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Batuk Bhairava Rahasyam (बटुकभैरवरहस्यम्)

153.00

Author Ashok Kumar Gaud
Publisher Chaukhamba Surbharati Prakashan
Language Hindi & Sanskrit
Edition 2018
ISBN -
Pages 470
Cover Paper Back
Size 14 x 2 x 22 (l x w x h)
Weight
Item Code CSP0133
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Description

बटुकभैरवरहस्यम् (Batuk Bhairava Rahasyam) हिन्दूधर्म में तैंतीस कोटि विभिन्न देवी-देवताओं की उपासना पद्धतियों में बटुकभैरव की उपासना का भी एक अपना विशिष्ट स्थान है। सनातनधर्म में भगवान् बटुकभैरव की उपासना का एक मुख्य स्थान है, सनातनधर्मावलम्बीजन बटुकभैरव के उपासक हैं। वेदों में भैरव को रुद्र कहा गया है और तन्त्रशास्त्र के ग्रन्थों में इन्हें ‘भैरव’ के नाम से अलन्कृत किया गया है। भगवान् शिव के अवतारों में बटुकभैरव का अवतार अपना एक विशिष्ट महत्त्व रखता है। तन्त्र और पौराणिक ग्रन्थों में बटुकभैरव के अवतारों की विभिन्न कथाएँ प्राप्त होती हैं। रुद्रयामलतन्त्र में चौंसठ भैरव का उल्लेख प्राप्त होता है, जिनका अपना अलग-अलग महत्त्व है।

बटुकभैरव शब्द की व्युत्पत्ति

बटुक-बटुक शब्द की व्युत्पत्ति वेष्टनार्थक ‘वट्’ धातु से ‘कटिवटिभ्याञ्च’ इस औणादिक सूत्र से ‘उ’ प्रत्यय और स्वार्थ में ‘कन्’ प्रत्यय के संयोग से ‘बटुक’ शब्द व्युत्पन्न होता है। भैरव-भैरव शब्द की व्युत्पत्ति भयार्थक ‘भी’ धातु से निष्पन्न ‘भी’ शब्द व ‘अन्’ धातु से निष्पन्न ‘अव्’ शब्द के योग से मानी गई है। बटुकभैरव का स्वरूप स्फटिक के समान शुभ्रवर्ण व कुण्डलों से देदीप्यमान, दिव्य मणियों से विभूषित, किंकिणी और नूपुर से अलन्कृत, तेजस्वी रूप, प्रसन्न मुखाकृति, तीन नेत्रों से अलन्कृत व अपने हाथों में अष्ट आयुधों को धारण किये हुए हैं, उनके गले में लाल पुष्पों की माला सदैव सुशोभित रहती है।

बटुकभैरव अपने उपासकों को भय-बाधाओं से मुक्त कर उनके कष्टों का अन्त कर देते हैं। हमारे शास्त्रकारों ने इनकी तीन प्रकार से पूजा बताई है। सात्विक पूजा-सात्विक पूजा में केवल गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, फल, नारिकेल आदि का ही उपयोग होता है। इसमें मद्य, मांस और पशुबलि नहीं दी जाती। राजसी पूजा-राजसी पूजा में गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, फल आदि के साथ ही साथ पशुबलि भी दी जाती है और पंचमकार निवेदित किया जाता है। यह पंचमकार अतिरहस्यमय है और इसका ठीक-ठीक विधान उच्चकोटि के साधक ही जानते हैं और उन्हीं में यह अधिक प्रचलित भी है।

तामसी पूजा-तामसी पूजा में मनुष्य शास्त्रीय विधान का पालन न कर स्वेच्छाचारिता अपनाते हैं। जो मनुष्य बटुकभैरव के पूजन में गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य आदि के साथ ही साथ मद्य, मांस और रक्त को समर्पित करते हैं, वह साम्प्रदायिक उपासकों के लिये विहित हो सकता है, सबके लिये नहीं। अत: अपना शुभ चाहने वाले व्यक्ति को सात्विक पूजा ही करनी चाहिए। तामसी पूजा तो गुरुगम्य है, जब किसी सुयोग्य गुरु का आचार्यत्व प्राप्त हो तभी इनकी तामसी पूजा उन्हीं के सान्निध्य में करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इनकी अर्चना का दिन रविवार और मंगलवार है, किन्तु इनकी अर्चना किसी भी समय की जा सकती है। यह अपने साधक को सब कुछ प्रदान कर उसे प्रसन्न कर देते हैं। इस प्रकार के बटुकभैरवदेवता पर यह ‘बटुकभैरव रहस्यम्’ नामक पुस्तक आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।

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