Ahirbudhnya Samhita (अहिर्बुध्न्यसंहिता)
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Author | Dr. Sudhakar Malviya |
Publisher | Chaukhambha Sanskrit Pratisthan |
Language | Sanskrit Text With Hindi Translastion |
Edition | 2007 |
ISBN | - |
Pages | 632 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0086 |
Other | Dispatched in 3 days |
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अहिर्बुध्न्यसंहिता (Ahirbudhnya Samhita)
तमेव विदित्वाऽतिमृत्युमेति
नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ॥ – यजुर्वेद ३१.१८
उन्हीं आदित्य (सूर्य मण्डलस्थ) रूप परम पुरुष को जानकर कोई भी मृत्यु का उल्लङ्घन कर सकता है क्योंकि मोक्ष के लिए कोई अन्य मार्ग नहीं है।
यह तभी सम्भव है जब हम भगवान् विष्णु के स्वरूप, उनके गुण तथा ऐश्वर्य का चिन्तन करें। भगवान् विष्णु की शक्ति महालक्ष्मी हैं। यह चन्द्रमा में रहने वाली चन्द्रिका के समान भावाभाव रूप दोनों अवस्थाओं में उनका अनुगमन करने वाली महान् पतिव्रता है। इस प्रकार महालक्ष्मी विष्णु से अभिन्न होते हुए भी भिन्न रूपा है। यह ज्ञान, आनन्द एवं क्रियामयी है। अनासक्त होते हुए भी यह आसक्त रहने वाली हैं। यह सन्मात्र, पूर्णा, रिक्ता एवं ऋतम्भरा हैं। यद्यपि समस्त प्रपञ्च का भेद उनमें अस्त हो जाता है जब कि सारे भेद उन्हीं से प्रगट होते हैं। वे षडध्व विषय से परे होने पर भी षडध्वविषयात्मिका है। इस प्रकार की महालक्ष्मी का स्वरूप, गुण एवं वैभव का वर्णन प्रस्तुत पाञ्चरात्र आगम गत अहिर्बुध्न्य संहिता में हुआ है।
भगवान् विष्णु की उत्प्रेक्षारूपिणी शक्ति, जिसका दूसरा नाम ‘सुदर्शन’ है, वही ब्रह्मदेव की पङ्कजा शक्ति हैं। भगवान् विष्णु का सङ्कल्प ‘सुदर्शन’ रूप में, जिसे भावक कहते हैं, स्थित है। अतः जगद्रक्षण रूप मन्त्र, यन्त्र तथा अस्त्र का विस्तार रूप से वर्णन इस ग्रन्थ का मुख्य विषय है। अहिर्बुध्न्य संहिता का प्रस्तुत संस्करण इदं प्रथमतया कृत हिन्दी व्याख्या के साथ भगवान् विष्णु एवं उनकी शक्ति महालक्ष्मी के उपासकों के सम्मुख प्रस्तुत है। इस ग्रन्थ का मूल आड्यार संस्करण पर ही आधृत है। ‘सरला’ हिन्दी व्याख्या में पूर्णरूप से आड्यार संस्करण से सहायता ली गई है। इसके लिए मैं फ्रेडरिक ओटो श्रोडर, पण्डित एम.डी. रामानुजाचार्य एवं पण्डित वी. कृष्णमाचार्य आदि विद्वानों का हृदय से आभारी हूँ।
पाञ्ज्ञरात्रागम के अनुसार परब्रह्म अद्वितीय दुःखरहित, निःसीम, सुखानुभवरूप, अनादि, अनन्त, सभी प्राणिजात में निवास करने वाला, समस्त जगत् में व्याप्त होकर स्थित रहने वाला, निर्वद्य एवं निर्विकार है। इस विषय में उस परब्रह्म की समता उस महासागर से दी जाती है जो तरङ्गरहित होने से नितान्त रूप से प्रशान्त है अर्थात् अतरङ्गार्णवोपम है। वह प्राकृतगुणस्पर्शहीन तथा अप्राकृत गुणों का आस्पद है। वह आकार, देश तथा काल से निरवच्छिन्न होने के कारण पूर्ण, नित्य तथा व्यापक है। वह देय-उपादेय से रहित है तथा इदन्ता (स्वरूप) ईश्वरत्व, और इयत्ता (परिमाण) इन तीनों से अनवच्छिन्न है। वह षाड्गुण्य योग से ‘भगवान्’ हैं। समस्त भूतवासी होने से वहीं ‘वासुदेव’ हैं तथा समस्त आत्माओं में श्रेष्ठ होने के कारण वही ‘परमात्मा’ है। इसी प्रकार गुणों की विशेषता के कारण वह अव्यक्त, प्रधान, अनन्त, अपरिमित, अचिन्त्य, ब्रह्म, हिरण्यगर्भ तथा शिव आदि नामों से प्रसिद्ध है।
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