है तो उस समय वह स्वस्थ होता है क्योंकि प्राकृतिक अवस्था में अंग-अवयन अपने सुचारु रुप में कार्य करते है तब उसका एहसास नहीं होता है और यही स्वस्थ्य होना है। रोग का अर्थ है उस अंग-अवयव के होने का अनुभव होना। यदि किसी के सिर में दर्द हो रहा है तो उसे अपने सिर की उपस्थिति का आभास होता है ठीक उसी प्रकार शरीर के अन्य अंगो के रोगों के समय भी होता है। एक अन्य सकारात्मक परिभाषा स्वस्थ्य के सम्बन्ध में परिभाषित की गई है कि “Living according the rule of nature is called health and violation of nature’s law is called disease.” अर्थात् प्राकृतिक नियमों के अनुसार जीवन जीने की कला ही स्वास्थ्य है।
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