Brahmastra Vidya Evam Baglamukhi Sadhna (ब्रह्मास्त्रविद्या एवं बगलामुखी साधना)
₹760.00
Author | Dr. Shyama Kant Dwivedi |
Publisher | Chaukhamba Surbharati Prakashan |
Language | Sanskrit & Hindi |
Edition | 2022 |
ISBN | 978-93-80326-75-7 |
Pages | 560 |
Cover | Hard Cover |
Size | 14 x 2 x 22 (l x w x h) |
Weight | |
Item Code | CSP0156 |
Other | Dispatched in 3 days |
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ब्रह्मास्त्रविद्या एवं बगलामुखी साधना (Brahmastra Vidya Evam Baglamukhi Sadhna) भारतीय दार्शनिकों ने विश्व के मूल में अवस्थित परमतत्त्व को निर्गुण एवं निराकार ब्रह्म के रूप में पहचान कर ‘अथातो ब्रह्मजिज्ञासा’ के द्वारा उस निर्गुण-निराकार तत्त्व की जिज्ञासा तो की किन्तु वह निर्गुण-निराकार ब्रह्म शक्ति के बिना इतना अशक्त था कि वह उसके बिना हिल भी नहीं सकता था-
‘शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं न चेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपिं’ ।।
अतः उन्हें ब्रह्म-जिज्ञासा छोड़कर ब्रह्म के हृदय में निवास करने वाली उसकी शक्ति की जिज्ञासा करनी पड़ी। यह शक्ति कहीं तो उस ब्रह्म की आत्मगता पराशक्ति के रूप में तो कहीं परमाराध्य ब्रह्म के रूप में भावित हुई। इसी भावित स्वरूप की जिज्ञासा आचार्य हयग्रीव एवं ऋषि अगस्त्य के शब्दों में- ‘अथातः शक्तिजिज्ञासा’ के रूप में प्रकट हुई। ऋषियों को इसी जिज्ञासा मे- ‘किं कारणं ब्रह्म कुतः स्म जाता ? जीवाम केन क्व च सम्प्रतिष्ठाः। अधिष्ठिताः केन सुखेतरेषु वर्तामहे ब्रह्मविदो व्यवस्थाम्’ (श्वे. उप.) के प्रश्न का उत्तर मिल सका। प्राचीनतम उपनिषदों में से एक उपनिषद् श्वेताश्वतरोपनिषद् में इसी शक्ति का उल्लेख इस रूप में किया गया है-
‘परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते, स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च’।
यही आद्या परमा शक्ति कभी स्वातन्त्र्य शक्ति के रूप में तो कभी विमर्श शक्ति के रूप में, कभी भुवनेश्वरी के रूप में तो कभी महात्रिपुरसुन्दरी के रूप में; कहीं कालिका के रूप में तो कहीं भगवती बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई। यह पुस्तक उन्हीं परा, जगदम्बिका, सर्वेश्वरी, सर्वदेवाराध्या एवं परात्पर पराशक्ति भगवती बगलामुखी महाविद्या को केन्द्र में रखकर लिखी गई है।
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