Ayurved Pravesh Pariksha Darpan (आयुर्वेद प्रवेश परीक्षा दर्पण)
₹463.00
Author | Dr. Niranjan Saraf |
Publisher | Chaukhamba Publications |
Language | Hindi & Sanskrit |
Edition | 2022 |
ISBN | - |
Pages | 977 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP01065 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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आयुर्वेद प्रवेश परीक्षा दर्पण (Ayurved Pravesh Pariksha Darpan)
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्मांगरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै ‘न’ काराय नमः शिवाय ।।
मन्दाकिनी सलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रथमनाथमहेश्वराय । मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै ‘म’ काराय नमः शिवाय ।।
जिनके गले में सर्पों का हार विभूषित है, जो त्रिनेत्रधारी हैं, भस्म ही जिनके शरीर का उबटन है, जो दिगम्बर हैं यानी सम्पूर्ण दिशाएँ ही जिनके वस्त्र हैं उन विशुद्ध अविनश्वर महेश्वर ‘न’ कारस्वरूप शिव जी को मेरा प्रणाम है। जिनका पूजन अर्चन गंगाजल और चंदन से हुआ है, मन्दार तथा अन्य प्रकार के सुन्दर पुष्पों से जिनकी पूजा हुई है, उन नन्दीश्वर प्रथमगणनायकों के स्वामी महेश्वर ‘म’ काररूप शिव जी को हमारा नमस्कार है। सर्वप्रथम हमने मंगलाचरण करते हुए ‘भगवान शिव की अराधना की है जो हमारे इष्ट गुरु स्वामी विकासानंद जी महाराज के इष्ट देव हैं, साथ ही हम श्री साईबाबा एवं श्री गुरुदत्त भगवान को साष्टांग नमन करते हैं। इसके पश्चात्।
नमामि मातापितरौ यत्पदाम्बुजचिन्तनात । प्रयान्ति विपदः सर्वाः समायान्ति च सम्पदः ।।
हम माता पिता को भी प्रणाम करते हैं जिनके चरण कमलों का ध्यान मात्र करने से सभी विपत्तियाँ नष्ट हो जाती है तथा सभी सम्पदाओं का समागम होता है।
अन्नदो त्रस्यते जलदश्चैव आतुरस्य चिकित्सकः।
स्वर्गमायान्ति विना यज्ञेन भारत ।।
श्री कृष्ण जी ने अर्जुन से कहा है, अत्र देने वाला, जल देने वाला और रोग से पीडित की चिकित्सा करने वाला ये तीनों बिना यज्ञादि किए ही स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। उत्तम चिकित्सा करने हेतु एवं उत्तम चिकित्सक बनने हेतु उच्चतम ज्ञान की भी आवश्यकता होती है जो उच्चतम शिक्षा से प्राप्त होता है इसलिए हमने यह ग्रंथ आयुर्वेद के विद्यार्थियों के लिए लिखा है जो सरलता से एक ही ग्रंथ के द्वारा सम्पूर्ण आयुर्वेद शास्त्र को संक्षिप्त रूप में, अल्प समयकाल में एवं एक विशिष्ट क्रम के रूप में रूपचिपूर्वक पढ़ सकें और उच्चतम ज्ञान प्राप्ति हेतु आयुर्वेदीय प्रवेश परीक्षाओं में सफल हो सकें।
हमने सभी संहिताओं को सरलतम रूप में एवं केवल उनके उपयोगी अंशों को ही समाविष्ट करने का प्रयास किया है जिससे व्यर्थ ग्रंथ भार का वहन छात्रों को न करना पड़े।जैसे शारंगधर संहिता से केवल भैषज्यकल्पना ही पढ़नी चाहिए, काश्यप संहिता से केवल कौमारभृत्य विज्ञान ही पढ़ना चाहिए, माधव निदान से केवल माधव के विशिष्ट अध्याय ही पढ़ना चाहिए क्योंकि माधव निदान तो चरक एवं सुश्रुत संहिता का संग्रह ग्रंथ है। इसी प्रकार अष्टांग संग्रह एवं अष्टांग हृदय भी चरक एवं सुश्रुत संहिता का आधार लेकर निर्मित किए गए हैं। अतः मुख्य ग्रंथ तो चरक एवं सुश्रुत संहिता का आधार लेकर निर्मित किए गए हैं। अतः मुख्य ग्रंथ तो चरक एवं सुश्रुत संहिता ही है जिनकी प्रमुखता से अध्ययन करना चाहिए। इनके अलावा आयुर्वेद का इतिहास, पदार्थविज्ञान, द्रव्यगुणविज्ञान एवं रसशास्त्र की भी अध्ययन करना चाहिए। अन्य विषय जैसे कि शरीर रचना विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान, अगदतंत्र, स्वस्थवृत्त, स्त्री-प्रसूति तंत्र, शल्यतंत्र, शालाक्यतंत्र, कायचिकित्सा आदि का समावेद चरक एवं सुश्रुत संहिता के विभिन्न स्थानों में हो जाता है।
इन तथ्यों के आधार पर ही हमनें बहुत ही सरल रूप में एवं सरल भाषा में इस ग्रंथ का निर्माण किया है। हमारी छात्रों को सलाह है कि किसी भी विषय को याद करने हेतु उन्हें सदा एक ही क्रम में याद करना चाहिए, जैसे अंग्रेजी की वर्णमाला हमें हमेशा याद रहती है क्योंकि वह एक निश्चित क्रम में होती है इसी प्रकार संस्कृत के श्लोक भी हमें इसीलिए ही याद रहते हैं क्योंकि वह एक निश्चित क्रम में होते हैं।
अधिकांश छात्र प्रवेश परीक्षाओं में आने वाले कठिन प्रश्नों की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं क्योंकि वे उन प्रश्नों को हल नहीं कर पाते ऐसे प्रश्न परीक्षा को कठिन करने की दृष्टी से पूछे जाते हैं एवं केवल १० से ३०% ही होते हैं परन्तु परीक्षा में ६० से ९०% होते हैं अतः इन सरल प्रश्नों की ओर ज्यादा ध्यान देकर इन्हें शत प्रतिशत हल करने की कोशिश करना चाहिए। अक्सर छात्र इन सरल प्रश्नों को ही गलत कर देते हैं तथा परीक्षा में असफल होते हैं। अतः मूल ग्रंथों को विशेष रूप से पढ़ना चाहिए जो विभित्र हैं। जिस समस्या का समाधान हमने इस एक ही ग्रंथ के आधार पर करने का प्रयास किया है।
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