Bhasa Evam Bhavabhuti Ke Natako Me Rasatattva (भास एवम् भवभूति के नाटकों में रसतत्त्व)
₹603.00
Author | Dr. Umesh Pandey |
Publisher | Vidyanidhi Prakashan, Delhi |
Language | Hindi |
Edition | 1999 |
ISBN | 81-86700226 |
Pages | 206 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | VN0054 |
Other | Dispatched in 1-3 days |
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भास एवम् भवभूति के नाटकों में रसतत्त्व (Bhasa Evam Bhavabhuti Ke Natako Me Rasatattva) महाकवि भास की तेरह नाट्य-कृतियाँ क्लासिकल स्कूल ऑफ ड्रामा की प्रथम आधार स्तम्भ मानी जाती हैं तथा भवभूति की तीन कृतियाँ इस परम्परा की कदाचित् अन्तिम प्रतिनिधि। संस्कृत नाट्य-साहित्य ने सैकड़ों वर्ष की अपनी लम्बी यात्रा में किन नवीन प्रवृत्तियों को अङ्गीकृत किया तथा किन परम्पराओं का यथावत अनुपालन इन दोनों नाटककारों की नाट्य कृतियों के तुलनात्मक अनुशीलन से स्पष्ट हो जाता है।
अपनी कारयित्री प्रतिभा के माध्यम से महान नाटकीय सम्भावनाओं के मार्ग को उद्घाटित कर भावी पीढ़ी हेतु उर्वरा भूमि तैयार करने वाले दिशा-निर्देशक के रूप में महाकवि भास वाल्मीकिवत सदैव स्मरणीय हैं। नवनवोन्मेषशालिनि प्रज्ञा की चमत्कृति यदि भास की कृतियों में नैसर्गिक स्वाभाविकता के साथ शृंगार, वीर, करुण एवं अद्भुत रसों की प्रधानता के रूप में दृष्टिगत होती है तो महाकवि भवभूति की नाट्य-कला प्रकृतिगत उष्मा, रसगत वैशिष्ट्य, काव्यगत सौष्ठव, शास्त्रगत पाण्डित्य तथा कलात्मक अभिव्यक्ति की नवीन विधाओं के रूप में सामने आती है।
प्रथम दृष्ट्या भवभूति के तीनों नाटक अपने रङ्ग तथ ढ़ङ्ग में त्रिगुणात्मक हैं तो भास के तेरह नाटकों का स्वर कदाचित् इनसे भिन्न नहीं जाता। इनमें भी बाह्यगत कथातत्त्व का उत्स एक होने से इनके अन्तस्तत्त्व ‘रस’ की प्रवहणीयता और सार्वभौमिक. एकात्मकता भारतीय सांस्कृतिक परम्परा की अनुगामिनी है। पुनः यदि भवभूति की कलात्मक महत्ता का उत्स एक बँधी-बँधायी परम्परा को बहुत हद तक मरोड़ने में दृष्टिगत होता है तो दूसरी ओर वह भास की रस परम्परा के संरक्षण, संयमन, अनुपालन एवं सम्बर्धन में दिखाई देती है। प्रस्तुत पुस्तक दोनों महाकवियों की सोलह नाट्यकृतियों का रसतत्त्व की दृष्टि से तुलनात्मक आकलन प्रस्तुत करती हैं।
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