Ayurvediya Rachana Sharira Vijnana (आयुर्वेदीय रचना शरीर विज्ञान)
₹276.00
Author | Vaidya Dinesh Naik |
Publisher | Chaukhamba Publications |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2021 |
ISBN | 978-93-81608-78-4 |
Pages | 594 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 4 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSS0008 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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Ayurvediya Rachana Sharira Vijnana चिकित्सा शास्त्र के छात्र का पाठ्यक्रम प्राकृत शरीर के अध्ययन के साथ शुरू होता है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र (M.B.B.S.) में मानव शरीर रचना (human anatomy) और मानव शरीर क्रिया (human physiology) इन विषयों का प्रथम वर्ष में अध्ययन होता है। आयुर्वेदाचार्य (B.A.M.S.) के अभ्यासक्रम में भी इन विषयों का समावेश किया गया है जो क्रम से रचना शारीर और क्रिया शारीर कहलाते हैं। प्राचीन काल में भी शरीर के ज्ञान को मूलभूत माना गया है। प्राणाभिसर वैद्य (जो चिकित्सक प्राणों की रक्षा करते हैं तथा रोगों का विनाश करते हैं) के गुणों में चरक के शरीर ज्ञान और शरीर उत्पत्ति ज्ञान को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है।
तथाविधा हि केवले शरीरज्ञाने शरीराभिनिर्वृत्तिज्ञाने प्रकृतिविकारज्ञाने च निःसंशयाः । (च.सू. २९/७)
इस प्रकार (प्राणाभिसर वैद्य को) शरीर ज्ञान, शरीर अभिनिवृत्ति (उत्पत्ति) ज्ञान तथा प्रकृति-विकार का निःसंशय ज्ञान होता है। (चरक) आयुर्वेदाचार्य के पाठ्यक्रम में जो रचना शारीर विषय है उसमें आयुर्वेदिय रचना शारीर तथा आधुनिक शरीर रचना, दोनों को सम्मिलित किया गया है। चरक-सुश्रुत आदि प्राचीन संहिताओं में रचना शारीर तथा क्रिया शारीर सम्बद्धि जो वर्णन प्राप्त होता है वह ‘आयुर्वेदिय शारीर’ है और आधुनिक मानव शरीर रचना ‘human anatomy’ कहलाती है।
आयुर्वेदिय संहिताओं से रचना शारीर का जो वर्णन प्राप्त होता है वह विशिष्टता पूर्ण है। जैसे मर्म, स्रोत, कला आदि सिद्धांतों का निर्देश केवल आयुर्वेद में है। आयुर्वेदिय चिकित्सा शास्त्र का सफल प्रयोग करने के लिये उसके अपने सिद्धांतों को आयुर्वेदिय पद्धति से समझ लेना आवश्यक है। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र ने निरन्तर संस्करण और अनुसंधान के बाद वर्तमानकालिक विकसित anatomy प्राप्त की है। रचना शारीर का सम्पूर्ण ज्ञान आज के आयुर्वेद चिकित्सक के लिये भी अत्यंत आवश्यक है इसलियेआयुर्वेदाचार्य के अभ्यासक्रम में आधुनिक anatomy का समावेश किया गया है। संहिताओं में उल्लिखित सिद्धांत हजारों साल पुराने है तथा उनका कालानुरूप योग्य संस्करण भी नहीं हुआ है। इसलिये physics, chemis- try, bioliogy इन आधुनिक विज्ञान के विषयों का अध्ययन करनेवाले छात्रों को आयुर्वेदिय शारीर के कुछ सिद्धांतों का अध्ययन करने में कठिनता का अनुभव होने की संभावना है। ऐसे प्रसंग में छात्रों को अपने अध्यापकों के साथ विचार विनिमय करके शंकाओं का समाधान करना चाहिये।
आयुर्वेदिय रचना शारीर की सभी संदर्भों में anatomy के साथ तुलना करना अथवा समानता दिखाना संभव नहीं और न्यायसंगत भी नहीं। प्रायः इस तुलना में तज्ञों में मतभिन्नता देखी जाती है। इसलिये आयुर्वेदिय सहिताओं में वर्णित मनुष्य के शरीर का विवेचन उसके मूल रूप में इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया गया है। चरक-सुश्रुतादि के अपेक्षित शारीर को समझने का प्रयास इस ग्रंथ में किया गया है।
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