Badmash Darpan (बदमाश दर्पण)
₹51.00
Author | Tenga Ali |
Publisher | Vishwavidyalay Prakashan |
Language | Hindi |
Edition | 2002 |
ISBN | 81-7124-261-8 |
Pages | 90 |
Cover | Paper Back |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VVP0104 |
Other | Dispatched In 1 - 3 Days |
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बदमाश दर्पण (Badmash Darpan) तेग़ अली के दीवान में कुल २३ ग़ज़लें है। इन सब में मिलाकर कुल लगभग २०० शेर हैं। इसका बाबू रामकृष्ण वर्मा कृत प्रथम प्रकाशन ‘बदमाश दर्पण’ कहीं उपलब्ध नहीं हुआ। पं० पुरुषोत्तमलाल दवे ‘ऋषि’ वाला प्रकाशन कहीं देखने को भी नहीं मिला। इस व्याख्या में मूलपाठ का आधार ‘ज्ञानमण्डल’ प्रकाशित ‘तेग अली और काशिका’ है जो पं० शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ द्वारा सम्पादित है। कुछ फुटकर शेर (१) हिन्दी काव्य गंगा (नागरी प्रचारिणी सभा), (२) भारतेन्दु समग्र (हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय), (३) भोजपुरी भाषा और साहित्य (डॉ० उदयनारायण तिवारी) में भी मिलते हैं। भारतेन्दु समग्र में कुछ शेर रुद्र जी की प्रति से अधिक हैं, शेष वही हैं जो रुद्र जी में शामिल है। अवश्य, पाठ संशोधन में वे भी कुछ सहायक हैं।
रुद्र जी ने पाठ शुद्ध कर रखे हैं। छन्दो भंग नहीं है लय का प्रवाह सुचारु है। कहीं-कहीं अनवधान वश या मुद्राराक्षस की त्रुटि वश कुछ शाब्दिक संशोधन का अवकाश हुआ। कहीं-कहीं अन्य उपलब्ध पाठ अधिक मौजूँ लगा तो उसका समावेश कर लिया गया। दो-तीन शेर ऐसे भी थे जो रुद्रजी के मूल पाठ में नहीं थे किन्तु जिनके कुछ शब्दों और विषय वस्तु का संकेत उनके शब्दार्थ-व्याख्यार्थ से मिलता है- ऊहा करके उन शेरों को पूरा करके यथा स्थान शामिल कर लिया गया है।
प्रस्तुत ग्रंथ में मूल ग़ज्जल के शेर, उच्चारण के लिए सहायक चिह्नों सहित, स्थूलाक्षरों में सबसे पहले दिए गए हैं। पाठभेद पाद टिप्पणी में दे दिए गए हैं। तत्पश्चात शब्दार्थ दिए गए हैं। जो शब्द उत्तरोत्तर ग़जलों में बार-बार आए हैं उनके अर्थ भी पुनः पुनः दे दिए गए है ताकि पाठकों को पीछे पन्ने उलटकर ढूँढना न पड़े। इससे पुस्तक के अन्त में अभिधान देने की आवश्यकता भी दूर हो गई। भावार्थ के अन्तर्गत प्रत्येक शेर का अन्वय और सरल अर्थ है। प्रत्येक शेर के भावार्थ के नीचे उपयोगी टिप्पणी दी गई है जिसमें शेर के भाव का स्पष्टीकरण है और यदि किसी विशेष संदर्भ की संगति है तो वह भी दे दी गई है। सभी अर्थ और संदर्भ, शब्द कोशों अथवा अन्य ग्रंथों से समर्थित हैं। इन सहायक ग्रंथों तथा प्रस्तावना में सहायक ग्रंथों की सूची परिशिष्ट में दे दी गई है। मैं उन सभी विद्वान ग्रंथकारों-प्रकाशकों का आभार प्रकट करता हूँ।
तेग़ अली के बदमाश-दर्पण के कुछ शेर अपनी युवावस्था में मैंने सुने थे। भारत जीवन प्रेस वाली छोटी-सी पुस्तिका भी घर के पुस्तकालय में (रत्नाकर जी के संग्रह में) देखी थी। जब मैं सरकारी सेवा से निवृत्त होकर आया तब वह पुस्तिका नहीं मिली। इधर ३-४ वर्ष पूर्व मित्रवर सुकवि श्री ब्रह्मदेव ‘मधुर’ (अब स्वर्गीय) से चर्चा हुई तो उन्होंने प्रयत्नपूर्वक खोज ढूंढ कर एक फोटोस्टेट प्रति उपलब्ध कराई। वह मूल पुस्तिका तो नहीं थी किन्तु कुछ विशेष थी। वह रुद्रजी की सम्पादित ‘तेरा अली और काशिका’ की प्रति थी। मूलपाठ के साथ ही रुद्रजी की व्याख्या देखने का भी सौभाग्य मिल गया।
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