Avagman Se Mukti (आवागमन से मुक्ति)
₹15.00
Author | Jaydayal Goyndka |
Publisher | Gita Press, Gorakhapur |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | - |
ISBN | - |
Pages | 128 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | GP0165 |
Other | Code - 1871 |
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CompareDescription
आवागमन से मुक्ति (Avagman Se Mukti) मनुष्य-जन्म बड़ा दुर्लभ है-‘ कबहुँक करि करुना नर देही। देत ईस बिनु हेतु सनेही ।’ यह जीव नाना योनियोंमें भ्रमण करता हुआ कष्ट पाता रहता है तथा महान् दुःखी होकर तंग आ जाता है। उस समय भगवान् कृपा करके उस जीवको मनुष्ययोनि देते हैं, जिससे यह बार-बार जन्म- मृत्युके चक्करसे छूटकर भगवत्प्राप्ति कर ले। मनुष्ययोनिके लिये जब यह जीव गर्भमें आता है, शास्त्र कहते हैं कि तब यह भगवान्से प्रार्थना करता है कि हे प्रभो! मुझे यहाँसे बाहर निकालें, अब मैं केवल आपका भजन ही करूँगा। किंतु बाहर आते ही यह अपनी इस प्रतिज्ञाको प्रायः भूल जाता है। गृहस्थके कार्योंमें तथा विषयोंमें ही अपने मनुष्य-जीवनके अमूल्य समयको बिताने लगता है। वह भोगोंके लिये और धन कमानेके लिये पापोंके करनेमें नहीं हिचकता। इन सब जीवोंकी दशा देखकर संत-महात्माओंका हृदय द्रवीभूत हो जाता है। उनके मनमें बार-बार यही स्फुरणा होती है कि किस प्रकार यह मनुष्य अब जन्म-मरणसे पिण्ड छुड़ावे। इसके लिये वे अथक प्रयत्न करते हैं।
श्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका जिन्होंने गीताप्रेस गोरखपुरकी स्थापना की थी, उनके भी यह लगन हर समय बनी रहती थी। इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिये उन्होंने आध्यात्मिक साहित्य, गीता, रामायण आदि सस्ते मूल्यमें उपलब्ध करवाये ताकि उन्हें पढ़कर लोग अपना जीवन सुधारें तथा इसी उद्देश्यकी पूर्तिके लिये स्वर्गाश्रम ऋषिकेश गंगाके पार वटवृक्षके नीचे, गंगाके किनारे टीबड़ीपर तीन-चार महीने सत्संग कराया करते थे। उनके सत्संगमें प्रवचनका एक ही लक्ष्य था कि उनकी बातोंको सुनकर, अपने जीवनमें लाकर हम जन्म-मरणसे छुटकारा पा जायँ।
हमें पूर्ण विश्वास है कि इन प्रवचनोंके पढ़ने, सुनने और मनन करनेसे हमें आध्यात्मिक लाभ विशेषतासे होगा। पाठकगण इन प्रवचनोंसे लाभ लें, इस दृष्टिसे इन पुराने संगृहीत प्रवचनोंका संकलन करके यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। पाठक लोग इनसे लाभ लें, यही हमारी सविनय प्रार्थना है।
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