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Bharatiya Kala Samiksha (भारतीय कला समीक्षा)

175.00

Author Dr. Ritu Jauhari
Publisher Rajasthan Hindi Granth Academy
Language Hindi
Edition 2nd edition, 2020
ISBN 978-93-89260-39-7
Pages 226
Cover Paper Back
Size 13 x 1 x 21 (l x w x h)
Weight
Item Code RHGA0070
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Description

भारतीय कला समीक्षा (Bharatiya Kala Samiksha) भारतीय कला अपने परम्परागत उत्तराधिकार की शक्ति पर निर्भर रहकर अपने कला तत्वों के साथ विकसित होने का प्रयास है तथाकथित धार्मिक कला भी अंततः सदियों से मानवीय अपील व विशिष्टता को बनाए रखने में सक्षम रही है।

इस मूल तथ्य को मस्तिष्क में रखते हुए यह पुस्तक लिखी गई है। कला चिंतन व लेखन की सुदीर्घ परम्परा के साथ ही कला रूपों के उद्भव, परम्परा पर अन्वेषण कार्य प्रस्तुत करने का प्रयास है। उद्देश्य भारतीय कला समीक्षा के विवेचन से भारतीय कला का स्वरूप स्पष्ट करना है। पुस्तक का पहला भाग इसी प्रयास का नतीजा है। अध्यापन काल में व शोध कार्य के दौरान मुझे कला लेखकों के विचार व विश्लेषणों के अध्ययन का अवसर मिला। मैं इसे भारतीय कला के सार तत्व को समझने में सहायक समझती हूँ और प्रयास कर रही हूँ कि सभी इन्हें पुनर्विवेचित कर समकालीन कला अध्ययन में सम्मिलित करें।

विद्यार्थी भारतीय कला का कोई ऐसा मॉडल या स्वरूप प्रायः नहीं बना पाते कि भारतीय कला का सुनिश्चित स्वरूप यह है। कभी प्रतिमा विज्ञान तो कभी साहित्यिक आधार तो कभी धर्म व दर्शन की रहस्यात्मकता भी कोई निश्चित स्वरूप न बनाकर हमारी सोच को और उलझा देती है। प्रश्न यह है कि भारतीय कला को कैसे समझा जाए? इतनी लयात्मक, जीवंत व सौन्दर्यमयी आकृतियाँ कैसे रूपान्तरित हुई। प्राचीन भारतीय कला के कलासृजन से संबंधित वैचारिक व कलात्मक पक्ष रहे हैं, जिसके कारण भारतीय कला का स्वरूप स्थिर हुआ है। मैंने ऐसे तथ्यों को संकलित कर एक नूतन दृष्टि प्रस्तुत करने की चेष्टा की है जिन्हें पूर्ववर्ती विचारकों व लेखकों ने निर्देशित किया है।

पुस्तक का भाग-2 ‘विचार व रूप’ आयडिया व इमेज में तीन बिन्दुओं का विश्लेषण किया गया है।

यह सत्य है कि अनेक कुंजी-तत्व या की कॉन्सेप्ट्स हैं जो भारतीय कला के स्वरूप को निर्धारित करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में मैंने मुख्य कला रूपों के अमूर्त व सूक्ष्मतर तत्वों को भारतीय कला में विकसित व पल्लवित होते देखने को परिभाषित करने की चेष्टा की है।

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