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Bhaisajya Ratnavali (भैषज्यरत्नावली)

1,000.00

Author Govind Das Sen
Publisher Khemraj Sri Krishna Das Prakashan, Bombay
Language Sanskrit & Hindi
Edition 2020
ISBN -
Pages 1358
Cover Hard Cover
Size 15 x 6 x 23 (l x w x h)
Weight
Item Code KH0034
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Description

भैषज्यरत्नावली (Bhaisajya Ratnavali) भैषज्यरत्नावली आयुर्वेदीय चिकित्सा ग्रन्थोंमें एक उत्कृष्ट और प्रामाणिक चिकित्सा ग्रन्थ समझा जाता है। वैद्य समाजमें आजकल इसका बड़ा आदर है। कारण इसके रचयिता श्रीगोविन्ददाससेनने इसमें अनेक अनुभूत योगोंका संग्रह बड़ी सुन्दर और सरल रोतिसे किया है। इसमें काथ, चूर्ण, अवलेह, आसव, अरिष्ट आदि बनस्पति प्रयोग और रसधातु आदिके द्वारा सिद्ध किये रसायन प्रयोग, इस प्रकार दोनों प्रकारके योगोंका समावेश होनेके कारण इसके द्वारा सभी श्रेणीके वैद्य उत्तमरीतिसे लाभ उठा सकते हैं। इसका प्रत्येक प्रयोग अत्यन्त गुणकारक और आशुफलमद होनेसे यह ग्रन्थ वैद्योंको अल्प समयमें ही अत्यन्त आदरणीय हो गया है। अबतक इसके कलकत्ता, लखनऊ, लाहौर आदिमें कई संस्करण हो चुके हैं। पर हमने इसको और भी अधिक उप- योगी बनानेके लिये इसमें दूसरे कई प्राचीन और नवीन ग्रन्थोंके अनेक उत्तम योगोंका संग्रह कर इसको अधिक परिवर्द्धित कर दिया है। किन्तु इसमें अन्य ग्रन्थोंके प्रयोगोंके संकलनसे पूज्यपाद वैद्य श्रीगोविन्ददाससेनजी- की धवलकीर्तिमें किसी प्रकारकी बाधा नहीं होगी। बल्कि इससे उनकी उज्ज्वल कीर्ति और भी प्रसारित होगी। ऐसी आशा है।

महामान्य कवि-राज श्रीगोविन्ददाससेनने इस ग्रन्थकी अबसे कोई डेढ़ सौ वर्ष पहले रचना की थी। सेन उपाधिसे जान पड़ता है कि वे वंगदेश निवासी थे। पर किस स्थानमें उनका जन्म हुआ था, इसका कुछ ठीक पता नहीं लग सका। पहले इस ग्रन्थका बंगालमें अधिक प्रचार हुआ। फिर धीरे २ सारे भारतवर्षमें इसका समादर होने लगा। केवल हिन्दी भाषा जाननेवाले वैद्योंके लिये हमने इसके प्रत्येक श्लोकका सरल हिन्दी अनुवाद किया है। हमें इस ग्रन्थके अनुवाद तथा सम्पादन और परिवर्द्धन करनेमें चरक, अष्टांग-हृदय, भावप्रकाश, वङ्गसेन, शाडर्गधर, चक्रदत्त, योगरत्नाकर आदि कितने ही ग्रन्थोंके सिवाय कविराज श्रीहरलाल गुप्त कविभूषणकी भैषज्यरत्नावलीसे अधिक सहायता मिली है इस लिये हम उनके प्रति अत्यन्त कृतज्ञता प्रगट करते हैं। तथा कविराज बिनोदलालसेनके ग्रन्थद्वारा भी हमें उस कार्यमें यत्किञ्चित् सहायता लेनी पड़ी है, इस लिये हम उनके भी कृतज्ञ हैं, हमने यथाशक्ति इस ग्रन्थको भली प्रकार देख भाल कर पाठकोंके सम्मुख उपस्थित किया है, यदि कोई त्रुटि दृष्टि दोषआदिसे रह गई हो तो कृपया उसको पाठकगण सुधार तथा सूचित कर अनुगृहीत करें।

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