Ashtadash Puran Darpan (अष्टादशपुराण दर्पण)
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Author | Pt. Jwala Prasad Mishra |
Publisher | Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2019 |
ISBN | - |
Pages | 420 |
Cover | Hard Cover |
Size | 17 x 2 x 24 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | KH0005 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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अष्टादशपुराण दर्पण (Ashtadash Puran Darpan) भारतवर्षमें चारों वर्ण और चारों आश्रमोंकी रीति नीति विचार आचारकी सामश्री अष्टादश पुराण ही है। प्रायः इन्हीके द्वारा पुरातन वृत्त, सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और बंशामुचरितका बोध होता है। इन पुराणोंके आख्यानोंसेही वेदार्थ भलीभाँतिसे जाना जाताहै लिखामी है-“इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्। बिभेत्यल्पश्श्रुताद्वेदो मामयं प्रहरिष्यति।।” इतिहास और पुराणोंसे वेदार्थका विस्तार करे, अल्पश्रुतसे वेद भय पाता है कि, यह मुझपर प्रहार करेगा, पुराणोंसे ही अपने पिता पितामह आदिका निर्मल मार्ग जाना जाता है, अनेक जातियोंकी उत्पत्ति, देशभेद, ज्ञान, विज्ञान, जगत्के भिन्न भिन्न विभागों के भिन्न २ नियम यह सब पुराणोंसे ही जाने जाते हैं, पुराण इतिहासके न होनेसे एक प्रकार जगत् अंधकारमय समझा जासकता है, भारतवासियोंका तो इतिहास पुराणही परम धन है, उपासना का भण्डार मुक्तिका द्वार पुराण ही है। पञ्चदेव उपासनाका विस्तार भगवदवतारकी विशेषता पुराण ही प्रतिपादन करते हैं। नवधा भक्ति ईश्वर के चरणोंमें प्रीति पुराणकथासे ही प्राप्त होसकती है। वहुत क्या, दोनों लोकोका साधक पुराण ही है, संसारमें जिन २ विषयोंकी आप खोज करना चाहें, वह विषय एकमात्र पुराणोंमें ही मिल सकता है, जब ऐसा है तो ऐसा कौन पुरुष है जो पुराणोंपर श्रद्धा न करेगा।
पुराणामें लौकिकभाषा, विचित्रभाषा और समाधिभाषा यह तीन भाषा लिखी गई हैं, और आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक यह तीन प्रकारकी कथायें लिखी गई हैं, जिनका मर्म समझनेसे बहुतसी शेकाये दूर हो जाती हैं। जो नृपतिगणके चरित्र लिखे हैं वह लौकिक भाषा है. कूर्म, मृग. नकुलादिक कथन विचित्र भाषामे हैं, मगवञ्चरित्र और भगवद्रहस्य समाधि भाषामें लिखे गये है। पंचभूतसम्बन्धकी आधिभौतिक, देवसम्वन्धकी आधिदैविक और आत्मा सम्बन्धकी कथायें आध्यात्मिक हैं, कितनीही कथा आलंकारिक है यथा [ब्रह्मा विश्वं विनिर्माय सावित्र्यां वरयोषिति। चकार वीर्याधानं च कामुक्यां कामुको यथा॥ सुषुवे चतुरो वेदानित्यादि ] ब्रह्माजीने विश्वको निर्माणकरके सावित्रीमें वीर्याधान किया उससे चार वेद प्रगट हुए इत्यादि पुरंजनोपाख्यान आध्यात्मिक है, इसी प्रकार इन कथाओंके गूढरहस्य हारे- वंशपुराण के पुष्कर प्रादुर्भावमें विशेषरूपसे लिखे हैं। जिनमें बहुतसी कथाओंकी शंकाओं का समाधान होजाता है, इस हरिवंशपुराणकी भाषाटीका भी मैंने कर दी है.
इस अष्टादशपुराणदर्पणमें पुराणोंकी समस्त कथायें दर्पणकी समान दिखाई देंगी, गुण आही सज्जन उदारप्रकृतिके पुरुष समझ सकते हैं कि, इस ग्रंथके निर्माणमें ग्रंथकतीको कितना परिश्रम हुआ होगा. तथापि यदि आप महानुभाव इस ग्रंथको अवलोकन कर सन्तुष्ट होंगे तो मैं अपने परिश्रमको सफल समझेगा।
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