Atichar Tattvam (अतिचार तत्वम)
₹10.00
Author | Pt. Sri Lashanlal Jha |
Publisher | Chaukhamba Sanskrit Series Office |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 1st edition, 2000 |
ISBN | - |
Pages | 42 |
Cover | Paper Back |
Size | 12 x 2 x 17 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSSO0248 |
Other | This Is Old And Rare Book . This Book Will Not Change |
10 in stock (can be backordered)
CompareDescription
अतिचार तत्वम (Atichar Tattvam) यह सर्वविदित है कि गुरु के राशि संचार वश लघु अविचार या महातिचार होता है जो शुभ कर्म के लिये वर्जित है । शास्त्रों में अतिचार के विषय में दो पक्ष हैं, उनमें मैथिल निवन्धानुसार जो पक्ष है उसके आधार पर विशेष समय महातिचार होने की संभावना रहती है। अन्य पक्षानुसार यदि कभी महातिचार होता भी है तो अपवाद वचन द्वारा विशेष समय दोष का परिहार होने से शुद्ध समय सदा बना रहता है।
मानव कल्याणार्थ महषियों ने धार्मिक कृत्यों का स्वरूप अनेक विध वताये हैं, उनके आधार पर भारत के प्रत्येक प्रान्तीय निबन्ध ग्रन्थ एक दूसरे से भिन्न निर्मित हैं। इस हेतु परिस्थितिवश शास्त्रानुसार निवन्ध ग्रन्थों का संशोधन हो सकता है। कुछ दिनों से मिथिला में अतिचार विषयक विवाद चल रहा है। दैवज्ञ शिरोमणि कविवर स्व० पं० सीताराम का द्वितीय पक्ष की मान्यता के लिये अनेकवार प्रयत्न किये किन्तु मैथिल पण्डित समाज द्वारा वह पक्ष स्वीकृत न हो सका।
सन् १३८४ साल के मिथिला पचाङ्ग में मिथन राशिस्थ गुरु में मैथिल निवन्धानुसार महातिचार प्राप्त रहने पर भी पंचाङ्गों में लघु अतिचार लिखकर समय को शुद्ध कर दिया गया जो उचित नहीं है। सामाजिक स्थितिवश अपवाद वचन द्वारा महातिचार का परिहार कर शुद्ध समय लिखना शास्त्र सम्मत होता। इस ग्रन्थ में अतिचार विषयक सभी विषय उदाहरण के साथ लिखे गये हैं, अन्त में सिह मकरस्थ गुरु मीमांसा भी है। साधारण व्यक्ति भी इसके द्वारा अतिचारादि का निर्णय कर सकेंगे।
आशा है मैथिल विद्वद्वर्ग भविष्य के लिये एक ऐसी व्यवस्था करेंगे जिससे “धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयो मिथिला व्यवहारतः” इसकी गरिमा बनी रहे। भ्रमवश जो त्रुटि प्रतीत हो उसे पाठकगण सूचित करने की कृपा करेंगे।
Reviews
There are no reviews yet.